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Sunday, 22 December, 2024
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अभिभावकों की समिति तय करेगी निजी स्कूलों में फीस, छत्तीसगढ़ सरकार जल्द लाने जा रही है कानून

दिप्रिंट से बात करते हुए स्कूल शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव आलोक शुक्ला ने बताया कि अभी विभागीय स्तर पर चर्चा चल रही है जिसका ब्यौरा सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है.

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रायपुर : महाराष्ट्र, तमिलनाडु, राजस्थान और दिल्ली के बाद छत्तीसगढ़ में भी अब अभिभावकों की समिति तय करेगी निजी स्कूलों में फीस. राज्य सरकार इस मामले पर जल्द कानून लाने जा रही है. कैबिनेट में मसौदा जल्द भेजा जाएगा.

दिप्रिंट को मिली जानकारी के अनुसार राज्य के निजी स्कूलों में फीस नियंत्रित करने के लिए भूपेश बघेल सरकार जल्द नया कानून लाने जा रही है. इस कानून के तहत फीस नियंत्रण से संबंधित सभी मुद्दों पर हर निजी स्कूल में एक समिति बनाई जाएगी, जिसके सदस्य स्कूल मैनेजमेंट और अभिभावकों में से होंगे.

राज्य शिक्षा विभाग के अधिकारियों की मानें तो इस संबंध में विभाग ने समिति के गठन का निर्णय ले लिया है. समिति में स्कूल, अभिभावकों की उचित हिस्सेदारी रहेगी. इससे संबंधित सभी कानूनी पहलुओं का अध्यन किया जा रहा है.

14 जून को, छत्तीसगढ़ मंत्रिपरिषद की तीन-सदस्यीय उप-समिति ने निजी स्कूलों में अभिभावकों को शामिल करने वाली फीस समितियों के गठन के लिए अपना विचार रखा था.

अधिकारियों का यह भी कहना है कि दूसरे राज्यों की सरकारों द्वारा इससे संबंधित बनाए गए नियमों का भी अध्ययन किया जा रहा है, जिसके बाद छत्तीसगढ़ सरकार अपना कानून लेकर आएगी.

दिप्रिंट से बातचीत करते हुए स्कूल शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव आलोक शुक्ला ने बताया कि अभी विभागीय स्तर पर चर्चा चल रही है जिसका ब्यौरा सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है.

शुक्ला का कहना है कि निजी स्कूलों में फीस निर्धारण के लिए बनाई जानेवाली समिति के गठन को कानूनी अमलीजामा पहनाना है.

प्रमुख सचिव कहते हैं, ‘समिति के संबंध में दूसरे राज्यों द्वारा कानून बनाया गया है. हम इनका अध्ययन कर रहें हैं. एक ऐसी व्यवस्था का निर्धारण करना है जिसमें सभी स्टेक होल्डर्स शामिल हों. यह एक प्रकार से स्कूल मैनेजमेंट और अभिभावकों के बीच कन्वर्जेन्स होगा. लेकिन अंतिम निर्णय कैबिनेट को लेना है. विभाग मसौदा बनाकर सरकार को भेजेगा जो बाद में कैबिनेट के सामने लाया जाएगा.’

अभिभावकों द्वारा निजी स्कूलों के फीस बढ़ाने की कवायद के खिलाफ लगातार शिकायत की जा रही थी. अभिभावकों की शिकायत थी कि स्कूल मैनेजमेंट उन्हें कोरोना लॉकडाउन के दौर में भी फीस जमा कराने के लिए दबाव बनाते रहे हैं.

मंत्रिपरिषद उप समिति ने दी हरी झंडी

अभिभावकों द्वारा लगातार की जा रहीं शिकायतों और निजी स्कूल के मालिकों की दलीलें सुनने के बाद राज्य के शिक्षामंत्री प्रेमसाय सिंह के नेतृत्व में गठित तीन सदस्यीय राज्य मंत्रिपरिषद की उप समिति ने भी पब्लिक स्कूलों में अभिभावकों वाली फीस समिति बनाने के लिए हरी झंडी दे दिया है.

उप समिति के सदस्य गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू और कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे की उपस्थिति में आयोजित एक बैठक में तय किया गया है कि सभी निजी स्कूलों में एक समिति होगी जिसमें अभिभावक, शिक्षाविद और स्कूल प्रबंधन से जुड़े लोग शामिल होंगे. यह कमेटी स्कूल की व्यवस्था, पढ़ाई का स्तर और स्कूलों में मौजूद अमला और अन्य सुविधाओं के आधार पर फीस तय करेगी.

14 जून को हुई इस बैठक के बाद प्रेमसाय सिंह टेकाम और ताम्रध्वज साहू ने एक वक्तव्य जारी कर बताया था कि समिति द्वारा नियम-कानून बनाने के लिए शिक्षक, शिक्षाविद, स्कूल प्रबंधन और पालक संघ से सुझाव मांगे गए थे. कुल प्राप्त 1288 सुझावों के आधार पर ही निजी स्कूलों की फीस समितियों का अंतिम स्वरूप निर्धारित किया जाएगा. शुक्ला के अनुसार विभाग द्वारा समिति के स्वरूप निर्धारण के बाद इसे कैबिनेट को भेजा जाएगा.


