नई दिल्ली: कांग्रेस नेता और सांसद जयराम रमेश ने उच्चतम न्यायालय का रुख कर अधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 के विभिन्न प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है.
यह अधिनियम हाल में संसद के मॉनसन सत्र के दौरान पारित किया गया था और इसे 13 अगस्त को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिल गई.
रमेश ने अपनी याचिका में कहा है कि उन्होंने जनहित में याचिका दायर कर बताया है कि अधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 की धारा 3(1), 3(7), 5 और 7(1) को संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 50 के प्रतिकूल हैं.
रमेश ने अधिवक्ता अभिषेक जेबराम के मार्फत दायर अपनी याचिका में कहा है कि अगस्त 2021 में अधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 को संसद के दोनों सदनों ने पारित किया और इसे 13 अगस्त 2021 को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिल गई.
उनकी याचिका में कहा गया है, ‘अधिकरण अध्यादेश को निरस्त करने वाला अधिकरण अधिनियम चार अप्रैल 2021 के पूर्व प्रभाव से लागू किया गया है.’
उन्होंने कहा कि इस अधिनियम में ऐसे विभिन्न प्रावधान शामिल हैं जो अधिकरण अध्यादेश में शामिल प्रावधानों के समान हैं, जिन्हें इस न्यायालय ने 14 जुलाई को रद्द कर दिया था.
याचिका में कहा गया है, ‘अधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 की धारा 3(1) अधिकरणों में 50 साल से कम आयु के व्यक्तियों की नियुक्ति पर रोक लगाती है, जो संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 50 का हनन है. यह प्रावधान वित्त अधिनियम, 2017 की धारा 184(1) के समान है जिसे इस न्यायालय ने रद्द कर दिया था.’
इसमें कहा गया है कि अधिकरण अधिनियम की धारा 3(7), जो तलाश- सह-चयन समिति द्वारा दो नामों की समिति की केंद्र सरकार को सिफारिश करने का अधिकार देती है, शक्तियों के पृथक्करण और न्यायिक स्वतंत्रता के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है.
याचिका में कहा गया है कि अधिनियम की धारा 5 अध्यक्ष एवं सदस्य का कार्यकाल चार वर्ष निर्धारित करती है जो न्यायिक स्वतंत्रता व संविधान के अनुच्छेद 14 पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है.
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