पटना: बिहार पुलिस ने अपने ही एक 2011 बैच के भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी आदित्य कुमार की तलाश शुरू कर दी है, जो राज्य के पुलिस महानिदेशक (डायरेक्टर जनरल ऑफ़ पुलिस-डीजीपी) एस के सिंघल को ठगने का आरोप सामने आने के बाद से ‘भूमिगत’ हो गए हैं. उन्होंने यह कारनामा राज्य के शराब विरोधी कानूनों के उल्लंघन के लिए उनके खिलाफ दर्ज सितंबर 2021 के एक मामले को वापस करवाने के लिए था.
पटना में पुलिस मुख्यालय को उस वक्त काफी शर्मनाक स्थिति का सामना करना पड़ा था जब यह खबर सामने आई कि अभिषेक अग्रवाल ने कथित तौर पर पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बनकर बिहार के डीजीपी को कई व्हाट्सएप कॉल किए थे, जिनमें उन्हें कुमार के खिलाफ मामला वापस लेने के लिए कहा गया था. डीजीपी ने कथित तौर पर इसका ‘सकारात्मक जवाब’ देते हुए प्रतिक्रिया दी थी.
नय्यर हसनैन खान, अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एडीजी), आर्थिक अपराध विंग (ईओडब्ल्यू) ने दिप्रिंट को बताया, ‘आदित्य कुमार भूमिगत हो गए हैं. हमने बाकी चार [आरोपियों] को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है. हम आईपीएस अधिकारी कुमार के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी किये जाने की मांग करेंगें.’
एडीजी खान ने कहा कि ईओडब्ल्यू ने पिछले 15 अक्टूबर को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (आईटी एक्ट) की विभिन्न धाराओं के तहत आईपीएस अधिकारी कुमार और अग्रवाल सहित चार अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया था.‘
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‘पटना के एक रेस्टोरेंट में रची गई थी साजिश’
पूछताछ में शामिल एक अधिकारी ने उनका नाम न छापे जाने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘अभिषेक अग्रवाल ने स्वीकार किया है कि उसने ही पटना न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में डीजीपी को फोन किया था.’
इन अधिकारी ने कहा, ‘आदित्य कुमार के खिलाफ दर्ज मामले को वापस हटवाने की साजिश पटना के एक रेस्तरां में अग्रवाल और खुद आईपीएस अधिकारी कुमार द्वारा रची गई थी. अग्रवाल ने बताया कि उसने डीजीपी सिंघल को 8-9 फोन कॉल किए और डीजीपी ने उनकी मांग पर सकारात्मक जवाब देते हुए प्रतिकिया की.’
लेकिन पुलिस को संदेह है कि यह पहली बार नहीं है जब अभिषेक अग्रवाल उर्फ अभिषेक भोपालिका ने किसी का रूप धारण करते हुए कोई धोखाधड़ी की हो.
एडीजी खान ने प्रिंट को बताया, ‘हमें जानकारी है कि जब वह [अग्रवाल] तिहाड़ जेल में बंद था, तो उसने एक आईएएस अधिकारी को ठगने के लिए केंद्रीय गृह मंत्री के पीए [निजी सहायक] के रूप में पेश आने की कोशिश की थी. इसके अलावा जब वह भागलपुर जेल में था तो उसने एक आईपीएस अधिकारी के पिता को भी धोखा देने का प्रयास किया था. हम उसके बारे में और अधिक जानकारी जुटा रहे हैं तथा उसके खिलाफ और मामले भी दर्ज कर सकते हैं.’
जहां आईपीएस कुमार पर आपराधिक साजिश रचने का और अग्रवाल पर एक मुख्य न्यायाधीश का रूप धारण करने का आरोप है, वहीं पुलिस को यह भी संदेह है कि अन्य तीन आरोपियों – शुभम कुमार, गौरव राज और राहुल रंजन जायसवाल – ने नकली पहचान पत्र के आधार पर उन्हें सिम कार्ड प्रदान किए थे .
