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Monday, 15 September, 2025
होमदेशकेंद्र ने इंफाल-दीमापुर NH-2 दोबारा खोला, लेकिन मैतेई और कुकी-जो के बीच 'भरोसे की कमी' कायम है

केंद्र ने इंफाल-दीमापुर NH-2 दोबारा खोला, लेकिन मैतेई और कुकी-जो के बीच ‘भरोसे की कमी’ कायम है

सरकार के प्रयासों और मई 2023 के बाद मोदी की पहली मणिपुर यात्रा के बावजूद, दोनों समुदायों के लोग हाईवे से दूर रहते हैं, और महंगी हवाई यात्रा या लंबी यात्राएं करना पसंद करते हैं.

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इंफाल: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 13 सितंबर को मणिपुर यात्रा से दस दिन पहले केंद्र ने नेशनल हाईवे-2 (NH-2) पर आम लोगों की आवाजाही को मंजूरी दी थी. यह हाईवे इंफाल को नागालैंड के दीमापुर से जोड़ता है और राज्य की जीवनरेखा माना जाता है. यह फैसला दिल्ली में कुकी-ज़ो काउंसिल के नेताओं के साथ बैठक के बाद लिया गया था.

लेकिन प्रधानमंत्री की यात्रा के बाद—जो मई 2023 में मैतेई और कुकी-ज़ो समुदायों के बीच हिंसा भड़कने के बाद पहली थी—जमीनी हालात में खास बदलाव नहीं दिख रहा. घाटी जिलों में रहने वाले गैर-जनजातीय मैतेई और पहाड़ों में रहने वाले जनजातीय कुकी-ज़ो दोनों सुरक्षा कारणों से अब भी इस हाईवे का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं.

हालांकि अन्य समुदायों, जैसे नागा और नेपाली, के लोग नियमित रूप से NH-2 पर यात्रा कर रहे हैं. यह हाईवे असम के डिब्रूगढ़ में NH-15 से शुरू होकर नागालैंड और मणिपुर से गुजरता है और मिजोरम में समाप्त होता है.

यहां तक कि वाणिज्यिक और मालवाहक वाहन, जिन्हें इन दोनों समुदायों से बाहर के लोग चलाते हैं, भी नियमित रूप से चल रहे हैं.

2023 में जातीय हिंसा शुरू होने के बाद से मैतेई लोगों ने NH-2 का वह हिस्सा इस्तेमाल करना बंद कर दिया है जो दीमापुर जाने के रास्ते में कांगपोकपी जिले से गुजरता है. इसके चलते उन्हें मणिपुर से बाहर जाने के लिए हवाई यात्रा ही करनी पड़ रही है, जो कई लोगों के लिए महंगी है.

इसी तरह, कोई भी कुकी-ज़ो कांगपोकपी सीमा से इंफाल तक NH-2 के हिस्से पर सुरक्षा कारणों से यात्रा नहीं करता. अगर उन्हें मणिपुर से बाहर जाना हो तो इंफाल हवाई अड्डे तक की 40 मिनट की यात्रा की जगह उन्हें गड्ढों से भरे हाईवे से सात-आठ घंटे लंबी सड़क यात्रा कर दीमापुर पहुंचना पड़ता है.

Trucks crossing the border of Kangpokpi village | Praveen Jain | ThePrint
कांगपोकपी गांव की सीमा पार करते ट्रक | प्रवीण जैन | दिप्रिंट

मई 2023 के बाद से यह तीसरी बार है जब केंद्र ने NH-2 को खोलने और दोनों समुदायों की आवाजाही की कोशिश की है. पहली कोशिश दिसंबर 2023 में की गई थी, जो सफल नहीं रही. इंफाल के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “उस समय हालात अनुकूल नहीं थे और योजना सफल नहीं हो सकी.”

दूसरी कोशिश 8 मार्च को हुई, जब राज्य प्रशासन ने इंफाल से कांगपोकपी तक बस चलाने की कोशिश की. लेकिन यह कदम उल्टा पड़ गया. अधिकारी ने कहा, “स्थिति बिगड़ गई और हमें बल प्रयोग करना पड़ा. एक व्यक्ति की मौत हो गई.”

तब से दोनों समुदाय एक-दूसरे के क्षेत्रों में यात्रा करने से बच रहे हैं.

जातीय हिंसा के बाद इंफाल-कांगपोकपी सीमा पर सुरक्षा बलों की निगरानी में एक अनौपचारिक “बफर ज़ोन” बनाया गया, जिसने दोनों समुदायों की सीमाएं तय कर दीं. जहां मैतेई लोग कुकी-ज़ो क्षेत्रों में नहीं जाते, वहीं कुकी-ज़ो लोग मैतेई इलाकों में नहीं जाते.

अब बफर ज़ोन पर सुरक्षा बलों की मौजूदगी काफी कम हो गई है, लेकिन यह अनलिखा नियम कि मैतेई कुकी-ज़ो क्षेत्र में नहीं जाएगा और कुकी-ज़ो मैतेई क्षेत्र में नहीं जाएगा, अब भी जारी है. कांगपोकपी जिले के एक पुलिस अधिकारी ने दिप्रिंट से नाम न बताने की शर्त पर कहा, “दोनों समुदायों के लोगों में डर का माहौल है. भरोसे की कमी दूर होने में समय लगेगा.”

जातीय संघर्ष में अब तक 200 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है और 60,000 से ज्यादा लोग बेघर हो चुके हैं. इसने राज्य की दो मुख्य समुदायों—मुख्य रूप से हिंदू मैतेई और आदिवासी कुकी-जो—को पूरी तरह अलग कर दिया है. कुकी-जो लोग उन घाटी जिलों से भाग गए हैं जहां मैतेई रहते हैं. वहीं मैतेई लोग पहाड़ी इलाकों से निकल गए हैं.

