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Thursday, 21 November, 2024
होमदेशदस मिनट में पहुंचेंगे चेन्नई से बेंगलुरु? IIT मद्रास की 'हाइपरलूप रेल' 10 वर्षों में सच करेगी ये सपना

दस मिनट में पहुंचेंगे चेन्नई से बेंगलुरु? IIT मद्रास की ‘हाइपरलूप रेल’ 10 वर्षों में सच करेगी ये सपना

'अविष्कार हाइपरलूप' परियोजना टीम एक हाइपरलूप रेल मॉडल का प्रदर्शन करने के प्रारंभिक चरण में है जो भविष्य में भारत में इंटर-सिटी यात्रा को आसान बना देगा और इसकी लागत लगभग हवाई टिकट के बराबर ही होगी.

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नई दिल्ली: यात्रियों के लिए एक ऐसे पॉड या डिब्बे की कल्पना करें जो आंशिक वैक्यूम में एक ट्यूब के अंदर चलता है और चेन्नई से बेंगलुरु – लगभग 350 किमी की दूरी को केवल 30 मिनट में पहुंचा देता है.

‘अविष्कार हाइपरलूप’ नामक परियोजना पर काम कर रहे भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) – मद्रास के अंडरग्रेजुएट, पोस्ट-ग्रेजुएट और डॉक्टरेट छात्रों सहित 50 से अधिक लोगों की एक टीम का कहना है कि हाइपरलूप तकनीक पर चलने वाली उच्च गति परिवहन प्रणाली 10 वर्षों में भारत में एक सच्चाई बन सकती है.

‘अविष्कार हाइपरलूप’ परियोजना के छात्रों की टीम की प्रमुख मेधा कोम्माजोस्युला ने दिप्रिंट को बताया, “इस साल हम अपनी अवधारणा को मान्य करने के बहुत करीब हैं, जिसका अर्थ है एक भौतिक प्रयोग के साथ अपनी परिकल्पना को साबित करना.”

उन्होंने कहा, “अगर हम अभी जिस गति से चल रहे हैं उसी गति से काम करना जारी रखें, तो हम अगले 10 वर्षों में पैमाने की पहली कार्यशील हाइपरलूप रेल बनाने में सक्षम हो सकते हैं.”

हाइपरलूप प्रणाली, आईडिया का श्रेय अरबपति उद्यमी एलन मस्क को दिया जाता है, आंशिक वैक्यूम में पॉड्स को गति देने के लिए मैगनेटिक प्रोपल्शन का उपयोग करता है, जिससे उन्हें कम वायु प्रतिरोध के कारण अत्यधिक उच्च गति – 1,000 किमी प्रति घंटे तक – यात्रा करने की अनुमति मिलती है.

आईआईटी मद्रास की ‘अविष्कार टीम’ का दावा है कि यह दुनिया की कुछ छात्र-नेतृत्व वाली टीमों में से एक है जो इस तरह के पॉड का निर्माण करने, इसे एक ट्यूब के माध्यम से चलाने और हाइपरलूप की अवधारणा को साबित करने में सक्षम है.

अविष्कार हाइपरलूप के संकाय सलाहकार, प्रोफेसर सत्यनारायण चक्रवर्ती ने दिप्रिंट को बताया, “अभी तक, टीम एक सब-स्केल हाइपरलूप मॉडल का प्रदर्शन करने के शुरुआती चरण में है. वे वर्तमान में स्कॉटलैंड में अपने द्वारा बनाए गए पॉड के उत्तोलन का प्रदर्शन कर रहे हैं.”

टीम के अनुसार, उन्होंने अब तक हाइपरलूप रेल बनाने में उपयोग की जाने वाली प्रौद्योगिकियों के लिए छह पेटेंट के लिए आवेदन किया है, जिसमें ट्यूब बनाने में उपयोग की जाने वाली तकनीक, पॉड्स के लिए उत्तोलन और प्रणोदन प्रणाली और बैटरी के लिए कूलिंग आर्किटेक्चर शामिल हैं.

मेधा ने कहा, “फिलहाल, हम इस पर विचार कर रहे हैं कि वैक्यूम के अंदर एक पॉड में एयर कंडीशनर को कैसे कार्यात्मक बनाया जाए. इसके अलावा, किस तरह का वेंटिलेशन और कितने लोगों को बैठाया जा सकता है, ये कुछ चीजें हैं जिनका हमें पता लगाने की जरूरत है.

रेल मंत्रालय ने पिछले साल हाइपरलूप तकनीक पर एक सहयोगी परियोजना के लिए आईआईटी-मद्रास को 8.34 करोड़ रुपये की फंडिंग दी थी. यह भत्ता तब दिया गया जब संस्थान ने हाइपरलूप-प्रौद्योगिकी आधारित परिवहन प्रणाली और उसके उप-प्रणालियों को सहयोग करने और स्वदेशी रूप से विकसित करने के लिए मंत्रालय को एक शोध प्रस्ताव प्रस्तुत किया था.


