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शनिवार, 5 जुलाई, 2025
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बाल संरक्षण व्यवस्था अब भी कमजोर, नियमों में बदलाव की जरूरत: न्यायमूर्ति कांतदऋ)

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हैदराबाद, पांच जुलाई (भाषा) देश में बाल संरक्षण व्यवस्था अब भी अव्यवस्थित व अपर्याप्त बनी हुई है और इसमें एक ऐसे बुनियादी बदलाव की जरूरत है जो बच्चे को आपराधिक मुकदमे में सिर्फ एक कमजोर पक्ष के रूप में न देखे बल्कि एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखे जिसे निरंतर और समग्र देखभाल की तत्काल आवश्यकता है। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश सूर्यकांत ने शनिवार को यह बात कही।

न्यायमूर्ति कांत ने यौन अपराधों से बच्चा का संरक्षण (पॉक्सो) पर राज्य स्तरीय बैठक 2025 के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि जब तक बच्चों को न्याय की अनुभूति नहीं मिलता तब तक काम पूरा नहीं होगा।

न्याय की अनुभूति का मतलब है कि बच्ची की रक्षा करने के लिए बनाई गई व्यवस्थाएं उन्हें फिर से आघात न पहुंचाएं।

मुख्यमंत्री ए रेवंत रेड्डी ने अपने संबोधन में कहा कि मानवता के खिलाफ इस जघन्य अपराध से लड़ने में बाल पीड़ितों को भारत के कानूनी और नैतिक ढांचे के केंद्र में रखा जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने इस बात पर जोर दिया कि व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि बच्चों को महसूस हो कि सिर्फ न्यायालय की चारदीवारी के भीतर ही नहीं बल्कि उससे बाहर भी उनके साथ इंफास हुआ है और गुनाहगारों की जवाबदेही सुनिश्चित करनी चाहिए।

न्यायमूर्ति कांत ने दोहराया, “ हमारी बाल संरक्षण व्यवस्था अच्छी होने के बावजूद अब भी अव्यवस्थित और अपर्याप्त है। हमें एक बुनियादी बदलाव की जरूरत है, जो बच्चे को आपराधिक मुकदमे में महज एक कमजोर पक्ष के रूप में नहीं बल्कि निरंतर और समग्र देखभाल की तत्काल आवश्यकता वाले व्यक्ति के रूप में देखे।”

उन्होंने यह भी कहा कि किसी बच्चे के लिए न्याय की शुरुआत अदालत से नहीं बल्कि उस पल से होती है जब बच्चा अपने परिवेश के भीतर व बाहर दोनों जगह सुरक्षित महसूस करता है।

न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि पीड़ित की परेशानी अक्सर कानूनी प्रक्रिया से और भी बढ़ जाती है।

उन्होंने कहा कि जब व्यवस्था आरोपी की तलाश में बच्चे को भूल जाती है, तो वह दोनों को ही हताश कर देती है।

शीर्ष अदालत के न्यायाधीश ने कहा कि यह असंतुलन आकस्मिक नहीं बल्कि संरचनात्मक है।

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि बाल पीड़ितों की सुरक्षा और सहायता का कार्य इतना महत्वपूर्ण है कि इसे केवल कानूनी व्यवस्था पर नहीं छोड़ा जा सकता।

न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि यह केवल न्यायपालिका, पुलिस और सामाजिक कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी नहीं बल्कि एक सामूहिक राष्ट्रीय कर्तव्य है।

मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने अपने भाषण में कहा, “हमें अपने बच्चों को किसी भी कीमत पर और हर संभव तरीके से यौन शोषण से बचाना चाहिए। मेरी सरकार बच्चों और महिलाओं की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है।”

भाषा जितेंद्र माधव

माधव

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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