(कोमल पंचमटिया)
मुंबई, 31 मई (भाषा) जाने-माने फिल्मकार राज खोसला की बेटी सुनीता भल्ला ने अपने पिता की 100वीं जयंती के अवसर पर कहा कि उनके पिता के लिए सिनेमा ही सब कुछ था और उन्होंने जीवन के अंतिम समय तक काम किया।
राज खोसला ने ‘सीआईडी’, ‘वो कौन थी’, ‘मेरा साया’, ‘मेरा गांव मेरा देश’ और ‘दोस्ताना’ जैसी कई सफल फिल्मों का निर्देशन किया।
सुनीता ने कहा कि विरासत एक ऐसी चीज थी जिसके बारे में उनके पिता ने कभी नहीं सोचा था और न ही अपने परिवार से इस बारे में कभी बात की थी।
उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से साक्षात्कार में कहा, ‘‘उन्होंने विरासत के बारे में कभी नहीं सोचा या बात नहीं की, जैसे कि वह अपने पीछे क्या छोड़कर जाएंगे। उन्होंने बस काम किया और काम किया। उन्होंने जीवन भर यही किया। उन्हें अपने काम को लेकर कभी पछतावा नहीं हुआ। उन्हें अपना काम बहुत पसंद था। वह अंत तक अपने काम से बहुत खुश थे। सिनेमा उनके लिए सब कुछ था।’’
सुनीता ने कहा कि खोसला उनके साथ काम करने वालों का बहुत ख्याल रखते थे।
उन्होंने कहा, ‘वह अपने काम का आनंद लेते थे और यही सबसे अच्छी बात थी…कलाकार उनके साथ काम करना पसंद करते थे। वह हमेशा कहते थे, ‘अपना सर्वश्रेष्ठ दो।’ हर कोई उनके साथ खुशी-खुशी काम करता था। उन्होंने मधुबाला, साधना, मुमताज, वहीदा रहमान और आशा पारेख समेत कई अभिनेत्रियों के साथ काम किया।’
अपनी पहली फिल्म के निर्देशन से पहले खोसला ने ‘मिलाप’ (1955) में सहायक निर्देशक की भूमिका निभाई थी और बाद में उन्होंने देव आनंद के साथ मिलकर ‘काला पानी’, ‘सोलवा साल’, ‘सीआईडी’ जैसी कई सफल फिल्में दीं।
सुनीता ने कहा कि तीनों (खोसला, दत्त एवं देव आनंद) के बीच का रिश्ता ‘मजबूत’ और अटूट था।
उन्होंने कहा, ‘मैं उनके साथ देव आनंद के घर गयी था। उनका चेतन आनंद और गुरु दत्त के साथ बहुत करीबी संबंध था। इसलिए, वे चारों एक साथ थे। वे अक्सर फिल्मों के बारे में बात करते थे। मुझे याद है कि ‘गाइड’ का निर्देशन कौन करेगा, इस पर चर्चा हुई थी। कुछ हिस्से की शूटिंग मेरे पिताजी ने भी की थी और उसके बाद विजय आनंद ने इसे संभाला।’
सुनीता ने बताया कि एक पिता के रूप में उन्होंने अपनी पांचों बेटियों के लिए कुछ नियम तय किए थे और सप्ताहांत में वह अपना समय हमेशा परिवार के साथ बिताते थे।
उन्होंने कहा, ‘वह यह सुनिश्चित करते थे कि हम सभी पांच बहनें शाम सात बजे के बाद घर में ही हों। उन्हें सूचित किए बगैर कहीं भी जाने की अनुमति नहीं थी। प्रत्येक शनिवार और रविवार हम अपना समय दादा-दादी के घर पर बिताते थे। मेरे दादाजी हमारे लिए खाना बनाते थे और हम वहां बिरयानी का आनंद लेते थे।’
सुनीता का मानना है कि हिंदी सिनेमा की कुछ सर्वाधिक प्रशंसित फिल्में बनाने के बावजूद उनके पिता को अपेक्षित सराहना नहीं मिली।
राज खोसला की 100वीं जयंती पर आज यानी शनिवार को मुंबई के रीगल सिनेमा में ‘राज खोसला 100 – बंबई का बाबू’ नामक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा जिसमें ‘सीआईडी’, ‘बंबई का बाबू’ और ‘मेरा गांव मेरा देश’ फिल्में दिखाई जाएंगी।
भाषा राखी सिम्मी
सिम्मी
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