(नीलाभ श्रीवास्तव)
नयी दिल्ली/रायपुर, 14 अप्रैल (भाषा) छत्तीसगढ़ में आईईडी हमलों में घायल होने वाले सुरक्षाकर्मियों की संख्या 2025 की पहली तिमाही में लगभग 300 प्रतिशत तक बढ़ गई है, जिससे मार्च 2026 तक देश से नक्सलियों को खत्म करने की केंद्र की समय सीमा को पूरा करना उनके लिए एक कठिन चुनौती बन गया है।
गर्मियों के परवान चढ़ने के साथ मध्य भारत के इस राज्य में ‘‘नक्सलियों के अंतिम गढ़’’ पर कार्रवाई के लिए सुरक्षा एजेंसियां सड़कों और पगडंडियों पर ‘‘सावधानी से चल रही हैं’’, ताकि आईईडी विस्फोटों की चपेट में आने से बचा जा सके, जिनके कारण दो दशकों से अधिक समय से जारी उग्रवाद में सैकड़ों जवान मारे गए हैं और कई अपंग हुए हैं।
‘पीटीआई-भाषा’ द्वारा प्राप्त आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 2025 की पहली तिमाही (जनवरी-मार्च) में परिष्कृत विस्फोटक उपकरण (आईईडी) के 23 हमले हुए, जिनमें केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) और छत्तीसगढ़ पुलिस सहित अन्य बलों के 23 कर्मी घायल हुए तथा 500 किलोग्राम से अधिक वजन वाले ऐसे 201 बम बरामद किए गए।
पिछले वर्ष की इसी अवधि के तुलनात्मक आंकड़े बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में नौ आईईडी हमले हुए, जिनमें छह जवान घायल हुए और 85 ऐसे बम बरामद हुए जिनका वजन लगभग 257 किलोग्राम था।
आंकड़ों के अनुसार, इस वर्ष के पहले तीन महीनों में हमलों में लगभग 150 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि जवानों के घायल होने की संख्या में चार गुना वृद्धि हुई है।
वर्ष 2024 में आईईडी हमलों के 43 मामले सामने आए, जिनमें 292 आईईडी बरामद किए गए और 33 कर्मी घायल हुए, जिनमें सीआरपीएफ के नौ कर्मी शामिल थे। सीआरपीएफ, वामपंथी उग्रवाद (एलडब्ल्यूई) प्रभावित राज्यों में माओवादी विरोधी अभियान में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
राज्य के बस्तर क्षेत्र में तैनात एक वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी ने बताया, ‘‘छत्तीसगढ़ में इस वर्ष आईईडी हमलों में लगभग 2.5 गुना वृद्धि हुई है तथा कर्मियों के घायल होने की संख्या में चार गुना वृद्धि हुई है। ऐसा इसलिए क्योंकि नक्सली आमने-सामने की लड़ाई नहीं कर रहे हैं। उनके पास हथियार, गोला-बारूद, कैडर तथा मनोबल बहुत कम है, इसलिए आईईडी उनके लिए हमले का पसंदीदा हथियार बन गया है।’’
उन्होंने कहा कि सुरक्षा बलों को अभियान के दौरान वाहनों के बजाय पैदल चलने के पुराने तरीके का पालन करने तथा पक्के रास्ते से बचने को कहा गया है।
इस वर्ष 23 मार्च को, छत्तीसगढ़ पुलिस के दो वाहनों पर सवार विशेष कार्य बल (एसटीएफ) के जवान बीजापुर जिले में ऐसे ही एक हमले में घायल हो गए थे। यह घटना उस वक्त हुई थी जब 18 वाहनों का काफिला सड़कों को सुरक्षित बनाने वाली ‘रोड ओपनिंग पार्टी’ (आरओपी) के जवानों की मदद से बेस पर लौट रहा था।
दिल्ली में एक अधिकारी ने कहा, ‘‘इसमें कोई संदेह नहीं है कि आईईडी सुरक्षा बलों के लिए एकमात्र गंभीर खतरा बने हुए हैं, क्योंकि हमारे पास उसका पता लगाने के लिए कोई सटीक तकनीक नहीं है।’’
अधिकारियों ने बताया कि आईईडी हमलों के अधिकतर मामलों में गश्त पर तैनात जवान या कोई व्यक्ति गलती से उपकरण पर पैर रख देता है और इसमें विस्फोट हो जाता है।
उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में सीआरपीएफ और कोबरा (सीआरपीएफ की विशेष टुकड़ी) की लगभग 25-27 इकाइयों को पर्याप्त संख्या में आईईडी का पता लगाने वाले उपकरण और खोजी कुत्ते आवंटित किए गए हैं।
सुरक्षा प्रतिष्ठान ने विस्फोटक सामग्रियों की बरामदगी और आईईडी विस्फोटों में ‘‘वृद्धि’’ के बाद मार्च में छत्तीसगढ़ और झारखंड में अलर्ट जारी किया था।
अधिकारियों ने कहा कि छत्तीसगढ़ में आईईडी विस्फोटों और बरामदगी में तेज वृद्धि देखी जा रही है क्योंकि कई सुरक्षा बल मार्च 2026 तक देश से वामपंथी उग्रवाद को खत्म करने की केंद्र सरकार की समय सीमा को पूरा करने के लिए प्रमुख नक्सल क्षेत्रों में जा रहे हैं।
भाषा आशीष रंजन
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