गुवाहाटी: असम के सोनापुर इलाके में गुरुवार को बेदखली अभियान के दौरान हुई झड़पों में पुलिस की गोलीबारी में दो लोगों की मौत हो गई और कम से कम 11 अन्य घायल हो गए. यह इलाका गुवाहाटी से करीब 35 किलोमीटर दूर है. घायल हुए 11 लोगों में आठ ग्रामीण और तीन पुलिसकर्मी शामिल हैं, जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा.
पुलिस ने मृतकों की पहचान कामरूप महानगर जिले के सोनापुर उपखंड के कचुताली पाथर गांव के हैदर अली और जुबाहिर अली के रूप में की है. पुलिस ने बताया कि अभियान के दौरान “22 सरकारी अधिकारी भी घायल हुए हैं, जिनमें से कुछ की हालत गंभीर है.”
गुरुवार को जिला प्रशासन ने सोमवार यानी 9 सितंबर से तीसरी बार गांव से लोगों को बेदखल करने की कार्रवाई की. कार्रवाई के बाद असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने मीडियाकर्मियों को बताया कि ग्रामीण सोनापुर के अधिसूचित आदिवासी क्षेत्र में सरकारी ज़मीन पर कब्ज़ा कर रहे थे.
अभियान के पहले दो दिन बिना किसी अप्रिय घटना के शांतिपूर्ण तरीके से चले, लेकिन गुरुवार दोपहर को ग्रामीणों, सिविल अधिकारियों और मौके पर तैनात पुलिसकर्मियों के बीच झड़प हो गई.
सोशल मीडिया पोस्ट में अधिकारियों को ग्रामीणों से इलाके को खाली करने के लिए कहने की घोषणा करते हुए दिखाया गया है, लेकिन स्थिति जल्द ही एक भयावह मोड़ पर पहुंच गई, क्योंकि ग्रामीणों और अधिकारियों के बीच झड़प होने लगी.
सूत्रों के अनुसार, ग्रामीणों ने लाठीचार्ज किया और पुलिस ने उन्हें तितर-बितर करने के लिए खाली गोलियां चलाईं.
सूत्रों ने बताया कि झड़प तब शुरू हुई जब अधिकारियों ने ग्रामीणों के अस्थायी शेड को हटाने का काम शुरू किया, जबकि वो दूसरी जगह जाने का समय नहीं निकाल पाए थे. अधिकारियों ने उनके सामान को गिरा दिया — जिससे बेदखल किए गए ग्रामीण भड़क गए.
गुरुवार शाम को असम पुलिस के महानिदेशक जी.पी. सिंह ने कहा कि उपद्रवियों द्वारा किए गए लक्षित हमले के मद्देनज़र पुलिस ने उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए बल का प्रयोग किया.
उन्होंने लिखा, “घटना में 13 लोग घायल हो गए, जिनमें से दो को अस्पताल में मृत घोषित कर दिया गया.”
पोस्ट में कहा गया है कि ड्यूटी पर मौजूद पुलिस सहित सरकारी अधिकारियों पर “धारदार हथियारों और पत्थरों से हमला किया गया.”
सिंह ने कहा कि गुवाहाटी शहर की पुलिस को सरकारी अधिकारियों पर हमले में शामिल सभी उपद्रवियों की पहचान करने और कानूनी कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए हैं.
दिप्रिंट ने कामरूप मेट्रो जिला आयुक्त सुमित सत्तावन से संपर्क किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.
दिप्रिंट से बात करते हुए ऑल असम माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष रेजाउल करीम सरकार ने पुलिस के दावों को खारिज कर दिया और कहा कि ग्रामीणों ने तभी प्रतिक्रिया दी जब पुलिस ने गोलीबारी शुरू की.
उन्होंने कहा, “दो दिनों तक प्रशासन ने शांतिपूर्ण तरीके से कार्रवाई को अंजाम दिया. ग्रामीणों ने विरोध नहीं किया क्योंकि वो इलाके को छोड़ने के लिए तैयार थे. नदी में उनके घर और ज़मीन बह जाने के बाद वो यहां बस गए. उन्हें बस दूसरी जगह जाने के लिए थोड़ा वक्त चाहिए था.”
घायलों को सोनापुर के सिविल अस्पताल ले जाया गया और बाद में उन्हें गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज अस्पताल रेफर कर दिया गया.
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‘ग्रामीणों को भड़काया गया’
हिंसा के कुछ घंटों बाद मुख्यमंत्री सरमा ने कांग्रेस पर गुरुवार सुबह से बेदखली अभियान के खिलाफ बयानबाजी करने का आरोप लगाया — उन्होंने आरोप लगाया कि इससे लोगों का एक वर्ग विद्रोह करने के लिए उकसाया गया.
सीएम ने कहा, “यह सोनापुर में एक शांतिपूर्ण बेदखली अभियान था, जो एक आदिवासी बेल्ट और ब्लॉक है (असम भूमि और राजस्व विनियमन, 1886 के तहत संरक्षित). बेदखल किए गए लोग दरांग और मोरीगांव जिलों में अपने मूल घरों के लिए निकल गए थे और हम उनका पीछा कर रहे थे. (गुरुवार) सुबह से कांग्रेस ने बेदखली के खिलाफ लोगों को भड़काना शुरू कर दिया.”
