नयी दिल्ली, एक फरवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को निर्देश दिया कि बाल तस्करी के शिकार बच्चों की गवाही उन जनपदों के जिला अदालत परिसर या जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) के कार्यालय में वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए दर्ज की जानी चाहिए, जहां संबंधित बच्चा रहता है।
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने कहा कि वह निचली अदालतों में साक्ष्य देने के लिए लंबी दूरी की यात्रा करने में तस्करी के पीड़ितों को होने वाली कठिनाइयों को लेकर चिंतित है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि न्याय मित्र द्वारा दिए गए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) से संबंधित सुझावों को एक नियमित विशेषता के रूप में व्यवहार में लाया जाना चाहिए और प्रक्रिया को केवल कोविड-19 महामारी से प्रभावित अवधि तक सीमित रखने की आवश्यकता नहीं है।
पीठ ने कहा, ‘हम निर्देश देते हैं कि एसओपी का पालन सभी आपराधिक मुकदमों में किया जाना चाहिए, जहां बाल गवाह अदालत बिंदुओं के पास नहीं रहते हैं… हम रिमोट प्वाइंट समन्वयक (आरपीसी) को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देते हैं कि गवाहों के परीक्षण के दौरान बच्चों के अनुकूल चीजें अपनाई जाएं।’
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि आरपीसी को मानदेय के रूप में प्रति दिन 1500 रुपये का भुगतान किया जाएगा। अदालत ने यह बात तब कही जब राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) के वकील ने राशि के भुगतान पर सहमत होने की बात बताई।
पीठ ने कहा कि दूरस्थ बिंदु और निचली अदालत के संबंधित न्यायिक अधिकारी यह सुनिश्चित करेंगे कि जहां कहीं जरूरी हो सबूत बंद कमरे में दर्ज किए जाएं।
मामले में अगली सुनवाई दो मई 2022 को होगी।
भाषा नेत्रपाल दिलीप
दिलीप
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