नई दिल्ली: केंद्र की भाजपा सरकार ने मंगलवार को राम जन्मभूमि न्यास और अन्य मूल मालिकों को 67 एकड़ गैर-विवादित भूमि का हिस्सा देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. केंद्र सरकार ने अधिग्रहित 67 एकड़ गैर-विवादित भूमि पर यथास्थिति बरकरार रखने के 31 मार्च 2003 के आदेश में संशोधन की मांग के साथ शीर्ष अदालत का रुख किया है. राम जन्मभूमि न्यास का 67 एकड़ में से 42 एकड़ भूमि पर अधिकार है. न्यास ने सरकार से उस 42 एकड़ जमीन को वापस करने का अनुरोध किया था.
पार्टी ने अपनी अर्जी में यह भी मांग की कि अयोध्या की विवादित जमीन छोड़कर 67 एकड़ की गैर-विवादित जमीन उनके मूल मालिकों को लौटा दी जाए. विवादित ढांचा गिराए जाने से पहले 1991 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने विवादित स्थल और उसके आसपास की करीब 67 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर यथास्थिति बरकरार रखने के निर्देश दिए थे.
चुनाव आते ही सजग हुई भाजपा
कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी आम चुनाव आते ही अपने मतदाताओं को लुभाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहती है. एक तरफ जहां कांग्रेस पार्टी करो या मरो की स्थिति को देखते हुए हर दिन नए ऐलान कर अपने कार्यकर्ताओं और मतदाताओं में जोश भरने का काम कर रही है वहीं भाजपा भी पीछे नजर नहीं आ रही है. पिछले दिनों सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण का तिलस्म अभी फीका भी नहीं पड़ा था कि राम मंदिर और अयोध्या मंदिर विवाद मामले में भाजपा अब खुलकर सामने आ गई है.
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कल तक भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राम मंदिर मामले को संवैधानिक तरीके से जीतने की बात कर रहे थे वहीं हर दिन सुप्रीम कोर्ट से तारीख पर तारीख मिलती देख अब पार्टी ने खुद ही मामले को सुलझाने का मोर्चा संभाल लिया है. बता दें कि पिछले दो बार से इस मामले की सुनवाई जजों की पीठ की वजह से नहीं हो सकी थी. पिछली सुनवाई के दौरान जहां न्यायाधीश यूयू ललित पर सवाल खड़े किए गए थे वहीं नवगठित पीठ के न्यायाधीश एसए बोबडे के 29 जनवरी यानी आज उपस्थित नहीं होने की वजह से सुनवाई टल गई है. चुनाव की तारीख निकट आती देख और पार्टी सहित जनमानस में राम मंदिर के निर्माण को लेकर उग्रता को देखकर मोदी सरकार ने अयोध्या मामले में मंगलवार को एक बड़ा कदम उठाया है. पार्टी अपनी कई मांगों के साथ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.
वीएचपी बोली-सरकार ने अब सही दिशा में कदम उठाया है
भारतीय जनता पार्टी के इस कदम को राजनीति जानकार विश्व हिंदू परिषद ने मोदी सरकार के इस कदम का स्वागत करते हुए कहा है कि सरकार ने अब सही दिशा में कदम उठाया है. वहीं राम माधव ने कहा कि राम जन्मभूमि न्यास की भूमि को लेकर लंबे समय से इंतजार था. ये भूमि 1993 में अधिगृहित की गई थी और इसका इस मामले के केंद्रीय विवाद से कुछ लेना देना नहीं है, ये मुख्य विवादित ज़मीन के आसपास का क्षेत्र है. सर्वोच्च न्यायालय ने यथा स्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है, इसलिए सरकार ने अदालत का दरवाज़ा खटखटाया.
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बढ़ती तारीखों के बीच केंद्रीय कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा कि अयोध्या ममाला जो करीब 70 सालों से लंबित है, उसकी जल्द सुनवाई होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि देश के लोग वहां एक भव्य राम मंदिर का निर्माण होने की उम्मीद कर रहे हैं, जहां कभी बाबरी मस्जिद हुआ करती थी. बता दें कि राम-मंदिर निर्माण को लेकर भाजपा भारी दवाब में है. संत-साधु से लेकर सहयोगी पार्टियां सहित आरएसएस तक राम मंदिर बनाने का लगातार दबाव डाल रहे हैं. मंदिर निर्माण को लेकर विधेयक लाने की मांग भी उठती रही है.
क्या है राम जन्मभूमि पर विवाद
रामलला अभी जिस जमीन पर स्थापित हैं. केंद्र ने इसी जमीन के आसपास की 67 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था. पूरा विवाद अयोध्या में इस जगह के 2.77 एकड़ की जमीन को लेकर है. यहीं पर राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद का विवाद भी है. नौ साल पहले 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने अपना फैसला सुनाया था जिसमें 2.77 एकड़ जमीन तीन पक्षों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला में बराबर बांट दी थी. हिंदू एक्ट के तहत इस मामले में रामलला भी एक पक्षकार हैं।
अपने इस ऐतिहासिक फैसले में हाईकोर्ट ने कहा था कि जिस जगह पर रामलला की मूर्ति स्थापित है, उसे रामलला विराजमान को दे दिया जाए वहीं राम चबूतरा और सीता रसोई वाली जगह निर्मोही अखाड़े को देने की बात कही थी. अदालत ने बचा हुआ एक-तिहाई हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को देने की बात कही थी. कोर्ट के इस फैसले को निर्मोही अखाड़े और सुन्नी वक्फ बोर्ड ने नहीं माना और इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
9 मई 2011 को सर्वोच्च न्यायालय इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी. और तभी से इस मामले में सुप्रीम कोर्ट तारीख पर तारीख देता आ रहा है. आज सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय बेंच जिसकी अध्यक्षता भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई करने वाले थे की सुनवाई होनी थी. 25 जनवरी को अयोध्या विवाद की सुनवाई के लिए बेंच का पुनर्गठन किया था. अब बेंच में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर शामिल हैं.
(आईएएनएस के इनपुट्स के साथ)