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Thursday, 14 November, 2024
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शराबबंदी कानून के मामलों से निपटने के लिए निर्दिष्ट पीठों के गठन पर विचार करें: न्यायालय

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नयी दिल्ली, 10 मार्च (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को पटना उच्च न्यायालय में जमानत के मामलों के निपटारे में देरी पर चिंता व्यक्त की और सुझाव दिया कि बिहार शराबबंदी कानून से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिए निर्दिष्ट पीठ बनाने से मामलों का कुशलता से निपटारा करने में मदद मिलेगी।

न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति अभय एस ओका की पीठ ने कहा, ‘‘एक बार आरोपपत्र दाखिल हो जाने के बाद, मजिस्ट्रेट के समक्ष मुकदमा योग्य अपराधों में आरोपियों को हिरासत में लेने की जरूरत कहां है। उच्च न्यायालय में बहुत सारे मामले लंबित हैं और राज्य के साथ कुछ गड़बड़ है। हमें पता चला है कि (पटना उच्च न्यायालय में) कुल न्यायाधीशों के लगभग 60 प्रतिशत न्यायाधीश केवल जमानत मामलों की सुनवाई कर रहे हैं। यह जमानती अदालत नहीं बल्कि संवैधानिक अदालत है।

पीठ ने कहा, ‘‘शराबबंदी से जुड़े मामलों के लिए निर्दिष्ट पीठ बनाने और अधिकतम सात साल या उससे कम सजा के प्रावधान वाले मामलों में सुनवाई करने के सुझाव से अर्जियों का कुशलता से निपटारा करने में मदद मिलेगी।’’

पीठ पटना उच्च न्यायालय में एक जमानत अर्जी के देरी से सूचीबद्ध होने से संबंधित एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी और उच्च न्यायालय से अधिवक्ता शोएब आलम द्वारा इस संबंध में दिए गए सुझावों को लागू करने की व्यवहार्यता पर विचार करने को कहा।

शीर्ष अदालत ने इससे पहले आलम और मामले में उपस्थित अन्य अधिवक्ताओं से पटना उच्च न्यायालय में देरी से सूचीबद्ध होने और जमानत अर्जियों के बड़े पैमाने पर लंबित होने की समस्या से निपटने के लिए सुझाव मांगे थे। पीठ ने उच्च न्यायालय का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता गौरव अग्रवाल को सुझावों को विचार के लिए उच्च न्यायालय को भेजने के लिए कहा था।

आलम ने उल्लेख किया कि नोट में दिए गए सुझाव दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के प्रावधानों पर आधारित हैं और उच्चतम न्यायालय के फैसले , सीआरपीसी के प्रावधानों, गिरफ्तारी के संबंध में निर्णयों को देश भर में लागू करने की आवश्यकता है ताकि लंबित जमानत अर्जियों की संख्या में कमी लाने में मदद मिल सके।

पीठ ने कहा, ‘‘परीक्षण आधार पर इसे बिहार में लागू करें और देखें कि परिणाम क्या होता है। यदि आवश्यक हुआ तो हम निर्देश पारित करेंगे।’’

शीर्ष अदालत ने सीआरपीसी के प्रावधानों के क्रियान्वयन और अर्नेश कुमार के फैसले में निर्धारित दिशा-निर्देशों का जिक्र करते हुए कहा कि व्यवहार में उन सिद्धांतों का बहुत कम अनुपालन होता है।

मामले में आगे 19 अपैल को सुनवाई होगी। शीर्ष अदालत ने 14 जनवरी को उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित जमानत अर्जियों और इन अर्जियों पर सुनवाई में देरी के कारण विचाराधीन कैदियों की लंबी कैद पर गंभीर चिंता व्यक्त की थी। पीठ ने मामले के पक्षकारों और अदालत में मौजूद अधिवक्ता शोएब आलम से सुझाव मांगे थे।

भाषा आशीष नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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