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क्या कहते हैं अभिभावक और शिक्षक 

हमने जब निजी स्कूल में पढ़ रहे छात्रों के पालकों से बात की तो उनका कहना था कि यह समय की मांग है और सरकार को इसमें हस्तक्षेप जरूर करना चाहिए. इससे पब्लिक स्कूलों की मनमानी रुकेगी.

ऐसे ही एक अभिभावक मनी सिंह हैं, जिनके दो बच्चे रायपुर के एक बड़े ब्रांड की स्कूल में पढ़ते हैं. सिंह कहते हैं, ‘यदि सरकार निजी स्कूलों में फीस निर्धारण के लिए अभिभावकों को शामिल कर कोई समिति बनाती है, तो उसका स्वागत होगा. निजी स्कूलों ने फीस वृद्धि को लेकर मनमानी कर रहे है. कोरोना लॉकडाउन के इस दौर में ऑनलाइन क्लासेस से छात्रों का कुछ भला तो नहीं हुआ लेकिन स्कूल मैनेजमेंट को फीस लेने का बहाना जरूर मिल गया है. सरकार को समिति का कानून बनाकर कड़ाई से पालन कराना चाहिए.’


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एक अन्य अभिभावक नितिन भंसाली का कहना है कि, ‘प्रदेश में किसी सरकार ने ऐसा कदम पहली बार उठाया है. इससे पलकों की परेशानियों में कमी जरूर आएगी. सरकार यदि अभिभावकों की समिति बनाती है तो निजी स्कूलों में मनमानी फीस वृद्धि पर लगाम लग सकती है क्योंकि कानून बनेगा तो पालन न करने वालों के खिलाफ सजा का भी प्रावधान भी होगा.

भंसाली का कहना है कि तकरीबन तीन महीने से लॉकडाउन के दौरान किसी भी स्कूल में अध्यन कार्य नहीं हुआ है लेकिन फिर भी फीस लिए जाने का दबाव बनाया जा रहा था जो न्यायोचित नहीं था.

छत्तीसगढ़ में निजी स्कूलों पर आरोप है कि उनके द्वारा एक ओर जहां छात्रों के पालकों से फीस वृद्धि के लिए दबाव बनाया जा रहा था वही दूसरी ओर शिक्षकों का भी आरोप है उन्हें उनकी पूरी तनख्वाह नहीं दी जाती. नाम न बताने की की शर्त पर राजधानी की एक स्कूल के एक शिक्षक ने दिप्रिंट की बताया कि, ‘मेरा निर्धारित वेतन 36 हजार है. मुझसे हस्ताक्षर भी 36 हजार पर कराया जाता है. लेकिन मिलते हैं करीब 25 हजार.’

इस शिक्षक का कहना है कि सरकार को सभी निजी स्कूलों की ऑडिटिंग कराना चाहिए जिससे शिक्षकों के शोषण के खिलाफ कोई कार्रवाई हो सके. शिक्षक ने यह भी बताया कि सरकार द्वारा की जाने वाली ऑडिटिंग से इन स्कूल मालिकों की अघोषित संपत्तियों का भी खुलासा हो सकेगा.

क्या कहते हैं स्कूल

छत्तीसगढ़ में निजी या गैर-मान्यता प्राप्त स्कूल मालिकों ने राज्य सरकार के कदम का विरोध किया है.

बिलासपुर स्थित आधारशिला विद्या मंदिर के मालिक अजय श्रीवास्तव ने कहा, ‘सरकार का फैसला छत्तीसगढ़ में स्कूलों के काम में एक अवांछित बाधा है. संबंधित स्कूलों द्वारा दी जाने वाली सेवाओं के आधार पर फीस संरचना तय करने के लिए निजी स्कूलों में पहले से ही एक तंत्र है.

उन्होंने कहा, ‘जैसा कि नागरिकों को किसी भी कानून को बनाने के बाद डिक्टेट्स का पालन करना पड़ता है, लेकिन सरकार को स्कूल प्रबंधन के काम में हस्तक्षेप करने से रोकना चाहिए. इसे अन्य महत्वपूर्ण गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करना होगा.’

रायपुर के एक अन्य प्रसिद्ध निजी स्कूल के मालिक ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि यह निर्णय अवांछित है और स्कूल प्रबंधन को बेहतर सेवाओं की पेशकश करने के लिए हतोत्साहित करेगा.

तमिलनाडु सबसे पहला राज्य

ज्ञात हो की छ्त्तीसगढ़ से पहले तमिलनाडु, महाराष्ट्र , दिल्ली और राजस्थान की राज्य सरकारों ने पहले ही निजी स्कूलों में फीस वृद्धि और अन्य मुद्दों पर निर्णय लेने के लिए समितियों के गठन का कानून बनाया है. देश में तमिलनाडु पहला राज्य है जिसने एक राज्यस्तरीय समिति के माध्यम से निजी स्कूलों में फीस निर्धारण का निर्णय 2009 में लिया. इसी मॉडल को राजस्थान ने भी अपनाया लेकिन अब यह मामला कोर्ट में लंबित है. महाराष्ट्र ने निजी स्कूलों के शिक्षकों और पलकों की एक समिति के माध्यम से फीस निर्धारण का मॉडल तैयार किया है. इसके बाद दिल्ली ने भी कुछ इसी तरह निर्णय लिया था. छत्तीसगढ़ सरकार इन्हीं मॉडल्स का अध्यन कर रही है.

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