नयी दिल्ली, 23 फरवरी (भाषा) देश के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एन वी रमण ने बुधवार को निचली अदालतों में बुनियादी ढांचे की कमी पर अफसोस जताया और कहा कि उन्होंने इस मुद्दे पर सरकार को पत्र लिखकर अपनी पीड़ा व्यक्त की है।
प्रधान न्यायाधीश रमण, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ हैदराबाद में एक पशु चिकित्सक के सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले में चार आरोपियों के मुठभेड़ में मारे जाने की जांच के अनुरोध वाली दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। पीठ ने वकील एम एल शर्मा की इस दलील पर ध्यान दिया कि उत्तर प्रदेश के एक जिले की सिविल कोर्ट का भवन नहीं है।
न्यायमूर्ति रमण ने कहा, ‘‘एक नहीं, कई जिले ऐसे हैं जहां अदालत की इमारतें नहीं हैं।’’ उन्होंने शर्मा से एक जनहित याचिका दायर करने को कहा। पीठ ने कहा, ‘‘कई जिले हैं। क्या करें। हमने केंद्र से पूछा है। मैंने एक पत्र लिखा और अपनी पीड़ा व्यक्त की। यहां तक कि रिपोर्ट भी सौंपी। आप एक याचिका दायर कर सकते हैं।’’
कई जनहित याचिकाएं दायर करने के लिए अक्सर आलोचना झेलने वाले शर्मा ने कहा कि वह इस मुद्दे पर एक याचिका दायर करेंगे। प्रधान न्यायाधीश देश की निचली अदालतों में खराब बुनियादी ढांचे पर चिंता व्यक्त करते रहे हैं और इस मुद्दे को हल करने के लिए उन्होंने राष्ट्रीय न्यायिक अवसंरचना निगम (एनजेआईसी) की स्थापना का विचार रखा था।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक समारोह में प्रधान न्यायाधीश ने कहा था, ‘‘भारत में अदालतें अभी भी उचित सुविधाओं के बिना, जीर्ण-शीर्ण ढांचों से संचालित होती हैं। ऐसी स्थिति वादियों और वकीलों के लिए काफी नुकसानदेह है। ये हालात अदालत के कर्मचारियों और न्यायाधीशों के लिए अपने कार्यों को प्रभावी ढंग से करना मुश्किल बना रहे हैं। अंग्रेजों के जाने के बाद हमने उपेक्षा की और भारत में अदालतों के लिए अच्छा बुनियादी ढांचा प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करने में विफल रहे।’’
भाषा आशीष पवनेश
पवनेश
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