नई दिल्ली: कनिका कश्यप अपने बीमार रिश्तेदार का हालचाल जानने के बाद घर लौट रही थीं, तभी बड़ेबोदल गांव के सरपंच ने उन पर हमला कर दिया. कनिका ने दिप्रिंट को फोन पर बताया, “वह मेरा गला घोंटता रहा और मुझे लगातार मारता रहा.”
उन्हें जल्दी से नज़दीकी सरकारी अस्पताल ले जाया गया, जहां कई जांच और अल्ट्रासाउंड के बाद डॉक्टरों ने पाया कि कनिका छह सप्ताह की गर्भवती हैं. कनिका के पति मंडू ने हमले के बाद कनिका के गर्भपात का ज़िक्र करते हुए कहा, “हर कोई परिवार बढ़ाने के लिए शादी करता है. हमारा परिवार बस शुरू होने ही वाला था और उसने (सरपंच ने) इसे खत्म कर दिया.”
कनिका का परिवार बड़ेबोदल में रहने वाले पांच ईसाई परिवारों में से एक है. वे और उनके पति का दावा है कि यह हमला प्रतिशोध के तौर पर किया गया था — छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में ईसाइयों के खिलाफ लक्षित हिंसा के बारे में आवाज़ उठाने के लिए. कनिका ने कहा, “हमें अक्सर कहा जाता है कि हम हिंदुओं को ईसाई बनाने की कोशिश कर रहे हैं और हम उनके साथ शांति से नहीं रहना चाहते, लेकिन यह सच नहीं है.”
नगरनार पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर उमेश पाटिल ने दिप्रिंट को बताया कि सरपंच और उसकी पत्नी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “हम फिलहाल गर्भपात की जांच कर रहे हैं और अस्पताल से कनिका की मेडिकल रिपोर्ट मांग रहे हैं. हालांकि, अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है.”
बस्तर के पुलिस अधीक्षक शलभ कुमार सिन्हा ने भी कहा कि पुलिस ने कनिका की मेडिकल रिपोर्ट मांगी है और मामले में आगे की कार्रवाई के बारे में फैसला करने के लिए उन्हें संदर्भित किया जाएगा.
2 जनवरी की घटना को याद करते हुए कनिका ने बताया कि जब वे अपने एक रिश्तेदार के घर से बाहर निकल रही थीं, तो उन्होंने सरपंच गंगा राम कश्यप को उनका वीडियो बनाते देखा. उन्होंने सरपंच से पूछा कि वो ऐसा क्यों कर रहा है, तो उसने कथित तौर पर उनके (कनिका) साथ मारपीट की. सरपंच की पत्नी और बेटी भी इसमें शामिल थे. कनिका ने बताया कि उनके पति के चचेरे भाई ने उन्हें अस्पताल पहुंचाया.
25-वर्षीय कनिका के अनुसार, डॉक्टरों ने बाद में उन्हें बताया कि वे गर्भवती हैं, लेकिन दुनिया में एक नई ज़िंदगी लाने की यह खुशी थोड़े समय के लिए ही थी.
कनिका ने बताया कि 3 जनवरी की रात को उन्हें बहुत ज़्यादा रक्तस्राव हुआ, जिसके बाद डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि उनका गर्भपात हो गया है. उन्होंने कहा, “मैंने पहली सोनोग्राफी में अपने बच्चे को देखा. फिर दूसरी सोनोग्राफी में बच्चा मृत था. मुझे नहीं पता कि इसे कैसे संभालना है.”
उन्होंने और उनके पति ने अपने नुकसान के लिए सरपंच को दोषी ठहराया, दावा किया कि उन्होंने शिकायत दर्ज कराई है, लेकिन पुलिस ने अभी तक उस पर कार्रवाई नहीं की है. मंडू ने कहा, “गंगा राम के बड़े संपर्क हैं. कोई भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा.” मंडू घरों की पेंटिंग करके अपना गुज़ारा करते हैं. उन्होंने बताया कि गंगा राम पिछले करीब पांच साल से बड़ेबोदल गांव का सरपंच है.
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‘स्थिति में तनाव’
दूसरी पीढ़ी की ईसाई कनिका का मानना है कि उन पर उनकी धार्मिक पहचान के कारण हमला किया गया. उनके दिवंगत पिता, जो एक दलित हिंदू थे, ने उनके जन्म के कुछ साल बाद ईसाई धर्म अपना लिया था. कनिका ने कहा, “मेरे पिता, जो एक दलित व्यक्ति थे, बहुत परेशान थे. इसलिए उन्हें मजबूरन धर्म परिवर्तन करना पड़ा.”
उनके पति मंडू ने लगभग दो साल पहले ईसाई धर्म अपना लिया था, जब उन्होंने चर्च जाना शुरू किया था. इस समय तक, मंडू के भाई पहले से ही ईसाई धर्म का पालन कर रहे थे. उन्होंने कहा, “धर्म परिवर्तन से पहले, मैं लगातार परेशान रहता था.”
अपनी पत्नी पर कथित हमले के समय, मंडू ने कहा कि वे गांव की एक वृद्ध ईसाई महिला को दफनाने से इनकार करने से संबंधित मामले की सुनवाई के लिए अन्य स्थानीय ईसाइयों के साथ छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में थे.
