नयी दिल्ली, नौ अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि आर्थिक अपराध एक अलग श्रेणी है, जिसमें गहरी साजिशें रची जाती हैं और सार्वजनिक धन की भारी हानि होती है, इसलिए इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पी.बी. वराले की पीठ ने कहा कि अग्रिम जमानत देना “निश्चित रूप से नियम नहीं” है।
अदालत ने कहा कि जो आरोपी लगातार अदालत में उपस्थित न होकर कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करने से बचते हैं और कार्यवाही को बाधित करने के लिए खुद को छिपाते हैं, वे अग्रिम जमानत के हकदार नहीं हैं।
इसमें कहा गया है, “यदि समाज में कानून का शासन कायम रहना है, तो प्रत्येक व्यक्ति को कानून का पालन करना होगा, कानून का सम्मान करना होगा तथा कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करना होगा।”
पीठ की यह टिप्पणी उस समय आई जब उसने गंभीर कपट अन्वेषण कार्यालय (एसएफआईओ) की 16 अपील को स्वीकार कर लिया और 9,000 करोड़ रुपये से अधिक के आदर्श क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी गबन मामले में आरोपियों को दी गई अग्रिम जमानत रद्द कर दी।
उन्होंने कहा, “यह अब कोई नयी बात नहीं रह गई है कि आर्थिक अपराध एक अलग वर्ग हैं, क्योंकि इनमें सार्वजनिक धन की भारी हानि से संबंधित गहरी साजिशें होती हैं, और इसलिए ऐसे अपराधों को गंभीरता से लिये जाने की आवश्यकता है। इन्हें गंभीर अपराध माना जाता है जो पूरे देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करते हैं और इस प्रकार देश के वित्तीय स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं।”
भाषा प्रशांत सुरेश
सुरेश
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.