सरमा ने यह भी घोषणा की कि बेदखली अभियान जारी रहेगा, उन्होंने कहा, “हमने पहले ही सरकारी ज़मीन से अतिक्रमणकारियों को बेदखल कर दिया है, जो लोग पट्टा भूमि पर बसे हैं, उन्हें भी क्षेत्र खाली करने के लिए नोटिस मिलेगा.”
राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता, कांग्रेस के देवव्रत सैकिया — ने आरोपों को “निराधार” बताया है.
सैकिया ने कहा, “वे (सीएम) लोकसभा चुनावों के बाद से ऊपरी असम में कांग्रेस की लोकप्रियता से डरे हुए हैं. वे कांग्रेस को असमिया विरोधी के रूप में पेश करना चाहते हैं और इसी एजेंडे के तहत वह यह सब कर रहे हैं. यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है. गौहाटी हाई कोर्ट के आदेश के अनुसार, सरकार को बेदखली का नोटिस देना चाहिए, लेकिन मुख्यमंत्री कानून की उचित प्रक्रियाओं का पालन नहीं कर रहे हैं.”
एक्स पर एक पोस्ट में मृतक ग्रामीणों के लिए न्याय की मांग करते हुए, कांग्रेस सांसद अब्दुल खालिक ने एक मौजूदा न्यायाधीश द्वारा घटना की उच्च स्तरीय जांच की मांग की.
यह पहली बार नहीं है जब असम सरकार की बेदखली योजनाओं के घातक परिणाम हुए हैं. सितंबर 2021 में असम के दरांग जिले के सिपाझार के धौलपुर गांव में एक अन्य विवादास्पद बेदखली अभियान के दौरान पुलिस की गोलीबारी में दो लोग मारे गए थे.
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‘मामा, मेरी ज़िंदगी बर्बाद हो गई’
इससे पहले, बेदखली कार्रवाई स्थल से मीडिया में प्रसारित वीडियो में तिरपाल, टिन की चादरें और सुपारी के पेड़ों के नीचे बिस्तर और सामान ज़मीन पर धराशायी होते हुए दिखाई दिए और एक बच्चा टिन शेड के अंदर से डरकर कैमरे की तरफ देख रहा था.
मुख्यमंत्री को “मामा” कहकर संबोधित करते हुए — जैसा कि असम में उन्हें प्यार से पुकारा जाता है — एक प्रभावित ग्रामीण ने स्थानीय समाचार चैनल से कहा, “हमारे बहुत से लोगों को बेदखल कर दिया गया, हमारे घर तोड़ दिए गए, फिर भी प्रशासन से कोई भी हमें कोई राहत देने नहीं आया. मेरे छोटे-छोटे बच्चे हैं. मामा, मेरी ज़िंदगी बर्बाद हो गई है. मैं चाहता था कि मेरे बच्चे स्कूल जाएं.”
ग्रामीण ने कहा, “मेरे बच्चों की देखभाल कौन करेगा? हम पिछले तीन दिनों से खाना नहीं बना पाए क्योंकि हमारा घर खंडहर हो गया है. क्या हम असम के लोग नहीं हैं? हमारे एनआरसी, आधार की जांच कीजिए — अगर आपको लगता है कि हम असम से नहीं हैं, तो हमें बांग्लादेश भेज दीजिए.”
एनएफआर के एक अधिकारी ने बताया कि बेदखली की प्रक्रिया के दौरान, 300-400 विस्थापित ग्रामीण, जिनके पास घर कहने के लिए कोई जगह नहीं थी, पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे (एनएफआर) के लुमडिंग डिवीजन के डिगारू-तेतेलिया खंड के अंतर्गत रेलवे ट्रैक पर एकत्र हुए, जिससे लगभग दो घंटे तक रेल यातायात बाधित रहा. बाद में, ट्रैक साफ होने के बाद, सामान्य ट्रेन परिचालन फिर से शुरू हुआ.
‘जानबूझकर निशाना बनाया गया’
ऑल असम माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन (AAMSU) ने सरमा सरकार पर कड़ा प्रहार करते हुए कहा कि अल्पसंख्यक आबादी को निशाना बनाने के लिए “जानबूझकर” गोलीबारी की गई.
गोलीबारी के लिए जिम्मेदार परिस्थितियों पर सवाल उठाते हुए AAMSU नेता सरकार ने कहा, “उन्होंने प्रशासन से समय मांगा था और बेदखल की गई जगह पर अपना सामान इकट्ठा किया था. उन्हें बच्चों का ख्याल रखना है, लेकिन, प्रशासन ने आक्रामक तरीके से उनके टेंट और तिरपाल से ढके हुए सामान को हटाना शुरू कर दिया जिससे बेदखल किए गए लोगों के साथ पुलिस की बहस शुरू हो गई.”
पुलिस के अनुसार, प्रशासन ने 248 बीघा सरकारी ज़मीन को अतिक्रमण मुक्त कराया और 237 अवैध रूप से निर्मित संरचनाओं को हटाया.
AAMSU नेता ने कहा, “अगर यह ज़मीन आदिवासी इलाकों और ब्लॉकों में आती है, तो सरकार उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करती जिन्होंने ग्रामीणों को यह ज़मीन बेची? ग्रामीणों के पास ज़मीन के कागजात कैसे हैं?”
विपक्षी दलों, ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) और रायजोर दल ने भी घटना की निंदा की और हत्याओं की जांच की मांग की.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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