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Friday, 18 October, 2024
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क्लाइमेट ऐक्शन एक नया करियर है, कंसल्टेंसी, कम्युनिकेशन, कॉलेज सब कुछ शुरू हो चुका है

लिंक्डइन की ‘जॉब्स ऑन द राइज़ 2024’ रिपोर्ट के अनुसार, ‘सस्टेनेबिलिटी मैनेजर’ भारत में सबसे ज़्यादा मांग वाली 25 नौकरियों में से एक है.

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नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय के उत्तरी परिसर में एक दिन अचानक चमकीली, एकदम नई लाल बेंचों ने 20 वर्षीय स्नेहा चोपड़ा को पर्यावरण के क्षेत्र में करियर बनाने के लिए प्रेरित किया. शुरू में उन्हें लगा कि यह किसी ब्रांड का पीआर स्टंट है, लेकिन उस समय खालसा कॉलेज में जूलॉजी की छात्रा रहीं स्नेहा ने उन्हें अनदेखा कर दिया. लेकिन फिर उन्होंने देखा कि ज़ोमैटो द्वारा लगाई गई ये बेंचें सस्टेनेबिलिटी कैंपेन के तहत 100 प्रतिशत रिसाइकिल किए गए प्लास्टिक कचरे से बनी हैं.

दिल्ली में द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टेरी) से पर्यावरण अध्ययन और संसाधन प्रबंधन में मास्टर डिग्री हासिल कर रहीं स्नेहा चोपड़ा ने कहा, “मैंने पहली बार किसी कंपनी को पर्यावरण के लिए ठोस कदम उठाते देखा और मुझे एहसास हुआ कि कॉर्पोरेट जगत में स्थायी कार्रवाई की बहुत गुंजाइश है.” वह स्नातक होना चाहती हैं और ज़ोमैटो जैसी बड़ी कंपनी के लिए सस्टेनेबिलिटी मैनेजर के रूप में काम करना चाहती हैं, ताकि उनके कार्बन फूटप्रिंट को कम करने में मदद मिल सके.

चोपड़ा भारत में कई नए ‘क्लाइमेट एस्पिरेंट्स’ में से एक हैं – वह क्लाइमेट ऐक्शन सेक्टर में काम करने वाला करियर चाहती हैं, और इसे चुनने के रास्ते अंतहीन लगते हैं. लिंक्डइन की जॉब्स ऑन द राइज़ 2024 रिपोर्ट ने ‘सस्टेनेबिलिटी मैनेजर’ को भारत में शीर्ष 25 सबसे अधिक मांग वाली भूमिकाओं में से एक बताया.

जलवायु परिवर्तन ने पर्यावरण, सामाजिक और गवर्नेंस (ईएसजी) कंसल्टिंग व पर्यावरण कानून से लेकर जलवायु कृषि विज्ञान और नवीकरणीय ऊर्जा नीति तक हर क्षेत्र और उद्योग में प्रवेश किया है. कॉलेज इस अवसर का लाभ उठा रहे हैं, जलवायु विज्ञान पर नए पाठ्यक्रम शुरू कर रहे हैं. दूसरी ओर, कंपनियां अपने कर्मचारियों को सस्टेनेबिलिटी पर वर्कशॉप दे रही हैं.

“जलवायु अब अर्थव्यवस्था है”

अनुराधा घोष, सीईओ, सीईईडब्ल्यू

इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स के अनुसार, यह वृद्धि आंशिक रूप से जलवायु परिवर्तन और इसके उपायों के मुद्दों में छात्रों की बढ़ती रुचि से प्रेरित है. अन्य लोग बताते हैं कि क्लाइमेट जॉब्स ज्यादातर लोगों के लिए आकर्षक बनाते हैं. हालांकि, उद्योग के अधिकांश अंदरूनी लोग एक बात पर सहमत हैं – क्लाइमेट करियर की ट्रैजेक्टरी केवल ऊपर की ओर ही बढ़ेगी.

ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (सीईईडब्ल्यू) के सीईओ अरुणाभ घोष ने कहा, “जलवायु अब अर्थव्यवस्था है. केवल कुछ क्षेत्रों या उद्योगों को जलवायु संकट के अनुकूल होने की आवश्यकता नहीं है, यह पूरी दुनिया है जिसे अपनी समग्र सोच में जलवायु संबंधी चिंताओं को शामिल करने की जरूरत है.”

