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Wednesday, 20 November, 2024
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चार धाम परियोजना की कछुआ चाल, 31 महीनों में 1.1 किमी ही बनी सड़क

चार धाम परियोजना में जिस गति से काम हो रहा है. वैसे में मार्च 2020 की तयसीमा तक भी काम पूरा नहीं हो पाएगा.

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नई दिल्ली: मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी चार धाम परियोजना काफी धीमी गति से चल रही है.  889 किलोमीटर लंबा हाइवे बनाकर चार धाम को जोड़ने वाली है यह परियोजना. हिंदू समुदाय के धार्मिक स्थानों को जोड़ने की इस योजना के तहत 425 मीटर प्रति साल सड़क ही बन पा रही है. दिप्रिंट को यह जानकारी मिली है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिसंबर 2016 में इस परियोजना की शुरुआत की थी. तब से लेकर मात्र 1.1 किलोमीटर सड़क ही बनी है. सरकारी अधिकारियों का कहना है कि, ‘राज्य में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार पेड़ों को गिराने के लिए अनुमति देने में काफी देर कर रही है.’

889 किलोमीटर लंबी सिंगल लेन हाइवे यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ को जोड़ेगी.

मानचित्र : अरिंदम मुख़र्जी के द्वारा । दिप्रिंट

11,700 करोड़ रुपए की इस परियोजना को पूरा करने के लिए पहली समयसीमा मार्च 2019 थी लेकिन पर्यावरणीय कारण को लेकर अनुमति न मिलने के कारण समयसीमा मार्च 2020 तक बढ़ा दी गई है.

केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि जिस गति से काम हो रहा है वैसे में एक बार फिर से परियोजना के पूरा होने की समयसीमा बढ़ सकती है.

मंत्रालय के अधिकरियों का कहना है कि, ‘अभी तक दो चरणों का काम पूरा हुआ है जिसमें 141 करोड़ की लागत से 1.1 किलोमीटर सड़क बनी है. इस गति से काम होने पर मार्च 2020 तक काम पूरा हो ही नहीं सकता. ऐसे में परियोजना के पूरे होने की तारीख बढ़ानी ही पड़ेगी.’

राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के एक अधिकारी के अनुसार, ‘जो इस प्रोजेक्ट में काम कर रहे हैं उन्होंने कहा कि उत्तराखंड वन विभाग की वजह से इसमें देरी हो रही है.’

अधिकारी के अनुसार वन विभाग पेड़ों को गिराने की अनुमति देने में देरी कर रहे हैं जिस कारण काम करने की गति प्रभावित हो रही है.

हालांकि उत्तराखंड के मुख्य वन संरक्षक जय राज ने राज्य के वन विभाग का समर्थन किया है. जय राज ने कहा कि, ‘अगर मामला कोर्ट में है तो हम इसमें ज्यादा कुछ कर नहीं सकते.’ हालांकि हम सभी राज्य के विकास के लिए ही हैं.

मामला कोर्ट में है लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी में इस परियोजना के 34 खंडों पर काम करने की इज़ाजत दे दी थी. बाकी के खंडों पर अभी कोर्ट का फैसला आना बाकी है.

धरौसा और गंगोत्री के बीच 94 किलोमीटर का क्षेत्र जो भागीरथी पर्यावरण जोन में आता है उसे केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय ने वहां निर्माण करने की अनुमति नहीं दी है. केंद्रीय मंत्रालय ने राज्य परिवहन मंत्रालय के मास्टर प्लान को स्वीकृति नहीं दी है.

राज्य के परिवहन मंत्रालय के एक और अधिकारी के अनुसार, ‘जिस क्षेत्र में निर्माण होना है वो प्रकृति के लिहाज से काफी संवेदनशील है. हमने केंद्रीय मंत्रालय को इससे संबंधित मास्टर प्लान जुलाई 2018 में ही भेज दिया था लेकिन अभी तक वो लटका हुआ है.’

दिप्रिंट ने केंद्रीय पर्यावरण सचिव सी.के. मिश्रा से जब इसके बारे में जानना चाहा तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. मंत्रालय में वन विभाग के महानिदेशक सिद्धांत दास ने भी दिप्रिंट द्वारा भेजे गए मेल का कोई जवाब नहीं दिया.

कानूनी पेंच में फंसी हुई है परियोजना

देहरादून में काम करने वाली गैर-सरकारी संगठन सिटिजंस फॉर ग्रीन दून ने चार धाम परियोजना की शिकायत राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल से फरवरी 2018 में की थी. शिकायत में कहा गया कि, ‘इस परियोजना के तहत 25 हजार पेड़ों को काटा जाएगा जो वन संरक्षण अधिनियम 1970 का उल्लंघन है.’

सितंबर 2018 में एनजीटी ने सरकार को कहा कि, ‘अगर परियोजना लोगों की भलाई के लिए है और इसको लेकर सही तरीके से काम हो रहा है तो इसे न रोकें.

एनजीओ ने इस फैसले को कोर्ट में चुनौती दी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, ‘जिन खंडों में काम को उसने इज़ाजत दी है वहां काम जारी रहे.’

उत्तराखंड सरकार के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि, ‘सुप्रीम कोर्ट ने अभी तक इस मामले में पूरा फैसला नहीं दिया है जिससे अनिश्चितता बनी हुई है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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