scorecardresearch
Sunday, 17 November, 2024
होमदेशकैसे चेन्नई के जौहरियों ने नेहरू के लिए 'सेंगोल' तैयार किया था, फिर इसे भूल गए और अब 70 साल बाद इसे खोजा

कैसे चेन्नई के जौहरियों ने नेहरू के लिए ‘सेंगोल’ तैयार किया था, फिर इसे भूल गए और अब 70 साल बाद इसे खोजा

28 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उद्घाटन किए जा रहे नए संसद भवन में लोकसभा अध्यक्ष की सीट के बगल में पारंपरिक राजदंड स्थापित किया जाएगा.

Text Size:

चेन्नई: 1947 के बाद 72 वर्षों तक, तमिलनाडु में वुम्मिदी बंगारू ज्वेलर्स को भारत के अंतिम ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन द्वारा स्वतंत्रता के समय देश के पहले प्रधान मंत्री, जवाहरलाल नेहरू को सौंपे गए “सेंगोल” या ऐतिहासिक राजदंड के साथ अपने संबंध के बारे में नहीं पता था.

जब माउंटबेटन ने नेहरू से उस समारोह के बारे में पूछा था जिसका पालन अंग्रेजों से भारत में सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में किया जाना चाहिए, तो नेहरू राजनीतिज्ञ और स्वतंत्रता सेनानी सी. राजगोपालाचारी (राजाजी) के पास पहुंचे.

राजाजी के प्रपौत्र और तमिलनाडु में एक भाजपा नेता सी.आर. केसवन ने कहा, “जब राजाजी से पूछा गया, तो उनके दिमाग में पहली बात यह आई कि सदियों पहले दक्षिण भारत में सत्ता का हस्तांतरण राजदंड के अनुष्ठान के साथ कैसे हुआ था, जैसे कि चेरों, चोलों और पांड्यों के राजवंशों में.”

जैसे ही इस विचार को हरी झंडी मिली, राजाजी को इसे क्रियान्वित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. इसके बाद उन्होंने तिरुवदुथुराई अधीनम से संपर्क किया, जो वर्तमान तमिलनाडु में एक शैव मठ है, और मठ के मुख्य पुजारी ने राजदंड बनाने के कार्य के साथ वुम्मिदी बंगारू ज्वैलर्स को नियुक्त किया.

इस पारंपरिक सेंगोल को अब 28 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उद्घाटन किए जा रहे नए संसद भवन में लोकसभा अध्यक्ष की सीट के बगल में स्थापित किया जाएगा.

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में अधीक्षण पुरातत्वविद् (सेवानिवृत्त) टी सत्यमूर्ति के अनुसार, दुनिया भर के राज्यों और राजवंशों में, राजदंड का एक प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व है.

उन्होंने कहा, “यह राजा को उनके धर्म की याद दिलाने वाला एक प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व है, जो अपने लोगों को सुशासन प्रदान करना है.”


यह भी पढ़ें: आजादी के 75 साल बाद अचानक क्यों याद आया BJP को ‘राजदंड’, भारतीय सम्राट की शक्ति का प्रतीक है सेंगोल


रिकॉर्ड का न होना 

दिप्रिंट से बात करते हुए, वुम्मिदी बंगारू चेट्टी परिवार की चौथी पीढ़ी के सदस्य, अमरेंद्रन वुम्मिदी ने बताया कि कैसे 1965 के एक “सख्त कानून” जिसे गोल्ड कंट्रोल एक्ट कहा जाता है, ने एक छोटी अवधि में कई सोने के निर्माण कारखानों को बंद कर दिया, जिसमें वुम्मिदी बंगारू ज्वैलर्स की इकाइयां भी शामिल थीं. . इससे उनके कुछ समृद्ध इतिहास के डेटा, रिकॉर्ड और जानकारी का भी नुकसान हुआ.

अमरेंद्रन ने कहा, “चेन्नई में हमारी दुकान में बहुत लंबे समय से राजदंड की एक तस्वीर थी, लेकिन अधिकांश युवा पीढ़ी को इसके महत्व के बारे में पता नहीं था.”

यह 2019 था, जब एक तमिल साप्ताहिक पत्रिका ने राजदंड और इसके Vummidi Bangaru Jewellers से लिंक के बारे में छापा इसके बाद परिवार ने राजदंड का पता लगाने का प्रयास शुरू किया.

कई महीनों के बाद, 2020 में कोविड लॉकडाउन से ठीक पहले, परिवार को जानकारी मिली कि राजदंड इलाहाबाद संग्रहालय में रखा हुआ है.

कोविड महामारी के चरम के दौरान, जौहरियों के परिवार ने राजदंड के बारे में एक वीडियो बनाया.

अमरेंद्रन ने कहा, “यह बात किसी तरह से प्रधान मंत्री कार्यालय तक पहुंची जिसके बाद प्रधान मंत्री चाहते थे कि जानकारी की जांच हो और इसकी सत्यता को जांचा जाए. जानकारी की क्रॉस-चेकिंग के बाद, हमें राजदंड की प्रतिकृति बनाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा संपर्क किया गया था, ”

राजदंड के बारे में बताते हुए, उन्होंने समझाया कि उनके परदादा और उनके बाबा और इनके भाइयों द्वारा बनाया गया पारंपरिक सेंगोल पांच फीट लंबा सोने का डंडा था जिसमें कम से कम एक किलोग्राम सोने का इस्तेमाल होता था और आज के युग में इसकी कीमत लगभग 70 -75 लाख रुपये है.