सस्टेनेबिलिटी कन्सल्टिंग की शुरुआत

बेंगलुरू स्थित ईएसजी प्रौद्योगिकी फर्म ब्रीथ ईएसजी के 25 वर्षीय सह-संस्थापक करंतज सिंह सस्टेनेबिलिटी के बारे में तब से भावुक हैं, जब से यह इतना “आकर्षक नहीं हुआ था”.

जब सिंह हाई स्कूल में थे, तब न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय की एक आकस्मिक यात्रा ने क्लाइमेट ऐक्शन सेक्टर में उनकी रुचि जगाई. यह यात्रा 2015 में वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ यूनाइटेड नेशंस एसोसिएशन (WFUNA) द्वारा आयोजित की गई थी, जिस वर्ष उन्होंने अपने सतत विकास लक्ष्यों (SDG) की घोषणा की थी. अब, सिंह लगभग एक दशक से सस्टेनेबिलिटी के क्षेत्र में हैं.

अपनी वापसी पर, उन्होंने कर्नाटक के गांवों में जलवायु परिवर्तनों को सह पाने वाला बुनियादी ढांचा प्रदान करने के लिए बेंगलुरु में दीपम पहल इनीशिएटिव की अन्य के साथ मिलकर स्थापना की. कॉलेज के ठीक बाद, जब वे स्ट्रेटेजी कंसल्टेंट के रूप में केपीएमजी में शामिल हुए, तो सिंह को कंसल्टिंग जैसे मुख्यधारा के प्रोफेशन में भी स्थिरता की वास्तविक क्षमता का एहसास हुआ. इसलिए उन्होंने केपीएमजी में बढ़ती ईएसजी सलाहकार टीम को छोड़ दिया और एक फर्म शुरू की जो विशेष रूप से कंपनियों को उनके पर्यावरण और सस्टेनेबिलिटी मैनेजमेंट प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने में मदद करने पर केंद्रित थी.

Breathe ESG
ब्रीथ ईएसजी का बेंगलुरु में कार्यालय | फोटो: विशेष व्यवस्था द्वारा

सिंह ने बताया, “सस्टेनेबल या धारणीय होना अब कंपनियों के लिए एक विकल्प नहीं है – निवेशक, ग्राहक और अंतर्राष्ट्रीय नियम सभी की मांग है कि सस्टेनेबिलिटी किसी भी कंपनी का मुख्य कार्य होना चाहिए.”

बमुश्किल दो साल पुरानी, ​​सिंह की ब्रीथ ESG के पास पहले से ही रियल एस्टेट, इंफ्रास्ट्रक्चर, मैन्युफैक्चरिंग और यहां तक ​​कि रिटेल जैसे क्षेत्रों में कई क्लाइंट हैं. वे कंपनियों के कार्बन उत्सर्जन और सस्टेनेबिलिटी प्रेक्टिस को मैनेज करने, कैलकुलेट करने और रिपोर्ट करने के लिए फर्म के समाधानों का उपयोग करते हैं. भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) जैसे भारतीय नियामक भारत की शीर्ष 1,000 कंपनियों को अपने ESG प्रेक्टिस की रिपोर्ट करने के लिए अनिवार्य करते हैं, लेकिन अधिक से अधिक कंपनियां अधिक टिकाऊ या सस्टेनेबल होने के प्रयास में स्वेच्छा से अपने उत्सर्जन की घोषणा कर रही हैं. यह वह बाजार है जिसमें सिंह, उनके सह-संस्थापक शायक चटर्जी और इंजीनियरिंग, व्यवसाय, इतिहास, पर्यावरण विज्ञान और मार्केटिंग पृष्ठभूमि से 15 कर्मचारियों की उनकी टीम ने प्रवेश किया है.

