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Saturday, 21 December, 2024
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सस्ती शराब, ज्यादा राजस्व – पंजाब की नई आबकारी नीति से राज्य सरकार की ‘बल्ले-बल्ले’

नई आबकारी नीति से पंजाब में अब शराब की कीमतें कम हो जाएंगी. सरकार अधिक राजस्व पाने के लिए भारतीय निर्मित विदेशी शराब पर जोर दे रही है.

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नई दिल्ली: शराब की कीमतें कम करना, राजस्व बढ़ाना और एकाधिकार खत्म करना – ये पंजाब की नई आबकारी नीति के कुछ घोषित उद्देश्य हैं. इसे शराब पीने वालों, उद्योग और राज्य सरकार हर किसी के लिए फायदे के तौर पर देखा जा रहा है.

दरअसल मई में जारी नई आबकारी नीति ग्राहकों के लिए एयरकंडीशंड शराब की दुकानों के अंदर जाकर शराब की खरीदारी के लिए दरवाजे खोल रही है.

आबकारी नीति का एक बड़ा लक्ष्य उस राजस्व को बचाना है जो पंजाब पड़ोसी राज्यों को शराब की बिक्री पर एकत्र किए गए करों के रूप में देता है. पड़ोसी राज्यों में कम शुल्क के कारण शराब काफी सस्ती है. जिस वजह से पंजाब में बहुत से लोग चंडीगढ़ और पड़ोसी हरियाणा से शराब खरीदने को ज्यादा तरजीह देते रहे हैं.

अब हरियाणा की तुलना में पंजाब में शराब की एक बोतल की कीमत 10 से 15 फीसदी कम हो जाएगी.

लेकिन पंजाब की नई आबकारी नीति सभी के लिए फायदे का सौदा साबित होगी ऐसा नहीं है. कुछ लोगों के लिए यह घाटे का सौदा है. और इसमें सबसे आगे थोक विक्रेता हैं, जो कह रहे हैं कि इससे उन्हें होने वाली बचत में कमी आ जाएगी. वे एल1 के लिए वार्षिक लाइसेंस शुल्क – भारतीय शराब की थोक आपूर्ति के लिए शराब लाइसेंस – को बढ़ाकर 5 करोड़ रुपये करने का भी विरोध कर रहे हैं.

नई आबकारी नीति पर थोक विक्रेताओं की चिंताओं पर स्पष्टीकरण के लिए दिप्रिंट ने फोन और ईमेल के जरिए राज्य के एक्साइज कमिश्नर वरुण रूजम से संपर्क करने की कोशिश की है. उनकी प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.

 

शराब पीने वालों के लिए चीयर्स!

पंजाब की नई आबकारी नीति उपभोक्ताओं के लिए क्या मायने रखती है? सबसे पहले तो कम शुल्क की वजह से अब उन्हें अपनी पसंदीदा शराब के लिए ज्यादा भुगतान नहीं करना पड़ेगा.

वहीं होलसेल की दुकान पर शराब पर लगने वाले शुल्क में 25-60 फीसदी की कटौती की गई है.

नई आबकारी नीति के अनुसार, पीएमएल और आयातित विदेशी शराब (आईएफएल) को छोड़कर, पंजाब में बेची जाने वाली सभी शराब पर थोक मूल्यों पर सिर्फ 1 प्रतिशत शुल्क लगाया जाएगा.

उदाहरण के लिए, पहले पंजाब मीडियम लिकर (पंजाब की देशी शराब या पीएमएल) पर 25 रुपये प्रति प्रूफ लीटर (शराब की माप इकाई) का उत्पाद शुल्क लगाया जाता था. वही भारतीय निर्मित विदेशी शराब (आईएमएफएल) पर 95-470 रुपये प्रति प्रूफ लीटर और बीयर पर शुल्क 58-68 रुपये प्रति बल्क लीटर (1,000 मिलीलीटर) था.

इसका सीधा सा मतलब है कि पंजाब में अब आपको भारतीय निर्मित विदेशी शराब जैसे जैक डेनियल की टेनेसी व्हिस्की ओल्ड नंबर 7 या बैलेंटाइन या अन्य की एक बोतल के लिए कम भुगतान करना होगा.