फिलहाल, जहां बाहर के लोग माल और वाणिज्यिक वाहन लेकर आराम से आते-जाते हैं, वहीं मैतेई या कुकी-जो यात्रियों को लेकर चलने वाली प्राइवेट बसें और गाड़ियां अपने-अपने इलाकों तक ही सीमित हैं.

“यह दो साल से ऐसे ही है. सुरक्षा होने के बावजूद मैं अपनी बस बफर जोन पार करके गमगिफाई, जहां से कुकी-जो इलाका शुरू होता है, नहीं ले जा सकता. मुझे मार दिया जाएगा, मेरे यात्रियों को भी,” कंग्लाटोंबी कस्बे के एक मैतेई बस ड्राइवर, सोमन सिंह ने कहा. यह इलाका पश्चिम इम्फाल में है, कांगपोकपी जिले की शुरुआत से ठीक पहले.

रविवार को, दर्जन भर प्राइवेट पैसेंजर बसों ने मैतेई यात्रियों को कंग्लाटोंबी से इम्फाल तक पहुंचाया. 20 किलोमीटर का यह सफर 50 रुपये का है.

Somen Singh, driver of the bus carrying Meitei passengers | Praveen Jain | ThePrint
मैतेई यात्रियों को ले जा रही बस के ड्राइवर सोमेन सिंह | प्रवीण जैन | दिप्रिंट

“अगर किसी को मणिपुर से बाहर जाना है, तो उसे इम्फाल एयरपोर्ट से फ्लाइट लेनी होगी. और कोई रास्ता नहीं है. हिंसा शुरू होने से पहले, कोई सड़क के रास्ते कांगपोकपी होकर दीमापुर तक जा सकता था. लेकिन अब इसका सवाल ही नहीं उठता,” कंग्लाटोंबी के एक और मैतेई ड्राइवर बिजेशोर सिंह ने कहा.

सिर्फ मैतेई ही नहीं हैं जिन्होंने पहाड़ी जिलों में जाना बंद किया है.

कांगपोकपी के पहाड़ी जिले में रहने वाले आदिवासी समुदायों के लिए भी हालात ऐसे ही हैं. “अगर कोई मेडिकल इमरजेंसी भी हो, तो भी हममें से कोई इम्फाल के अस्पताल, जो बस 20 किलोमीटर दूर है, जाने की हिम्मत नहीं करेगा. हमें सड़क से दीमापुर तक जाना पड़ेगा,” कमिटी ऑन ट्राइबल यूनिटी के प्रवक्ता लुन किपगेन ने कहा.

उन्होंने बताया कि सड़क की हालत के हिसाब से कांगपोकपी से दीमापुर पहुंचने में 6 से 8 घंटे लग जाते हैं. “हमारे घर और संपत्ति लूट के बाद राख हो गए. हमारी औरतों और बहनों के साथ गैंगरेप हुआ. इन सबके बाद आप हमसे उम्मीद करते हैं कि हम मैतेई इलाके में जाएं,” उन्होंने कहा.

Meitei passengers in the bus at Kanglatongbi village travelling to Imphal | Praveen Jain | ThePrint
कंगलातोंगबी गांव से इंफाल जा रही बस में मेइती यात्री | प्रवीण जैन | दिप्रिंट

यहां तक कि जो कुकी-जो चुराचांदपुर से कांगपोकपी काम के लिए जाते हैं, उन्हें भी मैतेई इलाकों में घुसने से बचने के लिए लंबा और महंगा रास्ता लेना पड़ता है.

मोतबुंग, कांगपोकपी के प्रेसिडेंसी कॉलेज की असिस्टेंट प्रोफेसर ल्हैनेलाम बाइटे ने कहा कि चुराचांदपुर से, जहां वह रहती हैं, कॉलेज जाना अब नामुमकिन हो गया है.

“चुराचांदपुर से इंफाल होते हुए कांगपोकपी तक पहुंचने में मुझे सड़क से थोड़ा ज्यादा दो घंटे लगते थे. लेकिन मई 2023 से यह अब संभव नहीं है. मुझे एक लंबा वैकल्पिक रास्ता लेना पड़ता है, जिसमें मेरे कॉलेज मोतबुंग तक पहुंचने में करीब आठ घंटे लगते हैं,” उन्होंने कहा.

Lun Kipgen (right), spokesperson of Committee On Tribal Unity | Praveen Jain | ThePrint
लून किपगेन (दाएं), आदिवासी एकता समिति के प्रवक्ता | प्रवीण जैन | दिप्रिंट

बाइटे ने कहा कि सफर महंगा भी है. उन्होंने कहा, “इस रास्ते पर कोई प्राइवेट बस नहीं चलती. मुझे बोलेरो से जाना पड़ता है, जो एक तरफ का 3,000 रुपये लेता है. हर रोज ऐसे सफर करना नामुमकिन है.”

एक मैतेई सिविल सोसायटी कार्यकर्ता, जिन्होंने नाम न छापने की शर्त रखी, ने दिप्रिंट से कहा, “प्रधानमंत्री ने इम्फाल में अपने भाषण में मैतेई और कुकी-जो के बीच की खाई पाटने की बात की और चले गए. लेकिन हमारी जिंदगी की हकीकत पहले जैसी ही है. यह खाई गहरी है. जब तक आप इसे नहीं सुलझाते, हालात ऐसे ही रहेंगे.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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