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Saturday, 16 November, 2024
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चमोली आपदा : लगातार निगरानी वाली मजबूत प्रणाली बचा सकती थी सैकड़ों लोगों की जान

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देहरादून, 16 मार्च (भाषा) भूकंपीय आंकडे की लगातार निगरानी करने वाली एक मजबूत प्रणाली की मौजूदगी पिछले साल चमोली जिले में हिमखंड टूटने से आई आपदा में मरने वाले सैकड़ों लोगों की जान बचा सकती थी।

नंदा देवी हिमनद का एक टुकडा टूटने से अलकनंदा और उसकी सहायक नदियों जैसे ऋषिगंगा तथा धौलीगंगा में सात फरवरी को अचानक आई बाढ से व्यापक तबाही हुई थी। इसमें एनटीपीसी की तपोवन स्थित तपोवन-विष्णुगाड पनबिजली परियोजना जहां बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुई थी वहीं रैंणी स्थित ऋषिगंगा पनबिजली परियोजना पूरी तरह बह गयी थी। हादसे में सैकड़ों लोगों की मौत हुई थी।

हाल में अपने एक वरिष्ठ सहयोगी अनिल तिवारी के साथ इस त्रासदी का विश्लेषण करने वाले वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के निदेशक कलाचंद साई ने बताया कि तपोवन स्थित भूकंपीय स्टेशन ने चट्टान के टूटने और नीचे की तरफ फिसलने से करीब ढाई घंटे पहले ही उसमें धीरे-धीरे चल रही गतिविधियों को रिकार्ड कर लिया था।

हालांकि, निगरानी की ध्वनि प्रणाली के अभाव में सूचना को वास्तविक समय में पढ़ा नहीं जा सका​ जिसके कारण हादसे में सैकड़ों लोगों की मौत हुई।

हिमनद संबंधित गतिविधियां सामान्यत: 3500-4000 मीटर की उंचाई पर होती हैं जहां आबादी नहीं होती है।

साई ने कहा, ‘‘अगर आंकड़ों की निगरानी प्रणाली को चौबीसों घंटे उनके स्वत: और ऑनलाइन प्रसारण के जरिए विशेषज्ञों को उपलब्ध करा कर और प्रभावी बनाया जाए तो आपदा की स्थिति में पूर्व चेतावनी जारी करने में मदद मिल सकती है और उसके प्रभावों को न्यूनतम (सीमित/कम) किया जा सकता है।’’

उन्होंने कहा कि अध्ययन में पता चला है कि सात फरवरी को त्रासदी का कारण बने चट्टान के टुकड़े को हिमस्खलन का रूप लेने और उसके मलबे को ऋषिगंगा नदी के नीचे की तरफ बनी पनबिजली परियोजनाओं तक बहकर पहुंचने में कम से कम 20 मिनट का समय लगा।

साई ने कहा, ‘‘ये 20 मिनट कीमती थे और इसका उपयोग अधिकारियों को सतर्क करने तथा लोगों को सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाने में किया जा सकता था।’’

वरिष्ठ वैज्ञानिक ने कहा कि उत्तराखंड के उचांई वाले स्थानों पर जल विज्ञान, मौसम विज्ञान और भूकंपीय स्टेशनों का एक मजबूत नेटवर्क विकसित करना और उनके द्वारा रिकार्ड आंकड़ों को विशेषज्ञों को लगातार ऑनलाइन उपलब्ध कराने की प्रणाली तैयार करना समय की मांग है।

वर्तमान में वाडिया संस्थान के विशेषज्ञ चार-पांच महीने में एक बार तपोवन भूकंपीय स्टेशन जाते हैं और वहां दर्ज आंकड़ों को एकत्र करते हैं। उन्होंने कहा कि अगर इस अवधि में कुछ हो जाता है तो उसकी कोई जानकारी नहीं मिल पाती।

फरवरी 2021 में आई आपदा में रैणी और तपोवन के अलावा तपोवन-विष्णुगाड पनबिजली परियोजनाओं में उस समय काम कर रहे सैकड़ों लोगों की मौत हुई थी।

आपदा के बाद एक साल से भी अधिक का समय बीत जाने के बावजूद तपोवन—विष्णुगाड परियोजना की सुरंग से अब तक सभी शव नहीं निकाले जा सके हैं।

रैंणी स्थित ऋषिगंगा पनबिजली परियोजना और तपोवन स्थित तपोवन—विष्णुगाड परियोजना स्थल से कुल मिलाकर 200 से ज्यादा लोग लापता हुए थे जिसमें से अब तक 80 से ज्यादा शव मिल चुके हैं।

भाषा दीप्ति अर्पणा

अर्पणा

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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