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राजस्व बढ़ाने पर सरकार की नजर

शुल्क में कमी के बावजूद पंजाब सरकार को वित्त वर्ष 2022-23 में शराब और संबंधित व्यवसायों पर करों से कम से कम कागज पर 9,647.85 करोड़ रुपये के राजस्व की उम्मीद है. यह पिछले वित्त वर्ष में पंजाब सरकार द्वारा राजस्व में उत्पन्न 7,000 करोड़ रुपये से लगभग 2,600 करोड़ रुपये के राजस्व में वृद्धि को दिखा रहा है.

नई आबकारी नीति के अनुसार, सरकार शराब की बिक्री पर शुल्क/करों में कटौती के कारण होने वाले राजस्व के नुकसान की भरपाई के लिए लाइसेंस और अन्य परमिट (विवाह स्थलों, पब, रेस्तरां आदि) के लिए बढ़ी हुई फीस से उम्मीद लगाए हुए है.

राजस्व में नुकसान की भरपाई पंजाब में आम आदमी पार्टी सरकार के लिए प्राथमिकता है. क्योंकि उसे 1 जुलाई 2022 से 300 यूनिट मुफ्त बिजली के प्रावधान सहित अपने अन्य चुनावी वादों को पूरा करने के लिए फंड की जरूरत है.

इस लिहाज से मुख्यमंत्री भगवंत मान को पंजाब के वित्तीय बोझ से निपटने की कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. राज्य का बकाया कर्ज इस वित्तीय वर्ष में 3 लाख करोड़ रुपये के पार हो जाने की उम्मीद है.

पंजाब की नई आबकारी नीति का दूसरी बड़ी खासियत लिकर डिस्ट्रीब्यूशन चैन पर हावी एकाधिकार को कमजोर करने का प्रयास है.

नीति के मुताबिक, एक थोक व्यापारी को जरूरी एल1 लाइसेंस पाने के लिए उसके पास निर्माता के संचालन में कोई हिस्सेदारी नहीं होनी चाहिए. इसके अलावा, यह एक शराब निर्माता को खुदरा आउटलेट के लिए बोली लगाने से भी रोकती है.

नीति दस्तावेज में कहा गया है, ‘ यह इस बिजनेस में दबदबा रखने वाली कंपनियों के एकाधिकार को खत्म करने के लिए किया जा रहा है. क्योंकि रिटेलर और मैन्युफैक्चरिंग कंपनियां के एक होने की संभावना बनी रहती है. और ये दोनों मिलकर किसी एक ब्रांड के पक्ष में रहते हुए दूसरे ब्रांड को बाहर करने के लिए ओवरचार्जिंग जैसे हथकंडे अपनाती हैं और ब्रांड को प्रभावित कर सकती हैं’

राज्य के आबकारी आयुक्त वरुण रूजम ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि नई आबकारी नीति का उद्देश्य पंजाब में ‘माफिया राज’ को कम करना है.

आईएमएफएल का कोटा

पंजाब की नई आबकारी नीति से एक महत्वपूर्ण बात यह है कि यह ‘शराब कोटा उठाने’ में बदलाव के रूप में आईएमएफएल को आगे बढ़ने का संकेत देती है. उद्योग के संदर्भ में शराब आपूर्तिकर्ता निश्चित मात्रा में, एक निश्चित अवधि के दौरान खुले बाजार से यह कोटा उठा या खरीद सकता है.

उदाहरण के लिए, राज्य ने आईएमएफएल, आईएफएल और बीयर के लिए लाइसेंसधारियों के लिए ‘लिफ़्टिंग ऑफ लिकर कोटा’ खुला रखा है, जबकि पीएमएल के लिए मासिक गारंटी कोटा 6.03 करोड़ प्रूफ लीटर, नौ महीने की अवधि के लिए रखा है.

