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Friday, 17 May, 2024
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‘संवैधानिकता का सवाल’: हिजाब मामले में कर्नाटक HC ने याचिका को बड़ी बेंच को भेजा, कोई अंतरिम आदेश नहीं

जस्टिस कृष्णा एस. दीक्षित की एकल पीठ ने कहा कि ‘महत्वपूर्ण सवालों की व्यापकता’ को देखते हुए इस मामले में बड़ी पीठ द्वारा विचार किए जाने की जरूरत है, और इसके साथ ही उन्होंने परीक्षा के मद्देनजर स्टूडेंट को अंतरिम राहत देने से भी इनकार कर दिया.

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नई दिल्ली: कर्नाटक हाईकोर्ट की एकल-जज वाली पीठ ने राज्य में जारी हिजाब विवाद से संबंधित याचिकाओं को बुधवार को एक बड़ी पीठ के पास भेज दिया और इस मामले में कोई भी अंतरिम आदेश जारी करने से भी इनकार कर दिया.

जस्टिस कृष्णा एस. दीक्षित की पीठ ने उडुपी वुमेन प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज की एक मुस्लिम छात्रा की याचिका पर मंगलवार को सुनवाई शुरू की थी. छात्रा ने उसे और अन्य छात्राओं को हिजाब पहनकर कॉलेज में प्रवेश करने की अनुमति न देने संबंधी संस्थान के निर्देश को चुनौती दी थी.

लेकिन मामला जब बुधवार को सुनवाई के लिए आया तो जस्टिस दीक्षित ने इसे बड़ी पीठ के पास भेजने का आदेश पारित किया.

उन्होंने कहा कि याचिका में उठाए गए मुद्दों ने पर्सनल लॉ के संबंध में ‘मौलिक महत्व’ के ‘संवैधानिक सवालों’ को जन्म दिया है.

उन्होंने कहा कि इसके मद्देनजर और पक्षकारों की तरफ से उद्धृत फैसलों को देखते हुए इस पर बड़ी पीठ द्वारा विचार किया जाना जरूरी हो गया है.

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जस्टिस दीक्षित ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि मामले को कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के समक्ष विचार के लिए रखे, ताकि तात्कालिकता को देखते हुए इसे किसी उपयुक्त पीठ को भेजा जा सके.

हालांकि, इसके साथ ही जस्टिस दीक्षित ने याचिकाकर्ताओं के वकीलों की तरफ से जोर दिए जाने के बावजूद कोई अंतरिम आदेश पारित करने से इनकार कर दिया. याचिकाकर्ता के वकीलों को मामला बड़ी पीठ के समक्ष भेजने पर कोई आपत्ति नहीं थी. लेकिन, उनकी दलील थी कि तब तक स्टूडेंट को कुछ अंतरिम राहत दी जानी चाहिए ताकि वे कॉलेज जा सकें और अपने फाइनल एग्जाम दे सकें.

हालांकि, राज्य के महाधिवक्ता की ओर से जरूर विरोध किया, जिन्होंने कहा कि याचिकाएं सुनवाई योग्य नहीं हैं.

जस्टिस दीक्षित ने बुधवार को करीब एक घंटे तक चली सुनवाई के बाद अपना फैसला सुनाया.

उन्होंने अपने आदेश में कहा, ‘बहस का मुद्दा बने महत्वपूर्ण सवालों की व्यापकता को देखते हुए अदालत का विचार है कि इसके दस्तावेज चीफ जस्टिस के समक्ष रखे जाएं ताकि वह ये तय कर सकें कि क्या इस विषय में किसी बड़ी पीठ का गठन किया जा सकता है.’

अंतरिम राहत की अपील पर अपने आदेश में उन्होंने कहा, ‘यहां तक कि अंतरिम प्रार्थना पर भी एक बड़ी पीठ द्वारा विचार करने की जरूरत है, जिसे चीफ जस्टिस अपने विवेक से गठित कर सकते हैं, और इसलिए अंतरिम प्रार्थना में दी गई दलीलों को इसमें शामिल किया जा रहा है. चीफ जस्टिस द्वारा बड़ी पीठ के गठन के संबंध में निर्णय लिए जाने के बाद याचिकाकर्ता अंतरिम राहत की मांग कर सकते हैं.’


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पड़ोसी हाई कोर्टों का ‘विवेक’ और एक ‘बड़ा मुद्दा’

जस्टिस दीक्षित ने बुधवार को सुनवाई की शुरुआत में ही वकील को ये संकेत दे दिए थे कि वह मामला बड़ी पीठ को भेजने का विचार रखते हैं.

उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि इस मामले पर किसी बड़ी बेंच को विचार करना चाहिए. पड़ोसी राज्यों की हाई कोर्टों ने अपने विवेक के आधार पर जो फैसले लिए हैं, उन पर भी विचार किए जाने की जरूरत है.’

