नई दिल्ली: केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता नारायण राणे की ‘थप्पड़ वाली टिप्पणी’, जिसके निशाने पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे थे, ने असंसदीय भाषा के इस्तेमाल को लेकर उनकी काफी आलोचना कराई है.
इस पर आक्रोश इस हद तक बढ़ गया कि राणे को कुछ समय के लिए गिरफ्तार तक कर लिया गया, वहीं शिवसेना कार्यकर्ताओं ने कुछ शहरों में भाजपा कार्यालयों में तोड़फोड़ की और राणे समर्थकों से भिड़ भी गए.
शिवसेना नेता संजय राउत ने पार्टी के मुखपत्र सामना में अपने साप्ताहिक कॉलम में आरोप लगाया कि राणे बार-बार इसी तरह की गलतियां करते हैं.
लेकिन राउत की पार्टी के प्रमुख उद्धव ठाकरे भी ऐसी टिप्पणी कर चुके हैं. राणे की गिरफ्तारी के बाद से ऐसे वीडियो सामने आने लगे हैं जिसमें सामान्यत: मितभाषी माने जाने वाले ठाकरे को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर निशाना साधते देखा जा सकता है. इसमें उन्होंने कहा था कि ऐसा लग रहा है कि वह उन्हें चप्पल से पीटें.
यह कथित टिप्पणी 2018 में उस समय की गई थीं जब आदित्यनाथ ने मराठा राजा शिवाजी की एक प्रतिमा पर माल्यार्पण करने के दौरान कथित तौर पर चप्पलें पहन रखी थीं.
विशेषज्ञों का कहना है कि हालिया विवाद राजनीतिक विमर्श में बदलाव को दर्शाता है, जिसमें राजनेताओं द्वारा एक-दूसरे के लिए इस्तेमाल की जाने वाली टिप्पणियां कभी बहुत सभ्य होने की जगह अब अपमानजनक और असंसदीय होने लगी है.
राजनीतिक विश्लेषक और चुनाव विज्ञानी संजय कुमार कहते हैं शुरुआती दशकों में जहां कभी-कभार राजनेताओं की तरफ से असंसदीय भाषा का सहारा लिया जाता था, वहीं मौजूदा दौर में यह अपवाद के बजाये एक तरह का ढर्रा ही बन गया है.
संजय कुमार ने कहा, ‘राजनीति इस समय बहुत ही निम्न स्तर पर पहुंच गई है.’ साथ ही जोड़ा इस तरह की टिप्पणियां और भाषा सिर्फ किसी एक पार्टी तक सीमित नहीं है.
उन्होंने कहा कि अंतर केवल यह है कि किस हद तक असंसदीय भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा है.
सोनिया गांधी हमेशा निशाने पर रहीं
कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को ऐसी तमाम आपत्तिजनक टिप्पणियों का सामना करना पड़ा है. 1999 में भाजपा नेता प्रमोद महाजन ने सोनिया गांधी की तुलना मोनिका लेविंस्की से की थी, जिसके साथ पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन का अफेयर था.
लगभग दो दशक बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोनिया गांधी पर परोक्ष तौर पर निशाना साधते हुए उन्हें ‘कांग्रेस की विधवा’ कह डाला था.
2018 में राजस्थान में चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने कांग्रेस पर कई घोटालों का आरोप लगाया और कहा कि इसमें विधवा पेंशन योजना भी शामिल है.
उन्होंने सवाल उठाया, ‘ये कांग्रेस की कौन-सी विधवा थी जिसके खाते में पैसा जाता था?’
वर्षों पहले 2015 में बिहार भाजपा के राजनेता गिरिराज सिंह ने कांग्रेस अध्यक्ष पर हमला करते हुए राजनीतिक आचरण पूरी तरह ताक पर रखते हुए इसमें नस्लभेद भी जोड़ दिया था.
उन्होंने पूछा था, ‘अगर राजीव गांधी ने गोरी चमड़ी वाली महिला की जगह किसी नाइजीरियाई महिला से शादी की होती तो क्या कांग्रेस ने उनका (सोनिया गांधी) नेतृत्व स्वीकार कर लिया होता?’
हालांकि, बाद में गिरिराज सिंह ने इसके लिए माफी मांगी थी.
लेकिन इसने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता लालू प्रसाद यादव को इसी तरह की अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करने से नहीं रोका.
लालू ने कहा, ‘उन्हें (गिरिराज को) चूड़ियां पहनाई जानी चाहिए और सिंदूर, बिंदी लगाई जानी चाहिए और उनके चेहरे पर कालिख पोत देनी चाहिए क्योंकि उन्होंने अभद्रता की सीमाएं लांघी हैं.’
कांग्रेस, भाजपा से बेहतर नहीं
जब असंसदीय भाषा के इस्तेमाल की बात आती है तो कांग्रेस में इसमें कहीं पीछे नहीं रहती है. पार्टी नेता कभी-कभार एक-दूसरे के खिलाफ एक से एक घटिया टिप्पणियों का इस्तेमाल करते नजर आते हैं.
