scorecardresearch
Saturday, 15 November, 2025
होमदेशनामित प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत ने उच्च न्यायालयों से आपातकालीन सेवा की तरह काम करने की अपील की

नामित प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत ने उच्च न्यायालयों से आपातकालीन सेवा की तरह काम करने की अपील की

Text Size:

रांची, 15 नवंबर (भाषा) भारत के नामित प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत ने शनिवार को इस बात पर जोर दिया कि न्यायपालिका की भूमिका विवादों को निपटाने से कहीं अधिक है और उसे निर्दोषों की रक्षा पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने उच्च न्यायालयों को अपने संस्थागत विकास की कल्पना आधुनिक अस्पताल की आपातकालीन सेवाओं की तरह करनी चाहिए, ताकि त्वरित, निर्णायक और प्रभावी प्रतिक्रिया सुनिश्चित हो सके।

झारखंड उच्च न्यायालय के रजत जयंती समारोह को संबोधित करते हुए न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने अपने पहले मामले को याद किया, जो दो नाबालिग बच्चों के संरक्षण से जुड़े सीमा पार विवाद में मुलाकात के अधिकार के संबंध में था।

उन्होंने कहा, “न्याय का मतलब केवल विवादों को सुलझाना नहीं है, बल्कि निर्दोष लोगों को हालात के तूफान में खो जाने से बचाना भी है।”

न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि माता-पिता राष्ट्रीय सीमाओं और वर्षों की मुकदमेबाजी के कारण अलग हो गए थे, लेकिन सबसे चौंकाने वाला पहलू “प्रतिस्पर्धी न्याय क्षेत्रों और अनिश्चित भविष्य के बीच फंसे बच्चों की शांत पीड़ा थी।”

उन्होंने कहा कि अनुभव इस बात को रेखांकित करता है कि संस्थाओं को किस तरह सहानुभूति और संकल्प के भाव को अपनाना चाहिए।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि उच्च न्यायालयों को अपने विकास की कल्पना अस्पतालों के आपातकालीन वार्ड के समान करनी चाहिए, जो त्वरित प्रतिक्रिया देने में माहिर होते हैं।

उन्होंने कहा, “जिस तरह आपातकालीन वार्ड में देरी स्वीकार नहीं की जा सकती, हमारी अदालतों को भी उसी स्तर की तैयारी, दक्षता और समन्वित प्रतिक्रिया की आकांक्षा रखनी चाहिए।”

न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने तकनीकी क्षमता को मजबूत करने, प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित बनाने, विशेष दक्षता का निर्माण करने और यह सुनिश्चित करने का आह्वान किया कि न्यायिक प्रक्रियाएं तुरंत उभरती परिस्थितियों के अनुरूप ढल जाएं।

उन्होंने कहा, “न्यायपालिका केवल ऐसी ही दूरदर्शिता के जरिये समय पर और प्रभावी उपाय प्रदान कर सकती है, तथा संवैधानिक लोकतंत्र की मांग के अनुसार हर चुनौती का शीघ्रता एवं स्पष्टता के साथ सामना कर सकती है।”

न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि ये महज प्रशासनिक विचार नहीं हैं; ये न्याय तक पहुंच बढ़ाने की दिशा में अगला कदम हैं।

उन्होंने कहा कि न्याय वितरण क्रम में जिला अदालतों और सर्वोच्च न्यायालय के बीच आने वाले उच्च न्यायालय “नागरिकों और संविधान के बीच सेतु” के रूप में काम करते हैं।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने न्यायिक संस्थाओं में अनुकूलनशीलता के महत्व पर प्रकाश डालते हुए तर्क दिया कि उनकी ताकत न केवल ऐतिहासिक फैसले लेने में, बल्कि नवाचार की उनकी क्षमता में भी निहित है।

उन्होंने तकनीकी एकीकरण, ‘ई-फाइलिंग’ (ऑनलाइन याचिका दायर करना) प्रणाली, वास्तविक समय में मुकदमे में होने वाले घटनाक्रमों की जानकारी उपलब्ध कराने और सुलभ डिजिटल मंचों की बढ़ती आवश्यकता पर जोर दिया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि न्याय सभी के लिए, खास तौर पर दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले या भौतिक बाधाओं का सामना करने वाले लोगों के लिए पहुंच में रहे।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने आगाह किया कि भारतीय अदालतों को साइबर अपराध, डिजिटल साक्ष्य, जलवायु संबंधी विवादों, संसाधन संघर्षों और बढ़ते मुकदमों के बोझ से ग्रस्त युग के लिए तैयार रहना चाहिए।

उन्होंने कहा कि ये चुनौतियां पारंपरिक न्यायिक मॉडल पर पूर्ण पुनर्विचार की मांग करती हैं।

भाषा पारुल संतोष

संतोष

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

share & View comments