उन्होंने कहा, “सोने का सही वजन अभी नहीं मापा जा सकता है क्योंकि इसे स्थिरता देने के लिए लकड़ी को राजदंड के अंदर रखा गया है.”

अमरेंद्रन ने कहा, वुम्मिदी बंगारू ज्वैलर्स की निर्माण इकाई में तैयार किए गए राजदंड को कम से कम “30 दिन और लगभग पांच से आठ लोगों को काम करना पड़ता है”, उन्होंने कहा, ” इसपर नंदी (शिव की सवारी बैल) जैसे कई बारीक विवरण हैं.” राजदंड के शीर्ष पर और राजदंड पर तमिल में लिखी गई कई पंक्तियां भी सुशोभित हैं ”.

युवा पीढ़ी को शिक्षित करना

व्यापार में प्रसिद्ध, वुम्मिदी बंगारू ज्वैलर्स के लिए अधीनम मठ के मुख्य पुजारी ने राजदंड को डिज़ाइन किया था.

व्यवसाय की शुरुआत 1900 में तत्कालीन मद्रास में वुम्मिदी बंगारू चेट्टी द्वारा की गई थी. वेल्लोर जिले के गुड़ियाथम के रहने वाले चेट्टी परिवार को पिछले 123 वर्षों से बेहतरीन आभूषण निर्माताओं में से एक के रूप में जाना जाता है.

अमरेंद्रन याद करते हुए बताते हैं, जब चेट्टी ने व्यवसाय शुरू किया, तो वह गुडियाथम में शुभ अवसरों के दौरान अपने दोनों बेटों के साथ दो मंदिरों में जाते थे.

उन्होंने कहा, “तीन बेटों में से एक को पढ़ने के लिए भेजा गया था और दो अन्य मेरे परदादा के साथ दो मंदिरों में जाते थे. वे अपने साथ एक संदूक रखते थे और शुभ अवसरों पर भक्त उनके पास कान और नाक छिदवाने आते थे. इस तरह उन्होंने व्यवसाय शुरू किया. ”

उन्होंने कहा कि बाकी साल वे आभूषण निर्माण में लगे रहते थे.

और परिवार जल्द ही मद्रास में एक प्रसिद्ध नाम बन गया.

वुम्मिदी बंगारू ज्वेलर्स द्वारा बनाए गए राजदंड के हाल ही में सुर्खियों में आने के बाद, परिवार के बुजुर्ग युवा पीढ़ी के साथ अपने ग्राहकों की यादें साझा कर रहे हैं.

अमरेंद्रन ने कहा, “दो पूर्व मुख्यमंत्री, जो क्रमशः एक अभिनेता और अभिनेत्री थे, अपने फिल्मीं दिनों के दौरान हमारे आभूषण स्टोर में नियमित रूप से आते थे. अंबानी, इंद्रा नूई (पेप्सिको की पूर्व सीईओ)और उनका परिवार नियमित ग्राहक रहे हैं. हमारे ग्राहक सिर्फ भारत से ही नहीं बल्कि दुनिया भर से हैं. ”

वुम्मीदी परिवार की चौथी और पांचवीं पीढ़ी अब आभूषण की दुकानें चला रही हैं.

‘एक अच्छा प्रतीकात्मक इशारा’

भारत के स्वतंत्र होने से 15 मिनट पहले सेंगोल को पहली बार नेहरू को सौंप दिया गया था.

केसवन ने कहा, “थिरुवदुथुराई अधीनम के उप महायाजक कुमारस्वामी थम्बिरन ने माउंटबेटन के हाथों से राजदंड लिया और इसे गंगाजल से शुद्ध किया. उसके बाद थेवरम (भगवान शिव की स्तुति में भक्ति गीत) के भजन एक ओडुवर (गायक) द्वारा गाए गए थे, जबकि नादस्वरम (वाद्य) राजरत्नम पिल्लई द्वारा बजाया गया और एक समारोह के दौरान राजदंड जवाहरलाल नेहरू को सौंप दिया गया था.”

हालांकि, इसके तुरंत बाद, राजदंड – जिसे 25 अगस्त, 1947 को टाइम पत्रिका के अंक में “शक्ति और अधिकार का प्रतीक” के रूप में वर्णित किया गया था – को भुला दिया गया.

भाजपा के तमिलनाडु राज्य सचिव एसजी सूर्या ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में कहा कि संग्रहालय में तस्वीरों में, सेंगोल को नेहरू की “सोने की छड़ी” कहा गया था.

राजदंड को नए संसद भवन में जगह मिलने पर केसवन ने कहा, “संसद को ‘नडालु मंद्रम’ कहा जाता है, जिसका अर्थ है देश पर शासन करने वाला स्थान. इस तरह, राजदंड की नियुक्ति एक अच्छा प्रतीकात्मक संकेत है.”

राजदंड पर बना नंदी बैल न्याय का प्रतीक है.

आगामी उद्घाटन के लिए, वुम्मिदी बंगारू ज्वैलर्स के परिवार के 117 सदस्यों में से 10 नई दिल्ली में मौजूद रहेंगे – पूरे परिवार के लिए “गर्व का क्षण” है, अमरेंद्रन ने कहा, चेन्नई लौटने के बाद, वुम्मिदी बंगारू ज्वैलर्स के 117 सदस्यों वाली पांचवीं पीढ़ी एक भव्य मिलन समारोह का आयोजन करेगा.

(संपादन-पूजा मेहरोत्रा)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: आजादी का प्रतीक ‘सेंगोल’ दिखेगा नई संसद में, अमित शाह बोले- हमारी ऐतिहासिक परंपरा पुनर्जीवित होगी


 

 

share & View comments