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परियोजना की उत्पत्ति

यह बताते हुए कि आईआईटी के छात्रों ने हाइपरलूप परियोजना पर काम करना कैसे शुरू किया, मेधा ने कहा कि अविष्कार टीम ने 2018 में स्पेसएक्स हाइपरलूप पॉड प्रतियोगिता में भाग लिया था, जिसमें छात्र टीमों और शौकीनों ने हाइपरलूप अवधारणा के विभिन्न पहलुओं की तकनीकी व्यवहार्यता का प्रदर्शन करते हुए एक प्रोटोटाइप परिवहन वाहन का डिजाइन और निर्माण किया था.

प्रतियोगिता में भाग लेने के बाद से टीम इस परियोजना पर काम कर रही है. आईआईटी के दोहरे डिग्री इंजीनियरिंग डिजाइन पाठ्यक्रम में तीसरे वर्ष की छात्रा मेधा ने कहा, “यह देखना बहुत रोमांचक है कि जो एक मजेदार गतिविधि के रूप में शुरू हुई थी वह अब कुछ ऐसी चीज बन गई है जो देश में यात्रा करने के तरीके को बदल सकती है.” वह आविष्कार परियोजना के लिए कॉर्पोरेट संबंधों का प्रबंधन भी करती हैं.

उन्होंने आगे कहा, “हम अपनी कक्षाएं समाप्त करते हैं और हाइपरलूप प्रोजेक्ट पर अपना दिन का काम शुरू करने के लिए तुरंत प्रयोगशाला में जाते हैं. हमारा इरादा इसके चालू होने के बाद ही इसे रोकने का है.”

टीम के अन्य सदस्यों में बीटेक मैकेनिकल इंजीनियरिंग के तीसरे वर्ष के छात्र श्रीद सुरेश शामिल हैं, जो परियोजना की अवधारणा सत्यापन और परियोजना नियोजन पक्ष के प्रमुख हैं; अंकित बंसल, सामग्री विज्ञान के मास्टर द्वितीय वर्ष के छात्र, जो सिस्टम की स्केलेबिलिटी पर काम करने वाली इकाई का नेतृत्व करते हैं; और सिद्धांत पटोले, एक स्नातक सिविल इंजीनियरिंग छात्र, जो बुनियादी ढांचे के विकास के लिए टीम का नेतृत्व करते हैं.

टीम ने कहा कि जब वे हाइपरलूप परियोजना के लिए इंजीनियरिंग के कई पहलुओं पर काम करते हैं, तो जब भी उन्हें क्षेत्र-विशिष्ट मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है, तो विभिन्न विभागों के उनके कई प्रोफेसर उनकी मदद करते हैं.

‘हवाई यात्रा की गति, ट्रेन यात्रा की लागत’

प्रोफेसर चक्रवर्ती ने दिप्रिंट को बताया कि हाइपरलूप प्रणाली भारत में लोगों के यात्रा करने के तरीके को बदल सकती है, और आईआईटी छात्रों की टीम का लक्ष्य “ट्रेन यात्रा की कीमत पर हवाई यात्रा की गति लाना” है.

इस प्रकार आविष्कार टीम के सदस्य परिवहन प्रणाली की लागत में कमी लाने पर काम कर रहे हैं.

पटोले ने कहा, “अगर हमें भारत में 350 किलोमीटर लंबी ट्यूब बिछानी हो, तो कुल परियोजना लागत का 70 प्रतिशत केवल ट्यूब बिछाने में ही खर्च हो जाएगा. इसलिए, हम विशेष रूप से उन धातुओं का उपयोग करने पर विचार कर रहे हैं जो ऐसी संरचनाओं के निर्माण के लिए लागत प्रभावी हैं जिनके लिए न्यूनतम व्यय की आवश्यकता होती है.”

पिछले साल, आईआईटी-मद्रास को हाइपरलूप की अवधारणा का परीक्षण करने के लिए चेन्नई में 400 मीटर की वैक्यूम ट्यूब बनाने के लिए लार्सन एंड टुब्रो से फंडिंग मिली थी.

प्रोफेसर चक्रवर्ती ने कहा कि अगले दो वर्षों में, अविष्कार टीम बड़े पैमाने पर हाइपरलूप रेल मॉडल बनाने के लिए टाटा स्टील के साथ-साथ एलएंडटी के साथ मिलकर काम करेगी, जिसमें मुंबई-पुणे, दिल्ली-आगरा आदि सहित भारत के सबसे व्यस्त शहरों में लागू करने की क्षमता होगी.

यात्रा की आसानी के बारे में बोलते हुए, उन्होंने कहा, “परिचालन के बाद, हम उम्मीद करते हैं कि हाइपरलूप रेल हर 2.5 मिनट के अंतराल पर चलेगी और टिकटों की कीमत लगभग 1,500 रुपये होगी. इससे भारत में इंटर-सिटी यात्रा के तरीके में बदलाव आएगा.”

उन्होंने कहा कि वर्तमान में, दुनिया भर में हाई-स्पीड रेल के निर्माण की लागत लगभग 27 मिलियन डॉलर प्रति किमी है. चक्रवर्ती ने कहा, “टीम आविष्कार का लक्ष्य 10 मिलियन डॉलर प्रति किमी की लागत से हाइपरलूप रेल बनाने का है.”

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संपादन: अलमिना खातून


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