नयी दिल्ली, सात मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि भूमि अधिग्रहण के लिए मुआवजे का आकलन यांत्रिक तरीके से नहीं किया जा सकता, बल्कि इसे समानता, समता और न्याय के आधार पर तय किया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा कि भूमि अधिग्रहण न्यायशास्त्र में एक मूलभूत सिद्धांत यह है कि समान अवस्थिति और विकासात्मक संभावना वाली भूमि का मुआवजा समान रूप से दिया जाना चाहिए, जब तक कि स्पष्ट, वस्तुनिष्ठ भेद को उचित न ठहराया जाए।
पीठ ने कहा कि उसे भूमि अधिग्रहण के मामलों में ‘अत्यधिक सकारात्मक’ दृष्टिकोण के प्रति आगाह करना चाहिए।
इसमें कहा गया है, ‘‘यह अच्छी तरह से समझा जा चुका है कि मुआवज़ा निर्धारित करने की प्रक्रिया कठोर औपचारिकता के विपरीत है। मुआवजे का आकलन यांत्रिक या फार्मूलाबद्ध तरीके से नहीं किया जा सकता, बल्कि यह समानता, समता और न्याय के विचारों द्वारा निर्देशित होना चाहिए।’’
उच्चतम न्यायालय का यह फैसला हरियाणा राज्य औद्योगिक एवं अवसंरचना विकास निगम तथा कई भूस्वामियों द्वारा दायर की गई ‘क्रॉस-अपील’ पर आया, जिसमें गुरुग्राम जिले के फजलवास और कुकरोला गांवों में स्थित भूमि के लिए पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए मुआवजे की राशि को चुनौती दी गई थी।
पीठ ने कहा कि अधिग्रहण की कार्यवाही अप्रैल 2008 में शुरू हुई थी और अधिग्रहण का सार्वजनिक उद्देश्य चौधरी देवी लाल औद्योगिक मॉडल टाउनशिप का निर्माण करना था। उसने कहा कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 के तहत अनिवार्य अधिग्रहण के लिए मुआवजे का निर्धारण मूलतः समानता की एक कवायद थी।
पीठ ने कहा कि भारत में अनिवार्य अधिग्रहण का कानून एक ‘सटीक विज्ञान’ होने के बजाय न्याय, समानता और निष्पक्षता के स्थायी सिद्धांतों को कायम रखने का प्रयास करता है।
इसमें कहा गया है, ‘‘यह लोकाचार 1894 के अधिनियम के प्रक्रियात्मक ढांचे में परिलक्षित होता है और इसे इसके भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 द्वारा और अधिक परिष्कृत किया गया है।’’
पीठ ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने लगातार यह माना है कि बाजार मूल्य और उसके अनुरूप मुआवजे का निर्धारण करते वक्त भूमि की कीमतों में समय के साथ हुई वृद्धि को भी ध्यान में रखना चाहिए।
पीठ ने कुकरोला गांव के भूस्वामियों की अपील को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया और उच्च न्यायालय के मई 2022 के फैसले को संशोधित किया। इसने ‘बाहरी बेल्ट’ यानी एनएच-8 से 5 एकड़ से आगे की भूमि के लिए 62,14,121 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से मुआवजा देने के उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा।
पीठ ने कहा, ‘‘आंतरिक बेल्ट, अर्थात कुकरोला में स्थित भूमि और एनएच-8 से सटी पांच एकड़ गहराई तक की भूमि के लिए दिया गया मुआवजा फजलवास गांव के मुआवजे के बराबर है, अर्थात 1,21,00,000 रुपये प्रति एकड़।’’
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अमित सुरेश
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