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रविवार, 22 जून, 2025
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केंद्र ने राज्यों से वन अधिकारों पर जागरूकता अभियान चलाने को कहा

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नयी दिल्ली, 13 मई (भाषा) केंद्र ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से कहा है कि वे वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) पर एक जून से एक महीने तक जागरूकता अभियान चलाएं ताकि कानून के कार्यान्वयन में सुधार हो और आदिवासी समुदायों और अन्य पारंपरिक वनवासियों के बीच व्यापक भागीदारी सुनिश्चित हो सके।

जनजातीय कार्य मंत्रालय ने अपने पत्र में कहा कि यह अभियान राज्य और जिला स्तर पर जिला एफआरए प्रकोष्ठों और परियोजना प्रबंधन इकाइयों के नेतृत्व में चलाया जाना चाहिए।

इसमें एफआरए को लागू करने में अनुभव रखने वाले गैर सरकारी संगठनों, शैक्षणिक संस्थानों और समुदाय-आधारित संगठनों के साथ सहयोग करने का आह्वान किया गया।

मंत्रालय के अनुसार, अभियान हितधारकों को उनके व्यक्तिगत और सामुदायिक वन अधिकारों, एफआरए प्रक्रिया में ग्राम सभाओं की भूमिका और दावे दायर करने की प्रक्रियाओं के बारे में जागरुक करने पर ध्यान केंद्रित करेगा।

अन्य सुझाई गई गतिविधियों में एफआरए भूमि अधिकारों (पट्टों) का वितरण, एफआरए लाभार्थियों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड और कृषि संबंधी जानकारी प्रदान करना, उनका आधार नामांकन, उन्हें पीएम-किसान जैसी योजनाओं से जोड़ना और लंबित दावों को निपटाने के लिए साप्ताहिक बैठकें आयोजित करना शामिल हैं।

मंत्रालय ने राज्य सरकारों से जिला अधिकारियों, कृषि, मत्स्य पालन, पंचायती राज जैसे संबंधित विभागों के साथ समन्वय कर तुरंत योजना बनाने को कहा है।

वन अधिकार अधिनियम, 2006, आदिवासियों और वन-आश्रित समुदायों के उस भूमि पर अधिकारों को मान्यता देता है जिस पर वे पीढ़ियों से रह रहे हैं और जिसकी रक्षा कर रहे हैं। हालांकि, इसके कार्यान्वयन में उल्लंघन के मामले सामने आए हैं। नीति विशेषज्ञों का दावा है कि बड़ी संख्या में दावों को गलत तरीके से खारिज कर दिया गया।

वर्ष 2019 में, एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने 17 लाख से अधिक ऐसे परिवारों को बेदखल करने का आदेश दिया, जिनके एफआरए दावे खारिज कर दिए गए थे।

देशव्यापी विरोध के बाद, अदालत ने फरवरी 2019 में आदेश पर रोक लगा दी और खारिज किए गए दावों की समीक्षा का निर्देश दिया।

हालांकि, कई आदिवासी और वन-आश्रित समुदायों का आरोप है कि समीक्षा प्रक्रिया त्रुटिपूर्ण रही तथा केंद्र और राज्य सरकारें कानून को ईमानदारी से लागू करने में विफल रहीं।

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार इस वर्ष 31 जनवरी तक अधिनियम के तहत 51 लाख से अधिक दावे प्राप्त हुए, जिनमें से एक तिहाई से अधिक दावे खारिज कर दिए गए।

सर्वाधिक दावे छत्तीसगढ़ (9.41 लाख) में प्राप्त हुए, उसके बाद ओडिशा (7.20 लाख), तेलंगाना (6.55 लाख), मध्यप्रदेश (6.27 लाख) और महाराष्ट्र (4.09 लाख) का स्थान रहा।

छत्तीसगढ़ खारिज किए गए दावों के मामले में भी शीर्ष पर है, जहां चार लाख से अधिक दावे खारिज किए गए हैं। मध्यप्रदेश ने 3.22 लाख से अधिक दावे खारिज किए हैं, उसके बाद महाराष्ट्र (1.72 लाख), ओडिशा (1.44 लाख) और झारखंड (28,107) का स्थान है।

भाषा आशीष नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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