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Thursday, 31 October, 2024
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छत्तीसगढ़ की नई पुनर्वास योजना, पुलिस दंतेवाड़ा में 1600 में से 500 नक्सलियों का कराएगी सरेंडर

छत्तीसगढ़ पुलिस नक्सलियों के पुनर्वास के लिए 'पारदर्शी' लोन वर्राटू प्लान पर काम कर रही है. अगर यह कारगर होता है तो वह इसे आगे बढ़ाएगी.

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रायपुर: छ्त्तीसगढ़ पुलिस ने साल के अंत तक बस्तर के दंतेवाड़ा जिले से 500 नक्सलियों के आत्मसमर्पण का टारगेट तैयार किया है. पुलिस इस नए पुनर्वास अभियान को पारदर्शी बताया है.

बस्तर में नक्सलवाद विरोधी अभियान को मॉनिटर कर रहे पुलिस अधिकारियों का कहना है कि दंतेवाड़ा जिले के करीब 1600 ग्रामीण नक्सली बन चुके हैं जिनकी पहचान कर ली गई है. इनमें 200 के करीब सशस्त्र लड़ाके हैं.

इन नक्सलियों का ब्यौरा पुलिस ने हाल ही में किए गए एक बड़े सर्वे अभियान के तहत उनके गांव जाकर एकत्रित किया है. अधिकारियों ने बताया कि एकत्रित जानकारी के आधार पर पुलिस अब इन नक्सलियों को दंतेवाड़ा जिले में चलाए जा रहे एक विशेष अभियान ‘लोन वर्राटू’ (गृह वापसी) के तहत आत्मसमर्पण के लिए अपील कर रही है.

लोन वर्राटू से संबंधित पाम्पलेट्स और फ्लेक्स पुलिस ने नक्सलियों की सूची बनाने के बाद जून के पहले सप्ताह में ही लगाना शुरू कर दिया था लेकिन इसके नतीजे माह के अंतिम सप्ताह से आने शुरू हुए और पिछले 16 दिनों के अंदर अबतक 58 नक्सलियों ने सरेंडर कर दिया है. लेकिन साल के अंत तक का टारगेट 500 नक्सलियों के सरेंडर का है.

दिप्रिंट से बात करते हुए नक्सल विरोधी अभियान का नेतृत्व कर रहे बस्तर रेंज के आईजी सुंदरराज पी ने बताया, ‘लोन वर्राटू कार्यक्रम सरकार और पुलिस की एक विशेष कोशिश है जिसके तहत गुमराह हुए ग्रामीण अपने घरों को वापस आएं और सरकार की मदद से नई जिंदगी शुरू कर सकें. इसके अंतर्गत बनाई गई सरेंडर नीति में यह जरूरी नहीं है कि आत्मसमर्पित माओवादी रोजगार के लिए पुलिस में ही भर्ती हों जैसा की पहले था. अब उनके लिए इच्छानुसार रोजगार की सुविधा दी जा रही है. बैंक लोन की व्यवस्था भी अन्य विभागों से मिलकर की गई है. लोन वर्राटू के शुरुआती परिणाम काफी पॉजिटिव हैं.’

दंतेवाड़ा के एसपी अभिषेक पल्लव ने हमें बताया, ‘आज तक प्रदेश में नक्सलियों की सही संख्या की कोई जानकारी नहीं थी. चाहे कोर्ट हो या फिर कोई जांच कमीशन, सबके सामने हमेशा अनुमानित आंकड़े ही आते थे. दंतेवाड़ा ऐसा पहला जिला है जहां हमने सभी 35-40 नक्सल प्रभावित गांवों से 1600 नक्सलियों की पहचान की है जिनमें से साल के अंत तक 500 के सरेंडर का टारगेट है. ‘लोन वर्राटू’ की यह पहली आवश्यकता थी’.

पल्लव के अनुसार इस अभियान के तहत सरेंडर करने वाले नक्सलियों को पहले की तरह 10 हजार रुपए त्वरित राहत के रूप में दिया जाता है. इसके बाद उनके रोजगार की व्यवस्था स्व सहायता समूह बनाकर की जाएगी.

पल्लव कहतें हैं, ‘इन नक्सलियों के नामों के पम्पलेट्स संबंधित ग्राम पंचायतों, वहां के सरकारी भवनों और उनके घरों की दीवारों पर उनसे वापसी की अपील के साथ चस्पा किया जा रहा है. इनामी नक्सलियों के फ्लेक्स भी लटकाए जा रहे हैं. इसके साथ ही सुरक्षा बलों की टीमें गांव में जाकर ग्रामीणों से भी आग्रह कर रहीं हैं कि वे अपने साथियों को माओवाद की राह छोड़ मुख्य धारा से जुड़ने के लिए प्रेरित करें.’

