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Sunday, 22 December, 2024
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छत्तीसगढ़: बस्तर पंचायत चुनाव के मतदान प्रतिशत में भारी इजाफा, टूट रही है नक्सलवाद की कमर

चार अति प्रभावित बीजापुर, नारायणपुर, दंतेवाड़ा और सुकमा जिलों में 2015 की अपेक्षा 2020 के पंचायत चुनाव में 15 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ है. सुकमा जिले में सबसे ज्यादा करीब 23 फीसदी की वृद्धि रही.

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रायपुर: छत्तीसगढ़ में हाल ही में सम्पन्न हुए ग्राम पंचायत चुनावों से यह बात फिर साबित हो गई है कि राज्य में माओवाद का साम्राज्य कमजोर होता जा रहा है. नक्सल प्रभावित जिलों में मतदान प्रतिशत में भारी वृद्धि हुई है. इससे दिप्रिंट की पूर्व में प्रकाशित रिपोर्ट माओवादियों के कैडर संख्या बल में आई भारी गिरावट की खबर की भी पुष्टि होती है.

छत्तीसगढ़ पंचायत चुनाव 2020 के आंकड़े साफ बता रहे हैं कि माओवादियों का गढ़ माने जाने वाले बस्तर जिले में 2015 के चुनाव की अपेक्षा इस वर्ष मतदान करीब 11 प्रतिशत अधिक रहा है. 2015 के पंचायत चुनाव में जहां बस्तर के सभी सातों नक्सल प्रभावित जिलो में मतदान तकरीबन 59 प्रतिशत रहा वहीं 2020 में 70 प्रतिशत ग्रामीण मतदाताओं ने अपने मतदान का प्रयोग किया.

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2014-15 और 2019-20 में मतदान के आंकड़े.

मतदान के आंकड़े.राज्य चुनाव आयोग से प्राप्त आंकड़ो के अनुसार प्रदेश में 2020 में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव का प्रतिशत 83.55 प्रतिशत रहा जो 2015 के चुनाव में 77.85 प्रतिशत की अपेक्षा 5.7 प्रतिशत अधिक रहा. गौरतलब है कि 2015 के पंचायत चुनाव में इन नक्सल प्रभवित क्षेत्रों में हिंसा और लूट की की वारदातों के कारण 50 से भी अधिक मतदान बूथों पर निर्वाचन आयोग को पुनर्मतदान कराना पड़ा था लेकिन इस वर्ष सम्पन्न हुए चुनाव में नक्सली हिंसा की वजह से एक भी बूथ पर पुनर्मतदान नही कराए गए.

राज्य के अन्य हिस्सों में छिटपुट घटनाएं हुईं लेकिन माओवाद से ग्रसित बस्तर के सात में से चार अति प्रभावित बीजापुर, नारायणपुर, दंतेवाड़ा और सुकमा जिलों की चर्चा की जाय तो यहां 2015 की अपेक्षा 2020 के पंचायत चुनाव में 15 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ है. सुकमा जिले में सबसे अधिक मतदान करीब 23 प्रतिशत की वृद्धि रही. वहीं नारायणपुर और दंतेवाड़ा में 2015 पंचायत चुनाव की अपेक्षा 2020 में मतदान 15 प्रतिशत अधिक रहा. बीजापुर जिले में मतदान 8 प्रतिशत अधिक हुआ.

ज्ञात हो कि दिप्रिंट ने पूर्व में प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में यह बताया था की राज्य में नक्सली मिलिशिया के कैडर संख्या बल में काफी कमी आई है जिसके कारण भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की हिंसक गतिविधियों में पिछले पांच सालों में भारी गिरावट देखी जा रही है. दिप्रिंट ने अपनी रिपोर्ट में यह भी बताया था कि विगत पांच वर्षों में छत्तीसगढ़ में माओवादी मिलिशिया का संख्या बल घटकर आधा रहा गया है जिसका मुख्य कारण स्थानीय युवा ग्रामीणों में नक्सलवाद के प्रति बढ़ती नकारात्मकता और उदासीनता है.


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राज्य निर्वाचन आयुक्त ठाकुर राम सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि पिछले वर्षों की अपेक्षा इस वर्ष ग्रामीणों ने विशेषकर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में बड़ी संख्या में भयमुक्त होकर मतदान किया है. ठाकुर बताते हैं, ‘मतदान के आंकड़ो से भी यह साफ हो रहा है कि माओवादियों का भय ग्रामीणों में कम हो रहा है. सुरक्षा बलों की कड़ाई से और सरकार द्वारा किये गए विकास के कार्यों ने जनता में नक्सलियों की पकड़ काफी कमजोर कर दी है. स्थानीय युवा अब उनके बहकावे में आसानी से नही आते. यही कारण है कि नक्सल प्रभवित जिलों में इस पंचायत चुनाव में मतदान प्रतिशत काफी बढ़ा है.’

निर्वाचन आयुक्त का मानना है की नक्सली क्षेत्रों मे यदि मतदान केंद्रों की दूरी कम हो जाय तो यहां मतदान प्रतिशत और भी बढ़ सकता है. उनके अनुसार सुदूरवर्ती क्षेत्रों में मतदान केंद्रों की दूरी ज्यादा होने के कारण ग्रामीण कई बार मतदान करने नहीं जा पाते.

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