(विजय जोशी और कुमार राकेश)
भुवनेश्वर, 20 मई (भाषा) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ईरान के रणनीतिक महत्व वाले चाबहार बंदरगाह के परिचालन संबंधी भारत के करार करने को महत्वपूर्ण ‘मील का पत्थर’ बताया और कहा कि भारत व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा देने के लिए जमीनी सीमाओं से घिरे अफगानिस्तान तथा मध्य एशिया क्षेत्र में कनेक्टिविटी प्रदान करने की दिशा में काम करेगा।
मोदी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को दिए साक्षात्कार में कहा कि भारत न केवल चाबहार बंदरगाह से बल्कि अंतरराष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारे (आईएनएसटीसी) और भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप आर्थिक गलियारे के माध्यम से भी क्षेत्रीय संपर्क, व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा देने के लिए काम करेगा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि 2014 में सत्ता में आने के बाद से उनकी सरकार ने चाबहार बंदरगाह को तरजीह दी है। उन्होंने कहा, ‘‘2016 में मेरी ईरान यात्रा के दौरान भारत, ईरान और अफगानिस्तान के बीच अफगानिस्तान को अत्यावश्यक कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए त्रिपक्षीय समझौते पर दस्तखत किए गए थे।’’
एक भारतीय कंपनी ने कुछ साल पहले बंदरगाह का संचालन संभाला था, और तब से इसका उपयोग भारत द्वारा ‘गेहूं, दालें, कीटनाशक, चिकित्सा आपूर्ति सहित अफगानिस्तान को मानवीय सहायता’ प्रदान करने के लिए किया जा रहा है।
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘चाबहार बंदरगाह के विकास के लिए दीर्घकालिक समझौते पर हाल में दस्तखत होना एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।’’
भारत ने 13 मई को ओमान की खाड़ी में चाबहार बंदरगाह को संचालित करने के लिए 10 साल के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिससे भारत को पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा नामक सड़क और रेल परियोजना का उपयोग करते हुए अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंचने का मार्ग मिलेगा।
मोदी ने कहा, ‘‘भारत यह सुनिश्चित करने के लिए काम करेगा कि हमारे प्रयासों से क्षेत्रीय संपर्क, व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा मिले। इसमें भूमि सीमा से घिरे अफगानिस्तान तथा मध्य एशिया क्षेत्र तक और वहां से क्षेत्रीय संपर्क, व्यापार और वाणिज्य शामिल है। अंतरराष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारे और भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप आर्थिक गलियारे के माध्यम से भी कनेक्टिविटी को बढ़ाने के हमारे दृष्टिकोण में यह निहित है।’’
आईएनएसटीसी में पारंपरिक स्वेज नहर मार्ग के विकल्प के रूप में ईरान के माध्यम से भारत से रूस तक माल परिवहन में मदद करने के लिए 7,200 किलोमीटर लंबे समुद्री, रेल और सड़क मार्ग शामिल हैं। यह हिंद महासागर और फारस की खाड़ी को ईरान के माध्यम से कैस्पियन सागर और फिर रशियन फेडरेशन के माध्यम से सेंट पीटर्सबर्ग और उत्तरी यूरोप से जोड़ता है।
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘वैश्वीकरण के इस दौर में कनेक्टिविटी की अहम भूमिका है। हमारा प्रयास खास तौर पर उन देशों को कनेक्टिविटी प्रदान करना है जो चारों तरफ से भू सीमाओं से घिरे हैं। मैंने हमेशा मध्य एशियाई देशों के नेताओं के बीच समुद्र तक पहुंच पाने और भारत से जुड़ने के लिए इस बंदरगाह का उपयोग करने में गहरी रुचि देखी है।’’
इंडियन पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (आईपीजीएल) और ईरान के पोर्ट्स एंड मेरीटाइम ऑर्गेनाइजेशन ने इस अनुबंध पर हस्ताक्षर किए।
आईपीजीएल को इसमें करीब 12 करोड़ डॉलर का निवेश करना है, वहीं 25 करोड़ डॉलर राशि ऋण के माध्यम से जुटाई जाएगी।
यह समझौता दोनों देशों के बीच 2016 में हुए शुरुआती समझौते की जगह लेगा जिसमें भारत को शाहिद बेहश्ती टर्मिनल का परिचालन अधिकार दिया गया था। हालांकि, सालाना आधार पर इसका नवीनीकरण करना होता था।
पिछले साल भारत ने अफगानिस्तान को 20,000 टन गेंहू भेजने के लिए चाबहार बंदरगाहर का इस्तेमाल किया था। 2021 में इसी के जरिए पर्यावरण हितैषी कीटनाशकों की ईरान को आपूर्ति की गई थी।
भाषा
वैभव नरेश
नरेश
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