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Friday, 22 November, 2024
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कम्युनिकेशन ब्लैकआउट, LOC पर ज्यादा आक्रामकता—जम्मू क्यों बढ़ते आतंकवाद का सामना कर रहा

पुलिस के आंकड़ों के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में 2020 में विभिन्न आतंकी गुटों के लिए बतौर ओजीडब्ल्यू काम करने के आरोप में 25 लोगों को गिरफ्तार किया गया है—यह संख्या 2015 से 2019 के बीच हर साल के आंकड़े से दोगुनी है.

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श्रीनगर: ‘ओवरग्राउंड वर्कर्स’ (ओजीडब्ल्यू) की गिरफ्तारी और आतंकवादियों को मार गिराए जाने की घटनाओं में पिछले साल की तुलना में दोगुनी वृद्धि के साथ जम्मू में आतंकी गतिविधियों में तेजी देखी जा रही है. जम्मू-कश्मीर सुरक्षा प्रतिष्ठान के अधिकारियों ने इसे जम्मू को नए सिरे से आतंकवाद की चपेट में लाने की साजिशों और अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद नियंत्रण रेखा पर अधिक आक्रामकता का नतीजा बताया है.

दिप्रिंट को मिले पुलिस डाटा के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर पुलिस ने 2020 में विभिन्न आतंकी संगठनों के लिए ओजीडब्ल्यू के तौर पर काम करने के आरोप में 25 लोगों को गिरफ्तार किया है. यह संख्या 2015 और 2019 के बीच हर साल के आंकड़े की तुलना में लगभग दोगुनी है, जब पूरे जम्मू में कभी एक दर्जन से अधिक ओजीडब्ल्यू गिरफ्तार नहीं किए गए थे.

सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने कहा कि पुष्ट तौर पर आतंकियों के इन सहयोगियों की गिरफ्तारी से आतंकवादी संगठनों के दखल और क्षेत्र में उनकी पहुंच का पता चलता है.

ओजीडब्ल्यू इस पूर्ववर्ती राज्य में आतंकियों को लॉजिस्टिक मुहैया कराने में मदद करते हैं और हथियारों और संदेशों को एक से दूसरी जगह पहुंचाने का काम भी करते हैं. सूत्रों ने कहा कि उन्हें ठिकाने बनाने का काम भी सौंपा गया है जो न केवल आतंकवादियों के लिए कई स्थानों पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराने में मददगार होते हैं बल्कि सीमा पार से आने वाले घुसपैठियों या पाकिस्तानी आतंकियों के लिए ट्रांजिट एरिया भी बन जाते हैं.

कई सुरक्षा अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि 2020 में इन आतंकवादियों ने जम्मू में घुसपैठ के लिए पहले इस्तेमाल किए जाते रहे कुछ पुराने मार्गों को सक्रिय किया है.

इसके अलावा, जम्मू में पिछले साल मुठभेड़ की कुल 13 घटनाएं हुई हैं जिसमें विदेशी आतंकियों समेत 18 आतंकवादी मारे गए. 2015 में यह आंकड़ा 20 था, जिसके बाद हर साल क्रमश: घटते हुए यह संख्या 13,7,16 रही और 2019 में नौ रह गई.

2015 में आतंकवादी घटनाओं में 13 लोग मारे गए जो क्षेत्र में कानून-व्यवस्था की स्थिति को दर्शाने वाला एक मानक है. यह संख्या 2016 और 2019 के बीच क्रमशः आठ, नौ, 13 और आठ रही थी. पिछले साल आतंकवाद से जुड़ी हिंसा में 13 लोग मारे गए थे.

डाटा यह भी बताता है कि 2020 में आठ आतंकवादियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया था, जिनमें से दो पर पिछले साल सार्वजनिक सुरक्षा कानून के तहत केस दर्ज किया गया था. 2020 में एक ओजीडब्ल्यू को भी इस कानून के तहत बुक किया गया था.

कश्मीर की तुलना में जम्मू संभाग में हिंसक घटनाएं काफी कम लग सकती है जहां 2020 में 203 आतंकवादी मारे गए है. लेकिन पिछले कुछ सालों के आंकड़ों ने अधिकारियों को 2021 में सुरक्षा को प्राथमिकता देने के लिए प्रेरित किया है क्योंकि सुरक्षा प्रतिष्ठानों को अंदेशा है कि आतंकी संगठन जम्मू में अपनी मौजूदगी बढ़ाने के लिए और ज्यादा कोशिशें कर सकते हैं.

इंस्पेक्टर जनरल, जम्मू मुकेश सिंह कहते हैं, ‘हम 2020 में ऐसे खतरे नाकाम करने में सफल रहे हैं, लेकिन यह साल घुसपैठ और जम्मू संभाग में कानून-व्यवस्था की स्थिति को पटरी से उतारने की साजिश वाली नई चुनौतियां साथ लेकर आया है. हम हर तरह की स्थिति से निपटने के लिए तैयार हैं.’

यह जानकारी ऐसे समय में सामने आई है जबकि गृह मंत्रालय (एमएचए) की वार्षिक रिपोर्ट में बताया गया है कि 2020 में जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद 63 प्रतिशत तक घटा है.