सिंह के पूर्व नियोक्ता और दुनिया की सबसे बड़ी परामर्श फर्मों में से एक, KPMG, भारत में पर्यावरण और सस्टेनेबिलिटी सर्विसेज में भी अग्रणी है. यह अपने ग्राहकों को ESG रिपोर्टिंग, जलवायु जोखिम मॉडलिंग और सस्टेनेबल फाइनेंस सहित कई ESG समाधान प्रदान करता है. केपीएमजी इंडिया की ईएसजी की राष्ट्रीय प्रमुख नम्रता राणा ने बताया कि ईएसजी कंसल्टिंग सर्विसेज की आवश्यकता इसलिए उत्पन्न हुई है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन ने प्रत्येक कंपनी को प्रभावित किया है.

राणा ने कहा, “दुनिया ने महसूस किया है कि जब तक वे प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र और उसके परिवर्तनों के साथ नहीं जुड़ते, तब तक दुनिया जिस पूरे व्यवसाय मॉडल पर चल रही है, वह खतरे में है.” उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन और चरम मौसम का वास्तविक दुनिया पर प्रभाव कंपनियों के लिए सस्टेनेबिलिटी उपायों की मांग करने वाले रेग्युलेटरी फ्रेमवर्क की तुलना में कहीं अधिक मजबूत है.

केपीएमजी इंडिया का ईएसजी वर्टिकल कोविड-19 से ठीक पहले लगभग 35-40 लोगों के साथ शुरू हुआ था. अब, इसमें 200 से अधिक कर्मचारी हैं. राणा ने यह भी कहा कि सस्टेनेबिलिटी, केपीएमजी के लिए एक कंपनी-व्यापी वॉटरमार्क है.

ESG companies
ग्राफ़िक: श्रुति नैथानी | दिप्रिंट

डेलॉयट साउथ एशिया के पार्टनर, सस्टेनेबिलिटी और क्लाइमेट लीडर, वायरल ठक्कर ने राणा के विचारों को दोहराया कि कैसे ग्राहक ईएसजी कंसल्टिंग में अधिक “प्रकृति-आधारित समाधानों” पर प्रतिक्रिया दे रहे हैं. उन्होंने समझाया कि ईएसजी में काम करने वाले लोगों और कंपनियों की संख्या कंपनियों के जलवायु परिवर्तन को देखने और उस पर प्रतिक्रिया करने के तरीके में “गहरे बदलाव” को दर्शाती हैं.

पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में स्थित कार्बन डाइऑक्साइड रिमूवल (सीडीआर) कंपनी ऑल्ट कार्बन के संस्थापक और सीईओ श्रेय अग्रवाल ने कहा, “नौकरी बाजार में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं – कुछ साल पहले, डेटा साइंस का बोलबाला था, फिर प्रोडक्ट मैनेजमेंट का. अब, भारत जलवायु परिवर्तन की लहर से गुजर रहा है.”

अग्रवाल की बात उद्योग जगत की रिपोर्ट्स में भी स्पष्ट रूप से सामने आती है – जलवायु-केंद्रित नौकरियों में बदलाव को पूरे जॉब इकोसिस्टम द्वारा स्वीकार किया जा रहा है. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की ‘भारत की ग्रीन जॉब्स और जस्ट ट्रांजिशन पॉलिसी रेडीनेस का आकलन’ रिपोर्ट 2023 के अनुसार, 2021 से 2030 के बीच देश में लगभग 54 मिलियन ग्रीन जॉब्स का सृजन होगा. स्किल काउंसिल फॉर ग्रीन जॉब्स (SCGJ) जैसे अन्य संगठनों का अनुमान है कि 2047 तक 30-35 मिलियन नई ग्रीन जॉब्स का सृजन होगा. हालांकि, जैसा कि ILO की रिपोर्ट में कहा गया है, और उद्योग जगत भी इससे सहमत है,” भारत में ग्रीन जॉब्स एक प्राथमिकता है.”

ग्रीन जॉब्स के आर्थिक प्रभाव के संदर्भ में, वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने ‘मिशन 2070: ए ग्रीन न्यू डील फॉर ए नेट जीरो इंडिया’ नामक रिपोर्ट में अनुमान लगाया है कि देश 2070 तक अपने ग्रीन ट्रांजिशन के माध्यम से $15 ट्रिलियन का आर्थिक अवसर पैदा कर सकता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि इसमें से, इस दशक के अंत तक $1 ट्रिलियन के अवसर पैदा किए जा सकते हैं.

