नयी दिल्ली, 30 अगस्त (भाषा) भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजीआई) डी. वाई. चंद्रचूड़ ने शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय की सेवानिवृत्त न्यायाधीश हिमा कोहली को ‘तर्क की आवाज’ और कानून के शासन की हिमायती शख्सियत बताया।
सीजेआई ने न्यायमूर्ति कोहली की संवेदनशीलता और न्यायिक निर्णय लेने की क्षमता की सराहना की।
इस बीच, ‘सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन’ (एससीबीए) के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने न्यायपालिका में महिला न्यायाधीशों की कमी पर प्रकाश डालते हुए सीजेआई से उच्चतर न्यायपालिका में अधिक महिला वकीलों और न्यायाधीशों की नियुक्ति करने का आग्रह किया।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने एक विदाई समारोह में कहा कि न्यायमूर्ति कोहली उभरते वकीलों, खासकर महिला अधिवक्ताओं के लिए एक ‘रोल मॉडल’ थीं।
न्यायमूर्ति कोहली शीर्ष अदालत में तीन साल से अधिक समय तक सेवा देने के बाद एक सितंबर को सेवानिवृत्त होंगी। उनकी सेवानिवृत्ति के साथ उच्चतम न्यायालय में केवल दो महिला न्यायाधीश- न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी, ही रह जाएंगी।
न्यायालय परिसर में विदाई समारोह का आयोजन एससीबीए द्वारा किया गया था। इस कार्यक्रम में शीर्ष अदालत के न्यायाधीश, वरिष्ठ अधिवक्ता और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल सहित बार के पदाधिकारी, दिल्ली और तेलंगाना उच्च न्यायालयों के वकील तथा न्यायाधीश भी शामिल हुए।
सेंट स्टीफंस कॉलेज और कैंपस लॉ सेंटर में उनके बैचमेट रहे सीजेआई ने न्यायमूर्ति कोहली की उपलब्धियों के लिए उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘न्यायमूर्ति कोहली तर्क की आवाज रही हैं। वह कानून के शासन, संवेदनशीलता और ठोस न्यायिक निर्णय लेने के लिए खड़ी हैं। वह कई उभरते वकीलों, न्यायाधीशों और कानूनी पेशेवरों के लिए एक आदर्श हैं, जो अपरंपरागत, अनछुए रास्ते अपनाते हैं। उन्होंने पेशे में महिलाओं के सामने आने वाले मुद्दों को मुख्यधारा में लाने के लिए अपनी आवाज का इस्तेमाल किया है।’’
इससे पहले दिन में न्यायमूर्ति कोहली को विदाई देने के लिए एक रस्मी पीठ की अध्यक्षता करते हुए सीजेआई ने कहा, ‘वह (न्यायमूर्ति कोहली) न केवल एक महिला न्यायाधीश हैं, बल्कि महिलाओं के अधिकारों की एक प्रबल रक्षक भी हैं।’
न्यायमूर्ति कोहली ने अपने संबोधन में कहा कि वह सेवानिवृत्त नहीं हो रही हैं, बल्कि अपने जीवन की अगली यात्रा के लिए खुद को ‘फिर से तैयार’ कर रही हैं।
सीजेआई ने न्यायमूर्ति कोहली के बारे में कहा कि वह ऐसे समय में पहली पीढ़ी की वकील थीं, जब कानून को महिलाओं द्वारा चुना जाने वाला बेहतर पेशा नहीं माना जाता था।
उन्होंने कहा, ‘‘बार के साथ अपने जुड़ाव और युवा छात्रों के साथ अपनी बातचीत में वह (न्यायमूर्ति कोहली) अपने गुरुओं से जो कुछ भी प्राप्त करती हैं, उसे वापस देने की इच्छा से भरी हुई हैं। वह अपनी ताकत ‘विल’ (वूमन इन लॉ एंड लिटिगेशन) के पीछे लगाती हैं।’’
यह संगठन वकालत पेशा अपनाने वाली युवतियों को संस्थागत सहायता प्रदान करता है।
उन्होंने कहा, ‘‘महिला वकीलों के बीच उच्च ड्रॉप-आउट दरों को देखने से लेकर अब (इस पेशे से जुड़ने वाली) युवतियों के लिए संस्थागत सुरक्षा उपाय बनाने तक, न्यायमूर्ति कोहली ने उदाहरण पेश किये हैं।’’
इस अवसर पर सिब्बल ने न्यायपालिका में महिला न्यायाधीशों की कमी का उल्लेख करते हुए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ से उच्चतर न्यायपालिका में अधिक महिला वकीलों और न्यायाधीशों की नियुक्ति का आग्रह किया।
उन्होंने कहा कि न्यायमूर्ति कोहली ने अपना करियर स्वयं बनाया और जीवन में अपना रास्ता खुद तय किया।
सिब्बल ने कहा, ‘‘मैं भारत के प्रधान न्यायाधीश से अनुरोध करता हूं कि वह (न्यायाधीश के तौर पर चयन के लिए) कानूनी फर्मों में कार्यरत महिलाओं पर भी ध्यान दें, जो कारोबारी समुदाय की जटिलताओं से अवगत हैं। यदि भारतीय महिलाएं पेप्सी की सीईओ बन सकती हैं, भारत में बैंक चला सकती हैं और वाणिज्यिक संगठनों का नेतृत्व कर सकती हैं, तो जटिल कानूनी मुद्दों से निपटने वाली विधि कंपनियों में काम करने वाली महिला वकीलों को न्यायपालिका में क्यों नहीं लाया जाना चाहिए, ताकि उन्हें विभिन्न उच्च न्यायालयों में नियुक्त किया जा सके।’’
उन्होंने कहा कि न्यायमूर्ति कोहली अब तक सर्वोच्च न्यायालय की नौवीं महिला न्यायाधीश हैं। उन्होंने पूछा, ‘‘जो सवाल पूछा जाना चाहिए वह यह है कि आजादी के लगभग 75 साल बाद भी केवल नौ महिला न्यायाधीश ही क्यों बन सकी हैं?’’
भाषा सुरेश माधव
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