150 में से 20 पंचायतों को रेड एरिया कहा जाता

ज्ञात हो कि दंतेवाड़ा में कुल करीब 150 ग्राम पंचायतें हैं. इनमें माओवादियों के पूर्ण कब्जे वाली करीब 20 पंचायतें हैं जिन्हें रेड एरिया कहा जाता है. करीब 30 पंचायतें ग्रे एरिया कहलाती हैं जहां सुरक्षाबल और माओवादी दोनों ग्रामीणों के सम्पर्क में रहते हैं. बची हुई 100 पंचायतें ग्रीन क्षेत्र हैं जहां राज्य पुलिस और प्रशासन का पूर्ण अधिकार है.

पुलिस का दावा- अभियान पारदर्शी और शांतिपूर्ण

पुलिस अधिकारियों का कहना है कि लोन वर्राटू एक पारदर्शी अभियान है क्योंकि इसमें ग्रामीणों को पहले ही बता दिया गया है की अभियान किसके विरुद्ध है. नक्सलियों के परिजनों को बताया गया है कि उनके गांव से कितने लोग सशस्त्र नक्सली हैं और कितने उनके फ्रंटल संगठनों के सदस्य.

पल्लव कहते हैं, ‘पहले जब पुलिस नक्सलियों के खिलाफ कार्रवई करती थी तो हम पर आम ग्रामीणों को मारने, अत्याचार और बर्बरता के आरोप लगते थे. इनामी नक्सली को भी गिरफ्तार और मारने पर विरोध होता था. यह हमारे लिए बहुत एम्बरेसिंग होता था. लेकिन अब ग्रामीणों को पूरी जानकारी पहले ही दे दी गई है. अब नक्सलियों के घरों में पम्पलेट्स लगाकर उनके परिजनों से पावती भी ली जा रही है. इससे नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई में कोई उन्हें आम ग्रामीण नहीं बता सकता.’

एक अन्य पुलिस अधिकारी ने बताया की इस पारदर्शिता के चलते नक्सली ग्रामीणों को गुमराह नहीं कर पा रहे और न ही अभियान के खिलाफ अभी तक कोई पर्चा जारी किया है.

पुलिस अधिकारियों का कहना है कि दंतेवाड़ा में लोन वर्राटू एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लागू किया गया है. इस साल अंत तक परखा जाएगा. यदि परिणाम आशा अनुरूप आएंगे तो नक्सलियों को मुख्यधारा से जोड़ने का यह विशेष अभियान राज्य के अन्य माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में भी लागू किया जाएगा.

पल्लव के अनुसार, ‘हमें उम्मीद है कि 500 से अधिक नक्सली इस अभियान के तहत मुख्यधारा से जुड़ेंगे. टारगेट पूरा होने में बाद बचे हुए नक्सलियों के सरेंडर के लिए अलग से कोशिशि की जाएगी. यह भी हो सकता है कि दूसरे भी इन 500 के साथ स्वयं ही आ जाएं.’

लोन वर्राटू है सलवा जुडूम से भिन्न

राज्य के पुलिस अधिकारी कहते हैं कि लोन वर्राटू 2005 में लांच किए गए नक्सल विरोधी अभियान सलवा जुडूम से भिन्न है. इन अधिकारियों के अनुसार सलवा जुडूम नक्सलियों के खिलाफ एक सशस्त्र लड़ाई थी और इसमें प्लान का अभाव था. नक्सलियों की विचारधारा को प्रसारित करने वाले उनके फ्रंटल संगठनों को कमजोर करने का कोई तोड़ नहीं था.

पल्लव के अनुसार, ‘लोन वर्राटू के तहत माओवादी विचारधारा को प्रोपोगेट करने वाले उनके फ्रंटल घटकों के खिलाफ सरकार यह बताने का प्रयास कर रही है कि माओवादियों ने उन्हें आज तक कोई सुविधा तो दी नहीं बल्कि उनके परिवार वालों को परेशानी में ही डाला है. वहीं दूसरी ओर ग्रामीणों को सरेंडर पॉलिसी के तहत नक्सलियों के लिए दी जाने वाली सुविधाओं के बारे में बताया जा रहा है.’

पुलिस के अभियान ने किया स्वागत  

छ्त्तीसगढ़ पुलिस के इस अभियान पर नक्सल क्षेत्र में काम कर रहे शुभ्रांशु चौधरी ने हमसे बात करते हुए कहा,’ यह एक अच्छा और अभिनव प्रयोग है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए पर इसकी सफलता के बारे में अभी से टिप्पणी करना थोड़ी जल्दबाजी होगी.’ चौधरी कहते हैं, ‘अब तक जितने भी नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है उनमें से अधिकतर बिल्कुल ही निचले पायदान के नक्सली हैं पर यदि साल के अंत तक 500 निचले पायदान के नक्सली भी आत्मसमर्पण करते हैं तो वह एक बड़ी सफलता होगी.’

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