CEEW के 24 वर्षीय शोध विश्लेषक अमलान बिभुदत्त ने कहा, “जलवायु वह जगह है जहां पैसा है.” अर्थशास्त्र में डिग्री और डेटा और पॉलिसी में स्नातकोत्तर डिप्लोमा के साथ, बिभुदत्त शुरू में अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त करना चाहते थे और विदेश चले जाना चाहते थे. लेकिन CEEW में एनर्जी ट्रांजिशन पाथवे पर शोध करने के एक साल बाद, उन्हें जलवायु क्षेत्र में संभावनाओं का एहसास हुआ.

“नौकरी बाजार में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं – कुछ साल पहले, डेटा साइंस का बोलबाला था, फिर प्रोडक्ट मैनेजमेंट का. अब, भारत जलवायु परिवर्तन की लहर से गुजर रहा है”

– श्रेय अग्रवाल, संस्थापक और सीईओ, ऑल्ट कार्बन

उन्होंने बताया, “यह सिर्फ़ ऊर्जा या स्थिरता तक सीमित नहीं है. क्लाइमेट फाइनेंस है, प्रदूषण है, वनरोपण है – आप नाम बताइए, और इस पर काम करने वाले लोग हैं. गरीबी उन्मूलन जैसे अन्य सामाजिक प्रभाव क्षेत्रों के विपरीत जलवायु परिवर्तन की बात यह है कि यह सभी को प्रभावित करता है, यहां तक कि वित्तीय संस्थानों और बड़े उद्योगों को भी. इसलिए वे इसे कम करने में ज़्यादा रुचि रखते हैं,”  तीन साल में, अमलान को सलाहकार से CEEW के पूर्णकालिक विश्लेषक के रूप में पदोन्नत किया गया, जहां वे क्लाइमेट फाइनेंस टीम का हिस्सा हैं.

सीईईडब्ल्यू की यात्रा ही भारत में जलवायु करियर में तेज वृद्धि को दर्शाती है. 2019 में 80 से भी कम कर्मचारियों से लेकर 2024 में सलाहकारों और प्रशिक्षुओं सहित लगभग 330 कर्मचारियों तक, थिंक टैंक भारत में सबसे बड़े थिंक टैंक में से एक बन गया है.

पर्यावरण, नवीकरणीय ऊर्जा और पानी पर इसके फोकस ने सरकार को भी इस पर ध्यान देने पर मजबूर कर दिया है, और थिंक टैंक के कई वर्टिकल राज्य और केंद्र सरकार के विभागों के साथ मिलकर टिकाऊ नीतियों को डिजाइन करने में मदद कर रहे हैं. सीईईडब्ल्यू में मानव संसाधन प्रमुख रेमन सिंह ने कहा, “जलवायु से संबंधित नौकरियों में वृद्धि पूरी तरह से मांग से प्रेरित है.” उन्होंने कहा, “इस क्षेत्र में अभी मांग, आपूर्ति से कहीं ज़्यादा है.”


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जलवायु और पर्यावरण शिक्षा

आईआईएम इंदौर की पूर्व छात्रा शुभा वी के लिए, अर्न्स्ट एंड यंग के क्लाइमेट चेंज एंड सस्टेनेबिलिटी सर्विसेज़ वर्टिकल में काम करना जलवायु-केंद्रित कंसल्टिंग में करियर शुरू करना काफी बेहतर फैसला था. जब वह 2022 में अपने पाँच वर्षीय इंटीग्रेटेड मैनेजमेंट प्रोग्राम के दौरान आईआईएम में प्लेसमेंट के लिए बैठी थीं, तो इस भूमिका के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा थी – लगभग उतनी ही जितनी ‘बिग फोर’ में मुख्यधारा की कंसल्टिंग भूमिकाओं के लिए होती है. शुभा सहित केवल नौ लोगों को उस वर्ष उनके कॉलेज से नौकरी मिली थी.

उन्होंने कहा, “यह एक प्रतिष्ठित नौकरी थी, और साक्षात्कार प्रक्रिया भी उतनी ही कठिन थी. लिखित, एचआर इंटरव्यू और अंतिम इंटरव्यू सहित तीन दौर थे,”

अंतिम इंटरव्यू प्रक्रिया के दौरान, जब वह अपने भावी बॉस से मिली, तो शुभा से सस्टेनेबिलिटी वाले रोल में सर्विस देने की उनकी क्षमता के बारे में पूछा गया.

