नयी दिल्ली, 18 अप्रैल (भाषा) शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों के लोगों में यकृत (लिवर) रोगों में वृद्धि के बीच, चिकित्सकों ने शुक्रवार को आहार की आदतों और यकृत स्वास्थ्य के बीच महत्वपूर्ण संबंध पर जोर दिया।
विश्व यकृत दिवस की पूर्व संध्या पर, चिकित्सा विशेषज्ञ ‘भोजन औषधि है’ का संदेश दे रहे हैं और कह रहे हैं कि आज के स्वस्थ्य बदलाव से यकृत रोग का जोखिम 50 प्रतिशत तक कम हो सकता है।
‘लिवर ट्रांसप्लांटेशन सोसाइटी ऑफ इंडिया’ के अध्यक्ष डॉ. संजीव सैगल ने कहा, ‘‘अगर हम आज कदम उठाएं तो गलत खान-पान, शराब, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ और गतिहीन जीवनशैली के कारण लिवर को होने वाले नुकसान को ठीक किया जा सकता है।’’
उन्होंने कहा कि लिवर में खुद को ठीक करने की अद्भुत क्षमता होती है और सही जीवनशैली में बदलाव करके सालों से हुए नुकसान को भी ठीक किया जा सकता है।
ताजे फल, हरी सब्जियां, साबुत अनाज और प्रोटीन से भरपूर आहार न केवल यकृत रोग को रोकता है, बल्कि यकृत को ठीक करने में भी सहायता करता है।
सैगल ने कहा, ‘‘चिकित्सकों के रूप में, हम चमत्कार देखते हैं जब मरीज स्वच्छ आहार का चयन करते हैं – लिवर एंजाइम का स्तर बेहतर होता है, ऊर्जा का स्तर वापस बढ़ता है और दीर्घकालिक स्वास्थ्य परिणाम काफी बेहतर हो जाते हैं। पहला कदम ‘फूड लेबल’ पढ़ना और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों पर निर्भरता कम करना है।’’
इस वर्ष के विश्व लिवर दिवस का विषय – ‘‘भोजन औषधि है’’ – लिवर के स्वास्थ्य को बनाए रखने में आहार के महत्व को रेखांकित करता है।
विशेषज्ञों के अनुसार, लिवर की बीमारी अब सिर्फ शराब के सेवन तक सीमित नहीं रह गई है। विशेषज्ञों के अनुसार, अस्वस्थ खान-पान, मोटापे और व्यायाम की कमी के कारण ‘नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर’ रोग में चिंताजनक वृद्धि हुई है।
लिवर ट्रांसप्लांटेशन सोसाइटी ऑफ इंडिया के भावी अध्यक्ष डॉ. अभिदीप चौधरी ने कहा, ‘‘तीन में से एक भारतीय को अब ‘फैटी लिवर’ रोग का खतरा है और कई लोगों को तो इसकी जानकारी भी नहीं होती है। यह अक्सर बिना किसी लक्षण के होती है, जब तक बहुत देर हो चुकी होती है। चिकित्सा अध्ययनों से यह भी पता चलता है कि प्रारंभिक अवस्था में लिवर की क्षति वाले लोग भी निरंतर जीवनशैली में बदलाव करके इसके प्रभावों को उलट सकते हैं।’’
विशेषज्ञों के अनुसार, इस वर्ष के विश्व यकृत दिवस के संदेश को और भी अधिक महत्वपूर्ण बनाने वाला तथ्य यह है कि आंकड़ों से यह पता चला है कि यकृत रोग के 50 प्रतिशत तक मामलों को केवल खान-पान की आदतों में बदलाव और पोषण में सुधार करके रोका जा सकता है।
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अमित माधव
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