आरोपियों पर आईपीसी की धारा 353 (एक लोक सेवक को उसके कर्तव्यों के निर्वहन से रोकने के लिए आपराधिक बल का उपयोग), 387 (जबरन वसूली), 419 (किसी दूसरे का रूप धारण करते हुए की गयी धोखाधड़ी), 420 (धोखाधड़ी), 467 (मूल्यवान दस्तावेज की जालसाजी), 468 (धोखाधड़ी के उद्देश्य से जालसाजी) और 120 (बी) (आपराधिक साजिश), के साथ-साथ आईटी एक्ट की धारा 66 (सी) (ई-हस्ताक्षर का जालसाजी भरा उपयोग) और 66 (डी) (संचार उपकरण का उपयोग करके किसी का रूप धारण करते हुए धोखाधड़ी) के तहत मामला दर्ज किया गया है.
दिप्रिंट द्वारा देखी गई एफआईआर में कहा गया है कि ईओडब्ल्यू ने कुमार और उनके कथित सहयोगियों के खिलाफ मामला दर्ज करने के लिए ‘गुप्त विश्वसनीय जानकारी’ के आधार पर कार्यवाही की है.
इस साल फरवरी तक, आईपीएस अधिकारी आदित्य कुमार बिहार के गया जिले में पुलिस अधीक्षक (एसपी) के पद पर तैनात थे. पुलिस सूत्रों ने बताया कि उनकी इस नियुक्ति के दौरान उनके खिलाफ राज्य सरकार द्वारा शराब के उत्पादन, वितरण और खपत पर लगाए गए प्रतिबंध को लागू करने में कथित रूप से विफल रहने का मामला दर्ज किया गया था.
उन्होंने बताया कि बाद में कुमार को पटना स्थित पुलिस मुख्यालय से संबद्ध कर दिया गया और फिर अगस्त में सहायक पुलिस महानिरीक्षक, निरीक्षण (एआईजी- इन्स्पेक्शन्स) नियुक्त किया गया था .
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‘आर्थिक सुरक्षा का अभाव’
आदित्य कुमार भ्रष्टाचार के आरोपों के साथ जांच के घेरे में आए बिहार के एकमात्र आईपीएस अधिकारी नहीं हैं.
इस महीने की शुरुआत में राज्य की विशेष सतर्कता इकाई ने पूर्णिया के एसपी दया शंकर के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति जमा करने के मामले में सात स्थानों पर छापेमारी की थी.
इसी तरह, आरा के एसपी राकेश दुबे और औरंगाबाद के एसपी सुधीर कुमार पोरिका को जुलाई 2021 में रेत खनन माफिया के साथ सांठगांठ के आरोप में निलंबित कर दिया गया था. बाद में उनके निलंबन को इस साल जनवरी में और छह महीने के लिए बढ़ा दिया गया था.
एक आईपीएस अधिकारी ने उनका नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहा, ‘गंभीर बात यह है कि उनमें से ज्यादातर युवा आईपीएस अधिकारी हैं, जिन्होंने अपनी 10 साल की सेवा पूरी कर ली है.’
बिहार के पूर्व मुख्य सचिव वी एस दुबे का मानना है कि साल 2004 में सरकारी कर्मचारियों के लिए पेंशन योजना की समाप्ति ‘अधिकारियों के बीच बढ़ते भ्रष्टाचार’ के कारणों में से एक हो सकती है.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘सामाजिक सुरक्षा का कवच हट गया है. इसने अधिकारियों को भ्रष्ट तरीकों से पैसा बनाने और बंगले, शेयर, जमीन तथा अन्य सम्पत्तियां खरीदने के लिए प्रेरित किया है. उन्हें लगता है कि रिटायर होने से पहले उन्हें खुद को सामाजिक रूप से सुरक्षित बना लेना चाहिए.’
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