उसने याद किया, “मुझे एहसास हुआ कि यह केवल सामान्य एमबीए का प्रश्न और केस स्टडी नहीं था – वे सस्टेनेबिलिटी के बारे में मेरी समझ में अधिक रुचि रखते थे, और इस बात में ज्यादा रुचि रखते थे कि मैंने इससे पहले जलवायु के क्षेत्र में अपने कौशल का उपयोग कैसे किया था,”

“वे यह जानने की कोशिश कर रहे थे कि क्या मेरा दीर्घकालिक लक्ष्य जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में काम करने का है या नहीं.”

ऑल्ट कार्बन के श्रेय अग्रवाल ने भी ऑल्ट कार्बन में आमतौर पर नियुक्त किए जाने वाले फ्रेशर्स के बारे में बात की. उन्होंने बताया कि बिट्स और आईआईटी के ज़्यादातर छात्र, और यहां तक कि दार्जिलिंग और सिक्किम के स्थानीय इंजीनियरिंग कॉलेज, जहां उनकी फेसिलिटी स्थित है, जलवायु तकनीक कंपनियों के लिए आवश्यक हार्डकोर STEM कौशल से बहुत अच्छी तरह वाकिफ़ हैं. समस्या यह जानने में आती है कि इन कौशलों को जलवायु क्षेत्र में कैसे लागू किया जाए.

अग्रवाल ने कहा, “कई इंजीनियर और वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन के बारे में जानते हैं, लेकिन इस बारे में नहीं सोचते कि वे इस समस्या को हल करने के लिए अपने जियो-इंजीनियरिंग और रिसर्च स्किल्स को कैसे लागू कर सकते हैं.”

उन्होंने कहा, “जलवायु गहन तकनीक दुनिया को महत्वपूर्ण रूप से बदल सकती है, लेकिन भारत में यह अभी एक कम महत्त्वपूर्ण उद्योग है, और कॉलेज निश्चित रूप से इसके विकास को सुविधाजनक बनाने में मदद कर सकते हैं.”

भारत में कुछ कॉलेज जलवायु जागरूकता में इस वृद्धि को सुविधाजनक बनाने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं.

स्थापित आईआईटी और एनआईटी से लेकर ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी और अशोका यूनिवर्सिटी जैसे नए निजी विश्वविद्यालयों तक, पर्यावरण, जलवायु और ऊर्जा अध्ययन के लिए समर्पित पाठ्यक्रम, विभाग और डिग्री हैं.

अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के जलवायु परिवर्तन एवं स्थिरता केंद्र में पहले से ही 80 से अधिक छात्र पर्यावरण विज्ञान एवं स्थिरता कार्यक्रम में नामांकित हैं, जिसे केवल दो साल पहले शुरू किया गया था. 2019 में शुरू किया गया यह विभाग मिड-करियर प्रोफेशनल्स के लिए प्रशिक्षण कार्यशालाएं और पर्यावरण डेटा विश्लेषण और पर्यावरण रिपोर्टिंग जैसे लघु पाठ्यक्रम प्रदान करता है. बढ़ती मांग के कारण, विभाग ने इस वर्ष पर्यावरण परिवर्तन एवं स्थिरता कार्यक्रम में मास्टर डिग्री शुरू करने का भी निर्णय लिया है.

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ग्राफ़िक: श्रुति नैथानी | दिप्रिंट

केंद्र की निदेशक हरिनी नागेंद्र ने बताया, “हमारे बीएससी या एमएससी पाठ्यक्रमों के लिए डिग्री की आवश्यकता नहीं है – आप किसी भी पृष्ठभूमि से हो सकते हैं. हमारे पाठ्यक्रम की प्रकृति अंतःविषयी है, ठीक वैसे ही जैसे जलवायु परिवर्तन.”

मांग के कारण, नागेंद्र ने इस सितंबर में सस्टेनेबिलिटी सेक्टर में नौकरी के अवसरों पर एक साप्ताहिक वेबिनार भी शुरू किया, और पहले एपिसोड को 1,700 से अधिक दर्शक मिले.

