नई दिल्ली: दिन के दस बज रहे हैं और जंतर मंतर पर हज़ारों की संख्या में महिलाएं इक्कठ्ठा हो गई हैं. कोई बिहार के भभुआ जिले से है तो कोई यूपी के रामपुर से. हर दूसरे शख्स की छाती पर एक आई कार्ड लटका है. किसी के हाथ में छोलनी है तो कोई छनवटा व कलछुल लेकर आया है. मंच पर कुछ कार्यकर्ता हैं. वो अपने स्पष्ट भाषणों, जोशीले नारों और मज़ेदार गीतों से देश के कोने-कोने से आई इस भीड़ को बांधे हैं.
‘नून रोटी खाएंगे, मोदी को हराएंगे’
मुद्दा भी है. लोग भी हैं. लेकिन उनकी बात को संसद में मजबूती से पहुंचाने के लिए सत्ता पक्ष या विपक्ष का कोई चर्चित चेहरा नहीं दिखाई दे रहा है.
हम भीड़ में आगे बढ़ते हैं. आए हुए लोग अपनी समस्या बताने के लिए उतनी ही तेजी से आगे आते हैं.
‘ उ पप्पु मास्टर है. वो हम लोगों का झोटा(बाल) पकड़ के बाहर निकाल देता है रूम से. और कहता है कि तुम जाओ यहां से, स्कूल से, तुम्हारा एक्को पैसा नहीं बढ़ेगा.’
सवाल: कितनी तनख्वाह मिलती है आपलोगों की?
जवाब मिला: ‘साढ़े बारह सौ रुपया हर महीना.’
सवाल: हर महीने पैसा मिल जाता है ?
जवाब मिला: ‘नहीं. हर महीने नहीं मिलता है. चार-पांच महीने में आता है. और साल में दस महीने ही तनख्वाह मिलती है.’
ये व्यथा केवल बिहार के कैमूर जिले से आईं चालीस वर्षीय राधिका देवी की नहीं है बल्कि धरने पर बैठीं उन सैकड़ों सारी महिलाओं की है जो वेतन बढ़ाने की मांग के साथ जंतर-मंतर पर बैठी हैं और उनका बस एक ही नारा है:
‘एक दो हज़ार में दम नहीं, दस हज़ार से कम नहीं.’
आपको बताते चलें, सरकारी विद्यालयों में रसोइयों के साथ मनमाना व्यवहार किया जाता है. न तो इनका काम सुरक्षित है और न ही इतना वेतन दिया जाता है कि जीवन ठीक से चल सके. कई-कई महीने तो वेतन ही नहीं आता है. जिससे इनकी स्थिति बदतर होती जा रही है. इन्हीं मुद्दों को लेकर आज जंतर मंतर पर ‘राष्ट्रीय मध्यान्ह भोजन रसोइया फ्रंट’ के अंतर्गत सैंकड़ों महिलाएं धरने पर बैठी थीं. सरकार से इनकी प्रमुख मांगे थीं कि कार्यरत रसोइयों को सरकार के श्रम विभाग के घोषित अकुशल मजदूरी रेट से मजदूरी का भुगतान किया जाए. इन्हें जीने लायक पारिश्रमिक(मानदेय) की व्यवस्था करते हुए इनके सुरक्षित भविष्य की गारंटी दी जाए. इसके अलावा जब तक रसोइयों के मानदेय का निर्धारण नहीं हो जाता है. तबतक श्रम मंत्रालय भारत सरकार के आदेशानुसार अकुशल मजदूरी 370रू प्रतिदिन के हिसाब से भुगतान किया जाए.
संगठन द्वारा 25 अगस्त 2018 को रसोइयों के न्यूनतम मजदूरी भुगतान को लेकर उच्च न्यायलय पटना में याचिका दाखिला की गई है. जिसमें मानव संसाधन मंत्रालय भारत सरकार और बिहार सरकार को पार्टी बनाया गया है.
दिप्रिंट से बातचीत में संस्था के राष्ट्रीय मध्यान्ह भोजन रसोइया फ्रंट के संस्थापक व सह राष्ट्रीय महासचिव रामकृपाल ने बताया कि, ‘ इस मुद्दे को लेकर अभी तक किसी नेता ने नहीं बोला है और इसको लेकर रसोइयों में गुस्सा है. इस धरना प्रदर्शन के माध्यम से बता देना चाहते हैं कि अगर हमारी मांगें नहीं मानी गई तो रसोइयों का वोट भाजपा को नहीं मिलेगा. और यहां आए प्रत्येक रसोइया अपने अपने गांव जाकर यह संदेश पहुंचाएगी कि इस सरकार को हटाओ इससे मुक्ती पाओ. तभी तुम्हारा कल्याण होगा.’