(उज्मी अतहर)
नयी दिल्ली, तीन मई (भाषा) जन्म के मात्र एक दिन बाद माता-पिता द्वारा त्याग दिए गए बच्चे नीरज (बदला हुआ नाम) को ‘टेढ़े घुटनों’ संबंधी उसकी जन्मजात बीमारी के कारण कई साल तक किसी परिवार ने गोद नहीं लिया लेकिन अंतत: 2021 में एक दंपति ने उसे अपनाकर नया जीवन दिया।
मात्र एक दिन के नीरज को बाल देखभाल संस्थान में छोड़ दिए जाने के बाद से कई परिवार गोद लेने के इरादे से उसे देखने आए लेकिन उन्होंने उसकी चिकित्सकीय स्थिति को देखते हुए उसे नहीं अपनाया। अंतत: 2021 में एक दंपति ने उसे अपने बच्चे के रूप में अपनाया और इसके बाद नीरज का जीवन बदल गया।
उसके नए माता-पिता ने उसे तैराकी की कक्षाओं में दाखिला दिलाया, वे उसे नियमित जांच के लिए अस्पताल लेकर गए और उसे खूब प्यार दिया। आज चार साल बाद नीरज तैरना सीख रहा है, वह स्कूल के नाटकों में अभिनय करता है और एथलेटिक गतिविधियों में भाग लेता है। नीरज अकेला ऐसा बच्चा नहीं है, जिसकी यह कहानी है।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, भारत में पिछले एक दशक में अनाथ बच्चों को गोद लेने के मामलों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है और वित्त वर्ष 2024-25 में रिकॉर्ड 4,515 बच्चों को गोद लिया गया।
देश में 2015-16 में गोद लिए गए बच्चों की संख्या 3,677 थी जो 2018-19 में बढ़कर 4,027 हो गई थी।
ताजा आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, कोरोना वायरस महामारी के दौरान बच्चों को गोद लेने के मामलों में गिरावट आई थी, लेकिन गोद लिए बच्चों की संख्या में वृद्धि का सिलसिला कोविड काल के बाद जारी रहा और 2024-25 में रिकॉर्ड 4,515 बच्चों को गोद लिया गया।
चालू वित्त वर्ष में अब तक अनाथ/परित्यक्त/सौंपे गए(ओएएस) श्रेणी से 420 बच्चों को पहले ही गोद लिया जा चुका है। इनमें से 342 बच्चों को प्रवासी भारतीय माता-पिता ने, आठ को अनिवासी भारतीयों (एनआरआई), छह को प्रवासी भारतीयों (ओसीआई) ने और 11 को विदेशियों ने गोद लिया है लेकिन इस प्रगति के बावजूद बच्चों को गोद लेने की मांग गोद लेने योग्य बच्चों की उपलब्धता से कहीं अधिक है।
इस संबंध में एक अधिकारी ने कहा कि बच्चों को गोद लेने में सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक चुनौती अनाथ बच्चों और गोद लेने के इच्छुक माता-पिता के बीच का अंतर है। हालांकि, 2023-24 में यह अंतर कम होना शुरू हो गया।
अधिकारी ने कहा, ‘‘जिसे (बच्चा गोद लेने को) कभी असाधारण या दुर्लभ निर्णय माना जाता था, वह अब परिवारों के लिए अधिक सामान्य और स्वीकार्य मार्ग बन गया है।’’
भाषा सिम्मी नेत्रपाल
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