जबकि अजीम प्रेमजी और ओपी जिंदल दोनों ने हाल ही में विशिष्ट पर्यावरण कार्यक्रम शुरू किए हैं, आईआईटी बॉम्बे, एनआईटी राउरकेला और आईआईटी मद्रास जैसे अन्य प्रमुख संस्थान पर्यावरण इंजीनियरिंग, वायुमंडलीय विज्ञान और जलवायु विज्ञान में पाठ्यक्रम बहुत पहले से पेश कर रहे हैं. एनआईटी राउरकेला, वर्ष 2015 में वायुमंडलीय विज्ञान में मास्टर कोर्स पेश करने वाला देश का पहला एनआईटी है, वर्तमान में इस विभाग में 108 स्नातकोत्तर छात्र और 48 पीएचडी छात्र हैं, जो सभी क्लाइमेट चेंज ऐक्शन के क्षेत्र में विभिन्न स्तरों पर शोध कर रहे हैं. इसी तरह, आईआईटी बॉम्बे के जलवायु अध्ययन केंद्र, जो 2012 में लगभग चार पीएचडी छात्रों के साथ शुरू हुआ था, में अब 70 से अधिक पीएचडी छात्र नामांकित हैं.

“विश्वविद्यालय और शिक्षा संस्थान जलवायु विज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी हैं – वे जलवायु प्रवृत्तियों की भविष्यवाणी करने के लिए मॉडल विकसित करते हैं, वे चरम मौसम की घटनाओं के लिए डेटा का विश्लेषण करते हैं, और जलवायु शमन के लिए नीतिगत उपायों की सिफारिश करते हैं,” एनआईटी राउरकेला, ओडिशा में पृथ्वी और वायुमंडलीय विज्ञान विभाग के सहायक प्रोफेसर नागराजू चिलुकोटी ने कहा.

Azim Premiji University
अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय में पर्यावरण विज्ञान प्रयोगशाला में छात्र | फोटो: विशेष व्यवस्था द्वारा

ओडिशा के एनआईटी राउरकेला में पृथ्वी और वायुमंडलीय विज्ञान विभाग में सहायक प्रोफेसर नागराजू चिलुकोटी ने कहा, “विश्वविद्यालय और शिक्षा क्षेत्र जलवायु विज्ञान के क्षेत्र में सबसे आगे हैं – वे जलवायु प्रवृत्तियों की भविष्यवाणी करने के लिए मॉडल विकसित करते हैं, वे चरम मौसम की घटनाओं के लिए डेटा का विश्लेषण करते हैं, और जलवायु की समस्या से निपटने के लिए नीतिगत उपायों की सिफारिश करते हैं.”

क्लाइमेट करियर की अंतःविषयक प्रकृति

दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय सौर महोत्सव में TERI बूथ पर, 27 वर्षीय रिसर्च एसोसिएट हेमक्षी मलिक ने हरियाणा और उत्तर प्रदेश राज्यों में कृषि में सौर क्षमता पर ध्यान केंद्रित करते हुए अक्षय ऊर्जा में अपने काम के बारे में उत्साहपूर्वक बताया. लेकिन पांच साल पहले, वह दिल्ली विश्वविद्यालय में भौतिक विज्ञान की पढ़ाई कर रही थी, और क्वांटम कंप्यूटिंग में काम करने की उम्मीद कर रही थी.

मलिक ने टेरी में अपने काम के महत्व पर जोर देते हुए कहा, “ऊर्जा परिवर्तन और जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में जाना काफी आकस्मिक था, लेकिन एक बार जब मैं यहां आ गई, तो मैं इसे छोड़ नहीं सकती थी.”