2013 में कांग्रेस नेता और पार्टी के तत्कालीन महासचिव दिग्विजय सिंह ने पार्टी सांसद और राहुल गांधी की करीबी सहयोगी मीनाक्षी नटराजन पर आपत्तिजनक टिप्पणी करते हुए उन्हें ‘सौ टका टंच माल’ कह दिया था.
इस मामले में मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ भी उनकी श्रेणी में ही शामिल हैं. मध्यप्रदेश में 2020 के उपचुनाव के दौरान कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में शामिल हो गईं पार्टी नेता इमरती देवी को एक ‘आइटम’ बता डाला. इसके जवाब में उन्होंने भी कमलनाथ को ‘लुच्चा-लफंगा’ और शराबी करार देने में देर नहीं लगाई.
अपनी असंसदीय भाषा के कारण परेशानी में आने वाले एक और कांग्रेसी नेता थे सलमान खुर्शीद. 2014 के लोकसभा चुनावों के लिए प्रचार करने के दौरान खुर्शीद ने नरेंद्र मोदी को नपुंसक कह दिया था.
2002 के दंगों का जिक्र करते हुए खुर्शीद ने उस समय कहा था, ‘हम आप (मोदी) पर लोगों को मारने का आरोप नहीं लगाते हैं. हमारा आरोप है कि तुम नपुंसक हो. आप हत्यारों को नहीं रोक पाए.’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस तरह की टिप्पणियों को केवल झेला ही नहीं है, बल्कि मौका पड़ने पर खुद भी इसी तरह की आपत्तिजनक टिप्पणियां करते रहे हैं.
2012 में तत्कालीन कैबिनेट मंत्री शशि थरूर पर निशाना साधते हुए मोदी ने उनकी दिवंगत पत्नी सुनंदा पुष्कर को ‘50 करोड़ रुपये की गर्लफ्रेंड’ करार दे दिया था. मोदी ने कहा था, ‘वाह क्या गर्लफ्रेंड है. अपने कभी देखी है 50 करोड़ की गर्लफ्रेंड?’
2016 में भाजपा नेता दयाशंकर सिंह (जिन्हें बाद में पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था) ने बसपा प्रमुख मायावती की तुलना एक वेश्या से कर दी थी.
दयाशंकर सिंह ने मायावती को वेश्या से भी बदतर बताते हुए कहा था, ‘यूपी में इतनी बड़ी नेता मायावती पार्टी के टिकट ऐसे किसी को ही बेचती हैं जो उन्हें सबसे ज्यादा पैसा देता है. अगर किसी ने उन्हें टिकट के लिए 1 करोड़ रुपये दिए हैं, तो भी वह इसे 2 करोड़ की पेशकश करने वाले किसी दूसरे व्यक्ति को बेच सकती हैं.’
राजनीतिक विमर्श में बदलाव
मौजूदा दौर की राजनीति में इस तरह की कटुता बढ़ने के संदर्भ में राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई बताते हैं कि पहले आरोप-प्रत्यारोप का स्तर बहुत सभ्य होता था और सोच-समझकर निशाना साधा जाता था, जिसमें कोई भी एक-दूसरे का नाम नहीं लेता था और टिप्पणी व्यक्तिगत हमलों के बजाये मुद्दों पर अधिक केंद्रित होती थी.
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हालांकि, उन्होंने कहा कि 1960 और 1970 के दशक में भी विपक्षी नेताओं के बीच सभ्य भाषा के इस्तेमाल के बावजूद कुछ ऐसे उदाहरण थे जब नेताओं ने एक-दूसरे पर कड़ा हमला बोला.
1966 में समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया ने इंदिरा गांधी को ‘गूंगी गुड़िया’ कहा था. मोरारजी देसाई को सीआईए एजेंट कहा जाता था. और 1989 के संसदीय चुनाव के दौरान बोफोर्स घोटाले के बाद विपक्ष का पसंदीदा चुनावी नारा ‘गली-गली में शोर है, राजीव गांधी चोर है’ था.
संजय कुमार कहते हैं कि धीरे-धीरे विचारधारा की बात पीछे हो गई और राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और किसी भी कीमत पर चुनाव जीतने पर पूरा ध्यान केंद्रित हो गया.
संजय कुमार ने कहा, ‘पिछले एक दशक के दौरान राजनेताओं का नाम लेकर निशाना साधना बढ़ा है. पहले नेता एक-दूसरे का नाम नहीं लेते थे और मुख्य रूप से मुद्दों की ओर इशारा करते थे. अब, राजनेताओं पर हमले उनकी राजनीतिक विचारधारा के आधार पर नहीं होते बल्कि बेहद ही व्यक्तिगत स्तर पर होते हैं.’
नाम न छापने की शर्त पर चेन्नई के एक इतिहासकार और लेखक ने कहा कि तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्रियों एम.जी. रामचंद्रन या एमजीआर और करुणानिधि के दौर में यह सब नहीं होता था.
एकदम कट्टर प्रतिद्वंद्वी होने के बावजूद उन्होंने कभी एक-दूसरे पर कटाक्ष नहीं किया और कभी एक-दूसरे के नाम का उल्लेख भी नहीं किया. उन्होंने बताया, ‘करुणानिधि के लिए सबसे बड़ा अपमान यह था कि एमजीआर उनकी अनदेखी करते थे.’
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