नयी दिल्ली, 26 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों ने कानूनों को सरल, सुलभ, अधिक मानवीय और युवा पीढ़ी के लिए प्रासंगिक बनाने की ‘सख्त आवश्यकता’ जताई है और कहा है कि देश का संविधान न केवल निरंतर विकसित हो रहा है, बल्कि बदलते समय में जनता की आशाओं और आकांक्षाओं के अनुरूप ढलने में सक्षम भी है।
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने संविधान दिवस के अवसर पर शीर्ष अदालत की ओर से आयोजित कार्यक्रम में कहा कि भारतीय संविधान निरंतर विकसित हो रहा है और बदलते समय तथा बदली परिस्थितियों में भी जनता की उम्मीदों और आकांक्षाओं के अनुरूप ढलने में सक्षम है।
अपने स्वागत भाषण में न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि चूंकि देश संविधान को अपनाने के 75वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है, इसलिए ‘खुद को अपनी क्षमता की याद दिलाना’ महत्वपूर्ण है।
उन्होंने कहा, ‘‘खुद के लिए संविधान अख्तियार करने के बाद, हमें संवैधानिक चेतना बढ़ाकर समाज के सभी हिस्सों को इसके मूल्यों का पोषण करने के लिए सशक्त बनाना चाहिए।’’
न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि सजीव संवैधानिकता को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के मौलिक अधिकार की व्याख्या में बेहतरीन तरीके से देखा गया है। संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा से संबंधित है।
उन्होंने कहा, ‘‘बीते वर्षों में जीवन का मौलिक अधिकार, सम्मान के साथ जीने के अधिकार, निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार, न्याय तक पहुंच, पर्याप्त पोषण का अधिकार, शिक्षा का अधिकार और कई अन्य सामाजिक-आर्थिक अधिकारों को शामिल करने के लिए विकसित हुआ है।’’
उन्होंने शीर्ष अदालत के उन ऐतिहासिक फैसलों का भी हवाला दिया, जिसमें निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देना और भारतीय दंड संहिता की धारा 377 से संबंधित फैसला शामिल है। न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि निजी स्थान पर वयस्क समलैंगिकों या विषमलैंगिकों के बीच सहमति से यौन संबंध अपराध की श्रेणी में नहीं आता।
उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में, संविधान में जान फूंकने की कवायद को (खासकर उच्च न्यायपालिका में) बड़े पैमाने पर न्यायिक परियोजना के रूप में देखा गया है।
न्यायमूर्ति कौल ने कहा, ‘‘भविष्य के लिए मेरी आशा यह है कि संवैधानिक मूल्यों के बारे में बातचीत हमारी अदालतों के समक्ष मुकदमेबाजी तक ही सीमित नहीं होंगी, बल्कि निजी क्षेत्र सहित सभी क्षेत्रों में शामिल होंगी।’’
इस कार्यक्रम में उच्चतम न्यायालय के दूसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश संजीव खन्ना ने कहा कि कानूनों को सरल, सुलभ, अधिक मानवीय और युवा पीढ़ी के लिए प्रासंगिक बनाने की ‘सख्त जरूरत’ है।
न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि भारतीय संविधान लाखों लोगों के जीवन पर प्रभाव डालने वाला एक ‘सजीव दस्तावेज’ है। उन्होंने सभी से ‘दृढ़ संकल्प, एकता और आशावाद के साथ आगे बढ़ने’ का आग्रह किया। वह अगले साल नवंबर में मौजूदा प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की सेवानिवृत्ति के बाद देश के अगले प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) बनने वाले हैं।
न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा, ‘‘चूंकि हम 74वां संविधान दिवस मना रहे हैं, हम खुद को अपने राष्ट्र की यात्रा में एक महत्वपूर्ण क्षण में पाते हैं। भारतीय संविधान को बार-बार एक सजीव दस्तावेज के रूप में वर्णित किया गया है, क्योंकि यह हमारे दैनिक जीवन का एक अभिन्न अंग है। इसने 1950 में 35 करोड़ लोगों का जीवन बदल दिया था और आज भी 140 करोड़ लोगों के जीवन पर इसकी अमिट छाप और प्रभाव बना हुआ है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘आज जब हम अपनी विधि व्यवस्था के उद्देश्यों पर विचार कर रहे हैं, तो हमें अपने कानूनों को अधिक सरल और सुलभ (एवं) युवा पीढ़ी के लिए प्रासंगिक तथा अधिक मानवीय बनाने की तत्काल आवश्यकता को समझना चाहिए।’’
न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि सकारात्मक कार्रवाई, एक मजबूत केंद्र के साथ एक अद्वितीय संघीय प्रणाली, निष्पक्षता, 14 वर्ष की आयु तक के बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार, स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव तथा न्यायालयों द्वारा संविधान के अनुच्छेद 21 की व्याख्या सभी को भविष्य की दिशा तय करने के लिए प्रेरित करती हैं।
इस कार्यक्रम में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और कई अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।
संविधान सभा द्वारा 26 नवंबर 1949 में भारत के संविधान को अंगीकार करने के उपलक्ष्य में 2015 से इस दिन को ‘संविधान दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। इससे पहले, इस दिन को कानून दिवस के रूप में मनाया जाता था।
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