(सुदीप्तो चौधरी)
शांतिनिकेतन (प.बंगाल), 12 फरवरी (भाषा) कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) के बीच एकजुटता की ‘‘जबरदस्त जरूरत’’ की वकालत करते हुए नोबेल पुरस्कार विजेता प्रो. अमर्त्य सेन ने कहा कि दोनों दलों को दिल्ली विधानसभा चुनाव आपसी सहमति से एक साथ मिलकर लड़ना चाहिए था।
सेन ने पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में अपने पैतृक आवास पर ‘पीटीआई-भाषा’ से विशेष साक्षात्कार में यह भी कहा कि यदि भारत में धर्मनिरपेक्षता को बनाये रखना है तो न केवल एकजुटता होनी चाहिए बल्कि उन चीजों को लेकर सहमति भी होनी चाहिए जिन्होंने भारत को बहुलवाद का उत्कृष्ट उदाहरण बनाया है।
सेन ने कहा, ‘‘मुझे नहीं लगता कि दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाना चाहिए, लेकिन निश्चित रूप से इसका अपना महत्व है। और यदि ‘आप’ वहां जीत जाती तो उस जीत का अपना अलग महत्व होता।’’
‘आप’ की असफलता के कारणों पर गहनता से विचार करते हुए प्रख्यात अर्थशास्त्री ने कहा कि इसका एक कारण ‘‘उन लोगों के बीच एकजुटता का नहीं होना है, जो दिल्ली में हिंदुत्व-उन्मुख सरकार नहीं चाहते थे’’।
उन्होंने कहा, ‘‘यदि आप कई सीट पर मतों की संख्या को देखें तो ‘आप’ पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की बढ़त का अंतर कांग्रेस को प्राप्त मतों से कम, कभी-कभी तो बहुत कम था।’’
उन्होंने कहा कि एक अन्य महत्वपूर्ण सवाल नीति के संबंध में स्पष्टता का है।
सेन ने दावा किया, ‘‘आम आदमी पार्टी की प्रतिबद्धताएं क्या थीं? मुझे नहीं लगता कि ‘आप’ यह स्पष्ट करने में सफल रही कि वह पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष है और सभी भारतीयों के लिए है। हिंदुत्व को लेकर बहुत ज्यादा प्रचार किया गया। इसलिए यह भी स्पष्ट नहीं है कि धार्मिक सांप्रदायिकता के खिलाफ वह कितनी प्रतिबद्ध थी। ‘आप’ ने इस मामले में स्पष्ट रुख नहीं अपनाया।’’
उन्होंने स्कूली शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा के संबंध में ‘आप’ के प्रयासों की सराहना की और सुझाव दिया कि कांग्रेस को भी इन मुद्दों पर पार्टी के साथ शामिल होना चाहिए।
सेन ने कहा, ‘‘मेरी एक बेटी दिल्ली में रहती है और वह और उसका परिवार स्कूली शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में ‘आप’ के प्रयासों की प्रशंसा करते हैं। कांग्रेस ‘आप’ के साथ मिलकर यह कह सकती थी कि, ‘हमें उनके स्कूल पसंद हैं, हमें उनके अस्पताल पसंद हैं, हम उनका विस्तार करना चाहते हैं और उससे भी आगे जाना चाहते हैं’। यह उस रुख से बेहतर होता जो अपनाया गया था।’’
उन्होंने कहा, ‘‘तथ्य यह है कि यह एक ऐसी लड़ाई है जिसे ‘आप’ और ‘इंडिया’ गठबंधन को हारना नहीं चाहिए था। लेकिन वे हार गए।’’
यह पूछे जाने पर कि क्या दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों का भारतीय राजनीति पर कोई असर पड़ेगा, अर्थशास्त्री ने कहा कि पार्टियों को इस बारे में स्पष्ट होना चाहिए कि वे कहां खड़े हैं और क्यों।
सेन ने कहा, ‘‘हां, बिल्कुल। मुझे लगता है कि इसका व्यापक असर उत्तर प्रदेश के चुनावों पर पड़ सकता है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘आम आदमी पार्टी की चुनावी हार से सबक यह है कि समाजवादी पार्टी ने आम चुनाव के समय जो किया, उसे काफी हद तक दोहराया जाना चाहिए, यानी हिंदुत्व की राजनीति के खिलाफ स्पष्ट रुख अपनाना। ज्यादातर भारतीय हिंदू राष्ट्र नहीं चाहते।’’
यह पूछे जाने पर कि क्या दिल्ली चुनाव के नतीजों का अगले साल पश्चिम बंगाल में होने वाले विधानसभा चुनाव पर कोई असर पड़ सकता है, सेन ने कहा कि भारत में हर चुनाव का दूसरे चुनावों पर असर पड़ता है और संभवत: इसका असर भी हो सकता है।
सेन ने कहा, ‘‘बंगाल में भले ही तृणमूल कांग्रेस, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) और कांग्रेस जैसी धर्मनिरपेक्ष पार्टियां अलग-अलग रास्ते पर चली गई हों लेकिन धर्मनिरपेक्षता के महत्व, सभी के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा और यहां तक कि सामाजिक न्याय के लिए सहमति अभी भी बनी हुई है। मुझे नहीं लगता कि पश्चिम बंगाल में दिल्ली जैसी हार होगी।’’
उन्होंने कहा कि उनका सपना है कि एकजुट भारत तेजी से आगे बढ़े और लोगों का जीवन बेहतर हो।
भाषा
देवेंद्र नरेश
नरेश
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