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जम्मू में क्यों बढ़ीं गतिविधियां?

सुरक्षा अधिकारियों के अनुसार, इस क्षेत्र में आतंकवादी गतिविधियों की कोशिशें तेज होने के दो कारण है, जम्मू को एक विवादित क्षेत्र बनाने में पाकिस्तान की मंशा और यहां आधार बनाने में आतंकी संगठनों की अक्षमता.

एक सूत्र ने कहा, ‘एक तो आतंकी संगठन नहीं चाहते कि जम्मू मिलिटेंसी ग्रिड से बाहर हो जाए और आतंकवाद सिर्फ कश्मीर तक ही सीमित हो जाए. वहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान सिर्फ कश्मीर नहीं बल्कि पूरे जम्मू-कश्मीर को एक विवादित क्षेत्र का मामला बनाना चाहता है.’

सूत्र ने कहा, ‘90 के दशक में आतंकवाद के चरम पर रहने के बाद भी जम्मू को आतंकवाद की गिरफ्त में लाने की कई कोशिशें हुई, खासकर 2000 में, 2000 के दशक के मध्य में और उसके बाद 2012 में आतंकी संगठनों ने कई प्रयास किए लेकिन क्षेत्र में अपनी पैठ बढ़ाने में नाकाम रहे. बेशक, जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) उधमपुर, गुरदासपुर और पठानकोट में फिदायीन हमले करने में सक्षम रहा, लेकिन वो कश्मीर की तुलना में इस संभाग में अपने ठिकाने स्थापित नहीं कर पाया है.

एक दूसरे सूत्र ने कहा कि अनुच्छेद 370 निरस्त करने से पहले लागू किया गया कम्युनिकेशन ब्लैकआउट और कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर बढ़ी आक्रामकता भी ‘जम्मू में इस बदलाव’ की वजहों में शामिल है.

डॉ. एलोरा पुरी, जो जम्मू विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान पढ़ाते हैं, ने भौगोलिक स्थिति को आतंकी गतिविधियां बढ़ने का एक प्रमुख कारण करार दिया.

पुरी ने कहा, ‘इन घटनाओं में कोई एक जैसा पैटर्न नहीं दिखाई देता है. यह छिटपुट घटनाएं लगती हैं. हालांकि, अगर सुरक्षा बल आतंकवाद की घटनाओं में वृद्धि देख रहे हैं तो इसके संभवतः कुछ कारण हैं. पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से लेकर जम्मू तक का इलाका कश्मीर जितना दुरूह नहीं है और यहां मौसम की स्थिति भी अनुकूल है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘2000 के दशक के शुरू में जम्मू में विदेशी आतंकवादियों की संख्या बहुत अधिक थी और इसकी एक बड़ी वजह भौगोलिक स्थिति थी. जम्मू में घुसपैठ करना आसान था.’

पुराने रास्तों का इस्तेमाल

जनवरी 2020 में, जम्मू-श्रीनगर राजमार्ग पर एक टोल प्लाजा पर मुठभेड़ के दौरान तीन जैश आतंकवादी मारे गए और तीन ओजीडब्ल्यू को गिरफ्तार किया गया. माना जाता है कि नए सिरे से कोशिशों के तहत पाकिस्तान ने आतंकियों की घुसपैठ कराई थी.

एक पुलिस सूत्र ने दावा किया कि ओडब्ल्यूजी 30 से अधिक मौकों पर एक ही रास्ते से आतंकवादियों को लाने में सफल रहे थे.

पुलिस के सूत्र ने कहा, ‘हमने घुसपैठिकों को कुछ पुराने मार्गों का इस्तेमाल करते देखा है जो आतंकियों द्वारा उपयोग किए जाते रहे हैं और पिछले कुछ समय से निष्क्रिय पड़े थे. ऐसा इसलिए है क्योंकि भारतीय सेना कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर लगातार घुसपैठ की कोशिशों को नाकाम करने के लिए काफी आक्रामक तरीके से सक्रिय थी.’

सूत्र ने आगे कहा, ‘कम्युनिकेशन ब्लैकआउट ने भी विदेशी आतंकियों को अंतरराष्ट्रीय सीमा के पुराने मार्गों को चुनने का मौका दिया है. पुराने रास्तों के अलावा नियंत्रण रेखा के जरिये राजौरी जाने वाले रास्तों को भी सक्रिय किया गया है.

जम्मू-कश्मीर के एक वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी ने कहा कि नियंत्रण रेखा के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा पर भी सेना ने निगरानी बढ़ा दी है और अर्धसैनिक बलों ने घुसपैठ में काफी हद तक रोक लगाई है. अधिकारी ने कहा कि 2019 में एलओसी से घुसपैठ की 130 कोशिशें हुईं, जबकि 2020 में यह आंकड़ा 50 के करीब था.

अधिकारी ने कहा, ‘निश्चित तौर पर इसका एक मतलब यह भी है कि घुसपैठ बढ़ सकती है लेकिन जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा देने में पाकिस्तान को आतंकियों के साथ-साथ वित्तीय कमी का सामना करना पड़ रहा है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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