बड़ेबोदल के एक पादरी सलीम हक्कू ने कहा कि एक दक्षिणपंथी संगठन के स्थानीय समर्थकों ने महिला के दफनाने पर आपत्ति जताई थी, जिसके कारण कई पादरियों और सरपंच गंगा राम के नेतृत्व वाले समूह के बीच हिंसक झड़पें हुईं. उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि झड़प के बाद कर्फ्यू भी लगाया गया था. उन्होंने आगे कहा, “अभी स्थिति बहुत तनावपूर्ण है. वह चर्चों में पूजा करने की अनुमति नहीं दे रहे हैं. बड़ेबोदल में बहुत से आस्तिक और पादरी हैं. वह ग्रामीणों को बरगला रहे हैं और अब हर कोई यहां ईसाइयों के खिलाफ है.”
हक्कू ने आगे आरोप लगाया, “वह ईसाइयों के शवों को दफनाने की अनुमति नहीं देते हैं. वह हमें चर्चों या घरों में प्रार्थना करने की भी अनुमति नहीं दे रहे हैं. स्थिति इतनी खराब है कि ईसाइयों को कुओं से पानी लाने, मनरेगा में काम करने या दुकानों से राशन लाने की अनुमति नहीं है.”
छत्तीसगढ़ क्रिश्चियन फोरम (CCF) के अध्यक्ष अरुण पन्नालाल ने कहा कि ईसाई राज्य की आबादी का 15 प्रतिशत हिस्सा हैं — जबकि 2011 की जनगणना में 1.92 प्रतिशत बताया गया था. उन्होंने फोन पर दिप्रिंट को बताया, “इनमें से 3 प्रतिशत पारंपरिक ईसाई हैं जो हमेशा से ईसाई धर्म का पालन करते रहे हैं. उसके बाद धर्मांतरित ईसाई हैं जो लगभग 1.2 से 1.5 प्रतिशत लोग हैं. बाकी 10.5 प्रतिशत प्रमाणित या घोषित ईसाई नहीं हैं.”
“कानूनी धर्मांतरण” की प्रक्रिया में दो चरण शामिल हैं: बपतिस्मा और उसके बाद जिला कलेक्टर के पास हलफनामा दाखिल करना.
पन्नालाल ने कहा कि आरटीआई के माध्यम से सीसीएफ द्वारा प्राप्त आंकड़ों से पता चलता है कि 2024 में छत्तीसगढ़ में केवल 35 लोगों ने कानूनी रूप से ईसाई धर्म अपनाया है. ये धर्मांतरण पांच जिलों दंतेवाड़ा, बीजापुर, नारायणपुर, जगदलपुर और सुकमा में दर्ज किए गए थे. उन्होंने कहा, “सरकार को इन 10.5 प्रतिशत नागरिकों की पहचान के लिए एक नियम बनाना होगा. सरकार यह घोषित करने के लिए बाध्य है कि क्या ये लोग हिंदू या ईसाई कहलाना जारी रखेंगे.”
‘मृतकों को दफना भी नहीं सकते’
इवेंजेलिकल फेलोशिप ऑफ इंडिया (ईएफआई), जो कि इंजील ईसाइयों का एक राष्ट्रीय गठबंधन है, का दावा है कि पिछले साल दिसंबर के मध्य तक पूरे भारत में ईसाइयों पर हमलों की 720 से अधिक घटनाएं दर्ज की गई हैं. धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए काम करने वाले गैर-लाभकारी संगठन यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम (यूसीएफ) ने नवंबर के अंत तक 760 ऐसी घटनाएं दर्ज कीं.
धर्मांतरण पर, कार्यकर्ता जॉन दयाल ने कहा, “जब आप धर्मांतरण की बात करते हैं, तो क्या आप यह कह रहे हैं कि संविधान आस्था की स्वतंत्रता की अनुमति नहीं देता है? क्या आप यह कह रहे हैं कि आस्था की स्वतंत्रता धर्म को छोड़ने की अनुमति नहीं देती है? क्या आप यह कह रहे हैं कि आस्था की स्वतंत्रता धर्म बदलने की अनुमति नहीं देती है?”
पादरी हक्कू के विचारों को दोहराते हुए, दयाल ने कहा कि छत्तीसगढ़ में ईसाइयों को चर्चों और कभी-कभी अपने घरों पर भी हमलों का सामना करना पड़ता है, इसके अलावा समाज में, विशेष रूप से आदिवासी क्षेत्रों में “बहिष्कार” भी किया जाता है. “उन्हें रहने या ज़मीन रखने की अनुमति नहीं है, उन्हें भोजन नहीं दिया जाता है. सरकार उन्हें प्रतिबंधित करती है, या इससे भी बदतर, वह अपने मृतकों को दफना भी नहीं सकते हैं.”
ईएफआई महासचिव विजयेश लाल का मानना है कि धर्मांतरण शब्द को ही अब संदेह की दृष्टि से देखा जाता है. उन्होंने कहा, “हमने हमेशा कहा है कि चर्च जबरन या धोखाधड़ी से धर्मांतरण में विश्वास नहीं करते हैं.” उन्होंने कहा कि इस समय सार्वजनिक रूप से अपने फैथ के बारे में बात करना भी जोखिम भरा हो गया है. उन्होंने कहा कि संविधान किसी धर्म का प्रचार और उसे मानने के अधिकार को मान्यता देता है. उन्होंने कहा कि यह “पूर्ण अधिकार नहीं है और सार्वजनिक व्यवस्था और नैतिकता जैसी कुछ शर्तों के अधीन है और हम इसे पूरी तरह से मान्यता देते हैं”.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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