नयी दिल्ली, सात मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों के संघ द्वारा साझा विधि प्रवेश परीक्षा (क्लैट) के लिए प्रश्न तैयार करने के ‘‘लापरवाह तरीके’’ पर बुधवार को नाराजगी जताई।
न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने क्लैट स्नातक-2025 में कुछ प्रश्नों से संबंधित गलतियों का उल्लेख किया। पीठ दिल्ली उच्च न्यायालय के 23 अप्रैल के फैसले को चुनौती देने वाले एक उम्मीदवार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
उच्च न्यायालय ने इससे पहले विधि विश्वविद्यालयों के संघ को मार्कशीट संशोधित करने और चार सप्ताह के भीतर क्लैट स्नातक-2025 के चयनित उम्मीदवारों की अंतिम सूची पुनः प्रकाशित करने का निर्देश दिया था।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘सबसे पहले, हम प्रतिवादी संख्या एक (संघ) द्वारा क्लैट परीक्षा के लिए प्रश्नों को तैयार करने के लापरवाह तरीके पर अपनी पीड़ा व्यक्त करते हैं, जिसमें देश के लाखों छात्रों की कैरियर आकांक्षाएं शामिल हैं।’’
राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों में पांच वर्षीय विधि (एलएलबी) पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए क्लैट-2025 पिछले साल एक दिसंबर को आयोजित की गई थी और परिणाम सात दिसंबर को घोषित किए गए थे। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि वह मार्कशीट में संशोधन के निर्देश देने वाले उच्च न्यायालय के फैसले से प्रभावित हुआ है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि शिक्षा जगत के मामलों में अदालत हमेशा हस्तक्षेप करने में ‘‘बहुत धीमी’’ रही है क्योंकि उसके पास ऐसे मुद्दों में विशेषज्ञता नहीं है।
अदालत ने कहा, ‘‘जब शिक्षाविद भी इस तरह की गलती करते हैं जिससे लाखों छात्रों का करियर प्रभावित होता है, तो अदालत के पास कोई और विकल्प नहीं बचता।’’
पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय के फैसले से यह स्पष्ट है कि कई प्रश्न उपयुक्त नहीं पाए गए, इसलिए उच्च न्यायालय ने कई प्रश्नों के संबंध में आदेश पारित किया।
शीर्ष अदालत ने इस मामले में छह प्रश्नों पर विचार किया।
पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर पूछे गए एक प्रश्न पर पीठ ने उत्तर कुंजी का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और रक्षा करना केवल राज्य का मौलिक कर्तव्य है। पीठ ने कहा, ‘‘यह पूरी तरह से गलत है।’’ पीठ ने कहा कि अदालत ने बार-बार प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और रक्षा के लिए राज्य के साथ-साथ नागरिकों के कर्तव्य पर जोर दिया है।’’
पीठ ने संघ को निर्देश दिया कि वह ऐसे सभी उम्मीदवारों को सकारात्मक अंक दे, जिन्होंने उत्तर कुंजी में विकल्प सी और डी चुना है। पीठ ने कहा कि जिन उम्मीदवारों ने विकल्प ए और बी चुना है, उन्हें नकारात्मक अंक दिए जाएंगे।
उच्चतम न्यायालय ने एक अन्य प्रश्न को हटाने के उच्च न्यायालय के निर्देश को खारिज कर दिया तथा संघ को उत्तर कुंजी में विकल्प बी चुनने वालों को अंक देने का आदेश दिया। पीठ ने एक अन्य प्रश्न पर उच्च न्यायालय से सहमति जताई तथा उसने कहा कि विकल्प सी सही जवाब था। दो अन्य प्रश्नों पर पीठ ने कहा कि संघ ने ही उनमें से एक को हटा दिया।
शीर्ष अदालत ने कहा कि ‘‘दोनों में बहुत ज़्यादा अंतर नहीं है’’ और दूसरे को हटाने का आदेश दिया। दो और प्रश्न को हटाने का आदेश दिया गया, जिनमें से एक में विस्तृत गणितीय विश्लेषण शामिल था।
पीठ ने क्लैट-2018 से संबंधित अनुचित आचरण को उजागर करने वाले एक अन्य मामले में जून 2018 के अपने आदेश का हवाला दिया।
फैसले में कहा गया कि शीर्ष अदालत ने केंद्र को इस मुद्दे पर विचार करने के लिए एक समिति नियुक्त करने और कार्य सौंपे गए निकाय के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई (यदि कोई हो) सहित उपचारात्मक उपाय करने का निर्देश दिया। फैसला जून 2018 में आया था, लेकिन केंद्र ने कोई कदम नहीं उठाया।
इसके बाद पीठ ने केंद्र को नोटिस जारी कर जवाब मांगा और मामले की अगली सुनवाई 16 मई को तय की।
पीठ ने सुनवाई के दौरान पूछा कि क्लैट आयोजित करने के लिए कोई स्थायी व्यवस्था क्यों नहीं है।
शीर्ष अदालत ने 30 अप्रैल को उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगा दी थी, जिसमें विधि विश्वविद्यालयों के संघ को मार्कशीट संशोधित करने और चार सप्ताह के भीतर क्लैट स्नातक-2025 के चयनित उम्मीदवारों की अंतिम सूची पुनः प्रकाशित करने का निर्देश दिया गया था।
भाषा आशीष सुरेश
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