पीएमएल पर कोटा पिछले वित्तीय वर्ष 2021-22 के ‘लिफ़्टिंग ऑफ़ लिकर कोटा’ के आंकड़ों पर आधारित है.

हालाकि, नई आबकारी नीति कहती है कि राज्य के एक्साइज कमिश्नर के पास ‘ गलत मंशा से उठाए गए स्टॉक की जांच करने के लिए अतिरिक्त शक्तियां होंगी’

इसके अलावा, पंजाब को आईएमएफएल का एक एक्सपोर्ट हब बनाने के लिए, नई नीति में बॉटलिंग शुल्क को तर्कसंगत बनाने और निर्यात शुल्क में कमी लाने का प्रस्ताव है. निर्यात शुल्क को 4 रुपये प्रति प्रूफ लीटर से घटाकर 2 रुपये प्रति प्रूफ लीटर किया जा रहा है.

कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन एल्कोहलिक बेवरेज कंपनी के महानिदेशक विनोद गिरी का मानना है कि नई आबकारी नीति से पंजाब सरकार देशी शराब और भारत में बनी विदेशी शराब के बीच की खाई को भरने की कोशिश कर रही है.

गिरी ने दिप्रिंट को बताया, ‘पंजाब सरकार ने इस तथ्य को स्वीकार किया है कि राज्य में आईएमएफएल पड़ोसी राज्यों की तुलना में अपेक्षाकृत कम था. आईएमएफएल सरकार का उच्च राजस्व पाने वाला क्षेत्र है. इसलिए इस क्षेत्र पर ध्यान देना और उसे आगे बढ़ाना बिल्कुल समझ में आता है. इससे सरकार न केवल उच्च राजस्व प्राप्त करने में मदद मिलेगी बल्कि लोगों को देशी शराब से बेहतर शराब पाने का विकल्प भी मिलता है.’

उन्होंने कहा कि शराब की बिक्री के लिए लंबी अवधि के रिटेल आउटलेट लाइसेंस के प्रावधान के साथ, इसके लिए निश्चित बुनियादी ढांचे में निवेश अब पंजाब में एक वास्तविकता बन जाएगा.

नई आबकारी नीति की आलोचना

हालांकि पंजाब की नई आबकारी नीति पर विभिन्न वर्गों ने तीखी प्रतिक्रिया जताई है.

इस आबकारी नीति की आलोचना करने वालों का कहना है कि सरकार द्वारा आवंटित शराब विक्रेताओं की संख्या को 700 से घटाकर 177 कर दी गई है. प्रत्येक विक्रेता के लिए न्यूनतम पात्रता मानदंड को 7-8 करोड़ रुपये से बढ़ाकर कम से कम 30 करोड़ रुपये कर दिया गया है.

नीति में कहा गया है कि थोक विक्रेताओं को व्यवसाय में कम से कम दो साल का अनुभव दिखाने के लिए दस्तावेज भी प्रस्तुत करने होंगे.

इसके अलावा, एल1 के लिए वार्षिक लाइसेंस शुल्क जो पहले 25 लाख के साथ विभिन्न तरह की शराब के लिए अलग-अलग राशि के तौर पर देय होता था, अब 5 करोड़ रुपये तय कर दिया गया है.

एक्साइज पॉलिसी में ये बदलाव छोटे थोक विक्रेताओं के लिए ठीक नहीं है. उनके मुताबिक न्यूनतम पात्रता मानदंड बढ़ाने से बाजार में बड़े खिलाड़ियों को फायदा होगा.

विनोद गिरी ने कहा, ‘सरकार को खुदरा बाजार को प्रतिस्पर्धी बनाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. वरना कई ठेकेदार बाजार छोड़ देंगे. ऐसा ही उन्होंने दिल्ली में भी किया है, जहां कुछ लोगों द्वारा भारी छूट ने दूसरों के लिए अपना व्यवसाय चलाना लगभग असंभव कर दिया है. नई सरकार नीतिगत सिफारिशों के विचारों को सुनने के लिए हमेशा तैयार रहती है और हम उन्हें प्रगतिशील कदमों के साथ सुझाव देते रहेंगे’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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