2023 में GIZ इंडिया के साथ इंटर्नशिप के बाद, जो सतत विकास के लिए सेवाएं प्रदान करता है, जहां उन्होंने रिमोट सेंसिंग और भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) के माध्यम से विभिन्न भारतीय राज्यों में एग्रोवोल्टाइक्स (किसी भूमि का कृषि और सौर ऊर्जा दोनों के लिए उपयोग) के संभावित आकलन पर काम किया, मलिक ने जलवायु परिवर्तन नीति पर प्रौद्योगिकी के प्रभाव को समझा. उन्होंने अब टेरी में एक रिसर्च एसोसिएट के रूप में एक वर्ष पूरा कर लिया है; उनकी पसंदीदा बात यह है कि उन्हें न केवल निजी क्षेत्र के साथ बल्कि सरकारी स्टेक होल्डर्स और कम्युनिटीज़ के साथ भी बातचीत करने का मौका मिलता है ताकि वे अक्षय ऊर्जा के प्रसार के लिए बाधाओं और सक्षमताओं को समझ सकें. उनकी नौकरी की इस बहुक्षेत्रीय सीमा में शोधकर्ताओं का एक अंतःविषय काडर भी शामिल है.

मलिक ने हंसते हुए कहा, “मैं भौतिकी से आता हूं, जबकि मेरे सहकर्मी अर्थशास्त्री, डॉक्टर, सामाजिक वैज्ञानिक, इंजीनियर हैं. फिर भी हम सभी एक साथ काम कर रहे हैं क्योंकि हमारे सभी कौशल क्लाइमेट ऐक्शन जैसे व्यापक विषय में समान रूप से महत्वपूर्ण हैं.”

मेरे माता-पिता के समय में पर्यावरण विज्ञान एक विशिष्ट विषय रहा होगा, लेकिन हम एक ऐसी पीढ़ी हैं जो ग्लोबल वार्मिंग के साथ बड़ी हुई है.

– ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में पर्यावरण अध्ययन की स्नातक छात्रा इरीना सिंह

सीईईडब्ल्यू के रेमन सिंह ने नियोक्ता पक्ष से इसी तरह के तर्क दिए. उनका संगठन जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दों पर काम करने के लिए राजनीति विज्ञान, अंतर्राष्ट्रीय संबंध, नृविज्ञान और भौतिक विज्ञान के लोगों को सक्रिय रूप से नियुक्त करता है. उनका मुख्य सवाल है – क्या यह व्यक्ति इस ग्रहीय समस्या के विभिन्न पहलुओं को समझ सकता है? क्या वे जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में सार्वजनिक भलाई के लिए एक ताकत बन सकते हैं?

आज की पीढ़ी में ऐसे व्यक्तियों को ढूंढना मुश्किल नहीं है. ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में पर्यावरण अध्ययन की स्नातक छात्रा इरीना सिंह ने कहा कि उनके लिए अपना विषय चुनना कभी भी दुविधापूर्ण नहीं रहा. उन्हें याद है कि जब वह 10 साल की थीं, तब से ही वे ओजोन परत के क्षरण और जलवायु परिवर्तन के बारे में पढ़ रही थीं. अशोका यूनिवर्सिटी से साहित्य में स्नातक श्रेया शर्मा ने अपने अंतिम वर्ष में ही पर्यावरण को एक माइनर के रूप में पढ़ना शुरू कर दिया था, लेकिन बाद में उन्होंने एक पर्यावरण वकालत फर्म में काम करना शुरू कर दिया क्योंकि इस विषय ने उन्हें जकड़ लिया था.

अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की हरिनी नागेंद्र ने भी जलवायु करियर में बढ़ती रुचि का श्रेय युवा पीढ़ी को जलवायु परिवर्तन से होने वाले संपर्क को दिया है. यह अब कोई दूर का खतरा नहीं है, बल्कि उनमें से अधिकांश के लिए एक बहुत ही वास्तविक, समय का अनुभव है. इसलिए, नागेंद्र ने कहा, “इस क्षेत्र में काम करने का उनका जुनून काफी हद तक समझ में आता है”.

“पर्यावरण विज्ञान मेरे माता-पिता के समय में एक विशिष्ट विषय रहा होगा, लेकिन हम एक ऐसी पीढ़ी हैं जो ग्लोबल वार्मिंग के साथ बड़ी हुई है,” 20 वर्षीय इरिना ने कहा, जो वर्तमान में स्नातक अध्ययन के तीसरे वर्ष में है और जलवायु-संचालित गैर सरकारी संगठनों में नौकरी की तलाश कर रही है. “मुझे लगता है कि मेरी उम्र के किसी व्यक्ति का क्लाइमेट ऐक्शन में काम न करना आश्चर्यजनक है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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