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Saturday, 21 December, 2024
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CJI चंद्रचूड़: समाज को आकार देने वाले ऐतिहासिक फैसले लिखने से कुछ विवादास्पद निर्णय सुनाने तक का सफर

निवर्तमान प्रधान न्यायाधीश के पिता वाई वी चंद्रचूड़ भी प्रधान न्यायाधीश (1978 से 1985) रहे थे, जो इस पद पर सबसे लंबा कार्यकाल था. यह सुप्रीम कोर्ट में सर्वोच्च पद पर पिता और पुत्र के आसीन रहने का एकमात्र उदाहरण है.

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नई दिल्ली: अयोध्या-बाबरी मस्जिद विवाद, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 को हटाना और सहमति से बनाए गए समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने जैसे समाज और राजनीति पर अमिट छाप छोड़ने वाले कई फैसले निवर्तमान प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ के नाम हैं.

भारत के 50वें प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ को कई सारगर्भित बयानों के लिए भी जाना जाता है.

शुक्रवार को न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ (जिन्हें डीवाईसी के नाम से भी जाना जाता है) का शीर्ष अदालत में अंतिम कार्यदिवस था. इसके साथ ही, वकील, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश और देश की न्यायपालिका के प्रमुख के रूप में उनके एक लंबे करियर का समापन हो गया. हालांकि असल में वे रविवार को सेवानिवृत्त हो रहे हैं.

हमेशा अपनी बात कहने वाले न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने 500 से अधिक फैसले लिखे, जिनमें से कुछ की आलोचना भी हुई और कई की प्रशंसा की गई.

चंद्रचूड़ की विरासत का एक भौतिक स्वरूप भी है — एक नई कल्पना के अनुरूप ‘न्याय की देवी’.

पहले, ‘न्याय की देवी’ यूनानी परिधान में हुआ करती थीं, जिनकी आंखों पर पट्टी बंधी थी. उनकी जगह छह फुट ऊंची नई प्रतिमा स्थापित की गई, जिनके एक हाथ में तराजू और दूसरे हाथ में तलवार की जगह संविधान है. साड़ी पहनी हुई ‘न्याय की देवी’ की नई प्रतिमा के सिर पर मुकुट है और आंखों पर पट्टी नहीं बंधी हुई है.

शीर्ष अदालत में उनके अंतिम कार्य दिवस से एक दिन पहले न्यायालय ने अपने ग्रीष्मकालीन अवकाश को ‘‘आंशिक न्यायालय कार्य दिवस’’ ​के रूप में नया ​नाम दिया. ग्रीष्मकालीन अवकाश की इस बात को लेकर आलोचना की जा रही थी कि शीर्ष अदालत के न्यायाधीश लंबी छुट्टी पर रहते हैं.

निवर्तमान प्रधान न्यायाधीश के पिता वाई वी चंद्रचूड़ भी प्रधान न्यायाधीश (1978 से 1985) रहे थे, जो इस पद पर सबसे लंबा कार्यकाल था. यह सुप्रीम कोर्ट में सर्वोच्च पद पर पिता और पुत्र के आसीन रहने का एकमात्र उदाहरण है.

दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज एवं दिल्ली विश्ववविद्यालय (डीयू) के कैंपस लॉ सेंटर से पढ़ाई करने वाले तथा फिर हार्वर्ड लॉ स्कूल से एलएलएम और डॉक्टरेट की डिग्री हासिल करने वाले डी वाई चंद्रचूड़ 9 नवंबर 2022 को प्रधान न्यायाधीश नियुक्त किए गए थे.

उनके द्वारा लिखे गए फैसलों की फेहरिस्त लंबी है और इसमें कानून के लगभग सभी पहलू शामिल हैं.

उनके द्वारा सुनाए गए फैसलों में व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा और न्याय प्रदान करने के लिए न्यायपालिका की प्रतिबद्धता स्थापित करना, निजता को शामिल करने के लिए मौलिक अधिकारों के दायरे का विस्तार करना और चुनावी बॉण्ड योजना को अमान्य करना शामिल है.

वह पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा सुनाए गए उस ऐतिहासिक फैसले का हिस्सा थे, जिसने ‘पैसिव यूथेंसिया’ के लिए, असाध्य रोगों से पीड़ित मरीज द्वारा तैयार किये गए ‘लिविंग विल’ को मान्यता दी.

‘लिविंग विल’ एक लिखित बयान होता है, जिसमें भविष्य में ऐसी परिस्थितियों में रोगी की चिकित्सा के संबंध में इच्छाओं का उल्लेख रहता है, जब वह सहमति व्यक्त करने में सक्षम न हो.

चंद्रचूड़ कई संविधान पीठों का हिस्सा रहे और उन्होंने अयोध्या-बाबरी मस्जिद ज़मीन विवाद सहित कई ऐतिहासिक फैसले लिखे. उन्होंने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में, 2019 में आया सर्वसम्मति वाला फैसला लिखा था. इस फैसले ने एक सदी से भी अधिक पुराने विवादास्पद मुद्दे को सुलझा दिया और भव्य राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया. हालांकि, उस समय न्यायमूर्ति रंजन गोगोई प्रधान न्यायाधीश थे और पांच न्यायाधीशों की पीठ की अध्यक्षता कर रहे थे.

अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में (निवर्तमान) प्रधान न्यायाधीश ने एक सार्वजनिक समारोह में यह कहकर एक और विवाद खड़ा कर दिया कि वह ध्रुवीकरण विवाद के समाधान के लिए ‘‘देवता’’ से प्रार्थना करते हैं. उनकी इस टिप्पणी पर राजनीतिक नेताओं और कार्यकर्ताओं सहित विभिन्न वर्गों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की.

चंद्रचूड़ ने हाल में उस वक्त भी ध्यान आकृष्ट किया था, जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उनके घर पर गणेश पूजा में शामिल हुए थे.

निवर्तमान प्रधान न्यायाधीश ने वह प्रमुख निर्णय भी लिखा था, जिसने सर्वसम्मति से 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने को बरकरार रखा था. यह अनुच्छेद पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा प्रदान करता था.

इसके अलावा, वह उस पीठ का भी हिस्सा थे, जिसने समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने संबंधी महत्वपूर्ण फैसला दिया था और तथाकथित अप्राकृतिक यौन संबंधों (अप्राकृतिक शारीरिक संबंध) पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 को आंशिक रूप से निरस्त कर दिया था.

वे सुप्रीम कोर्ट के नौ न्यायाधीशों की उस पीठ का भी हिस्सा थे और सर्वसम्मति से दिए गए फैसले के प्रमुख लेखक थे, जिसने अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) के तहत निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया.

प्रधान न्यायाधीश ने महत्वपूर्ण प्रशासनिक सुधारों में अग्रणी भूमिका निभाई, जिनमें अदालती रिकॉर्ड का डिजिटाइजेशन भी शामिल है.

उन्होंने गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम के दायरे और संबद्ध नियमों का भी विस्तार किया, जिसका उद्देश्य 20 से 24 हफ्तों के गर्भ को गिराने के लिए अविवाहित महिलाओं और यहां तक कि ट्रांसजेंडर को शामिल करना था.

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच शक्तियों को लेकर रस्साकशी पर भी फैसले लिखे. मई 2023 में उनके नेतृत्व वाली पीठ ने यह निर्णय दिया कि राष्ट्रीय राजधानी में सभी सेवाओं पर दिल्ली सरकार का नियंत्रण होगा.

चंद्रचूड़ को उनके निर्णयों और सार्वजनिक मंचों से दिये गए भाषणों में की गई तीखी टिप्पणियों के लिए भी याद किया जाएगा. 2018 में अदालती कार्यवाही की ‘वेब-कास्टिंग’ और महत्वपूर्ण मामलों की ‘लाइव-स्ट्रीमिंग’ (सीधा प्रसारण) का आदेश देते हुए उन्होंने कहा था, ‘‘सूर्य का प्रकाश सबसे अच्छा कीटाणुनाशक है.’’

कोविड-19 महामारी का प्रसार होने के बाद, उन्होंने देश भर की सभी अदालतों और अधिकरणों में कार्यवाही की ‘लाइव-स्ट्रीमिंग’ सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए. वह 2021 में कोविड महामारी की दूसरी लहर को ‘‘राष्ट्रीय संकट’’ कहने वाले पहले व्यक्ति थे.

वहीं, पिछले हफ्ते ही उन्होंने एक बार फिर स्पष्ट किया कि ‘‘ज़मानत नियम है और जेल अपवाद है.’’

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने ‘एक्सप्रेस अड्डा’ में कहा था कि उन्होंने अपने दर्शन के तहत ‘ए से लेकर जेड’ (अर्नब गोस्वामी से लेकर मोहम्मद ज़ुबैर तक) तक को ज़मानत दी है.

उनके कुछ हस्तक्षेपों के लिए उनकी आलोचना भी की गई.

चंद्रचूड़ ने ही वह फैसला सुनाया था, जिसमें विशेष सीबीआई न्यायाधीश बी एच लोया की मौत की जांच का अनुरोध करने वाली जनहित याचिकाओं को खारिज कर दिया गया था. हाई-प्रोफाइल सोहराबुद्दीन शेख फर्ज़ी मुठभेड़ मामले की सुनवाई कर रहे लोया की एक दिसंबर 2014 को नागपुर में दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई थी.

13 मई 2016 को शीर्ष अदालत में पदोन्नत हुए चंद्रचूड़ का जन्म 11 नवंबर 1959 को हुआ था. वे 29 मार्च 2000 से 31 अक्टूबर 2013 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश नियुक्त होने तक बंबई हाई कोर्ट के न्यायाधीश रहे.

इससे पहले, उन्हें जून 1998 में बंबई हाई कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता नामित किया गया था और न्यायाधीश के रूप में उनकी नियुक्ति होने तक उसी वर्ष अतिरिक्त महाधिवक्ता बने थे.

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट और बंबई हाई कोर्ट में वकालत की. वह मुंबई विश्वविद्यालय में तुलनात्मक संवैधानिक कानून के ‘विजिटिंग प्रोफेसर’ थे.

चंद्रचूड़ क्रिकेट के प्रति अपने प्रेम के लिए भी जाने जाते हैं. बताया जाता है कि वे लुटियंस दिल्ली में अपने पिता को आवंटित बंगले के पीछे खेला करते थे.

वे परिवारिक व्यक्ति हैं और अक्सर अपने बच्चों और पत्नी के साथ उनकी तस्वीरें खींची जाती हैं. उनके दो वकील बेटे, अभिनव और चिंतन के अलावा उनकी दो बेटियां प्रियंका और माही हैं जिनका उन्होंने लालन पालन किया है.

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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