इससे पूर्व, मंगलवार को सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने इस बात पर जोर देने के लिए हिजाब इस्लाम में धार्मिक संस्कृति का एक अनिवार्य हिस्सा है, केरल हाई कोर्ट के साथ-साथ मद्रास हाई कोर्ट के फैसले का भी हवाला दिया था. कामत ने 5 फरवरी के कर्नाटक सरकार के उस आदेश की आलोचना की, जिसमें ‘सामान्य व्यवस्था’ बनाए रखने के नाम पर हिजाब पर प्रतिबंध लगाने के कॉलेज के निर्देश का समर्थन किया गया था.

कामत ने कोर्ट को बताया कि केरल हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में 2016 में मुस्लिम छात्राओ को हिजाब पहनकर सीबीएसई ऑल-इंडियन प्री-मेडिकल एंट्रेंस टेस्ट में उपस्थित होने की अनुमति दी थी. उन्होंने मद्रास हाई कोर्ट के एक फैसले का भी हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि मुस्लिम महिलाओं के लिए पर्दा जरूरी नहीं है, लेकिन हिजाब अपरिहार्य है.

याचिकाकर्ताओं के वकील ने केस रेफर करने के जस्टिस दीक्षित के प्रस्ताव से सहमति जताई, लेकिन साथ ही कुछ अंतरिम राहत देने की गुहार लगाई.

एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने तर्क दिया कि मामले में शामिल एक बड़ा सवाल यह है कि क्या राज्य को यूनिफॉर्म निर्धारित करने का अधिकार है और यदि ऐसा है, तो क्या इसे ठीक से निर्धारित किया गया है.

हालांकि, राज्य ने अपने तरफ से स्पष्ट किया कि उसने कोई यूनिफॉर्म निर्धारित नहीं की है और अदालत को बताया कि यह तय करना कॉलेज समिति पर छोड़ा गया है.

हेगड़े ने न्यायाधीश से आग्रह किया, ‘किसी किशोर लड़की को शिक्षा के लिए अपने विवेक के साथ समझौता करने को मजबूर नहीं किया जाना चाहिए. उन्हें अपने टीचर्स के दर्शन करने दें.’

कामत ने भी अदालत से ‘अंतरिम तौर पर कुछ व्यवस्था’ करने को कहा. उन्होंने कहा कि जस्टिस दीक्षित सभी कानूनी पहलुओं को खुला रखते हुए मामला रेफर कर सकते हैं. उन्होंने कहा, ‘हालांकि, स्टूडेंट चूंकि कॉलेज जा रहे थे, इसलिए उन्हें अगले दो महीनों तक पढ़ने की अनुमति दें.’

राज्य के महाधिवक्ता प्रभुलिंग नवदगी ने मामला बड़ी बेंच को भेजने के खिलाफ दलील दी. उनके मुताबिक, याचिकाएं विचारणीय ही नहीं हैं और गलत धारणा पर आधारित हैं. उन्होंने कहा, ‘इसलिए, प्रथम दृष्टया तो कोई मामला ही नहीं बनता है.’

एजी ने तर्क दिया कि हिजाब धार्मिक व्यवस्था का अभिन्न अंग नहीं है, और केरल हाई कोर्ट के उसी फैसले, जिस पर याचिकाकर्ताओं का दावा टिका है, के एक बिंदु को रेखांकित किया कि एक ‘अलग दृष्टिकोण’ हमेशा संभव है.

एजी ने कहा, ‘यह केस एक बड़ा मुद्दा बन चुका है और हर कोई फैसले के लिए अदालत से उम्मीदें लगाए है.’

कॉलेज डेवलपमेंट कमेटी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता साजन पोवैय्या ने भी जस्टिस दीक्षित से इस केस में फैसला सुनाने को कहा क्योंकि उनके लिए चिन्हित रोस्टर उन्हें याचिकाओं में उठाए गए सवालों के निपटारे की अनुमति देता है. वकील ने कहा कि यूनिफॉर्म का निर्धारण एक साल पहले किया गया था और जब इसे लाया गया था तब किसी ने आपत्ति नहीं जताई थी.

सुनवाई के अंत में याचिकाकर्ता पक्ष के एक वकील ने अदालत से राजनेताओं के लिए भी उसी तरह की कुछ लाइनें बोलने का अनुरोध किया, जैसी कि उन्होंने मंगलवार को छात्रों और जनता के लिए कही थी. लेकिन जस्टिस दीक्षित ने किसी और मौखिक टिप्पणी से इनकार करते हुए ‘बहुत बहुत धन्यवाद’ के साथ कार्यवाही खत्म कर दी.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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