नयी दिल्ली, 15 मार्च (भाषा) केंद्र सरकार ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय को बताया कि 13 मार्च 2022 तक देश में कोविड-19 टीकों की कुल 180 करोड़ से अधिक खुराक लगाई जा चुकी हैं और इस दौरान प्रतिकूल प्रभाव (साइडइफेक्ट) के कुल 77,314 मामले दर्ज किए गए हैं, जो कुल टीकाकरण का 0.004 फीसदी हैं।
सरकार ने बताया कि 12 मार्च 2022 तक 15 से 18 साल के बच्चों को कोवैक्सीन की 8.91 करोड़ से अधिक खुराक लगाई जा चुकी हैं और इस आयु वर्ग में टीकाकरण के बाद प्रतिकूल घटनाओं (एईएफआई) के 1,739 मामूली, 81 गंभीर और छह बेहद गंभीर मामले सामने आए हैं।
केंद्र ने न्यायमूर्ति एलएन राव और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ को बताया कि देश में बड़ी संख्या में लोगों का कोविड-19 टीकाकरण किया जा चुका है और टीके ‘बहुत प्रभावी एवं सुरक्षित’ साबित हुए हैं।
सरकार ने कहा कि दोनों टीके (कोवैक्सीन और कोविशील्ड) एंटीबॉडी पैदा करते हैं और इनके साइडइफेक्ट के मामले भी न्यूनतम पाए गए हैं।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने केंद्र की ओर से दाखिल संक्षिप्त जवाब में कहा, “विशेषज्ञों द्वारा एक विस्तृत प्रक्रिया के पालन के बाद लॉन्च किए गए ये टीके न केवल प्रभावी, सुरक्षित और प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने में सक्षम हैं, बल्कि इन्हें विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा भी मान्यता हासिल है, जो इनकी वैश्विक स्वीकार्यता को दर्शाता है।”
शीर्ष अदालत कोविड-19 टीकों के क्लीनिकल परीक्षण और इससे जुड़े दुष्प्रभावों के मामलों का डेटा सार्वजनिक करने का निर्देश देने की मांग वाली याचिका पर दलीलें सुन रही है। मामले में अगली सुनवाई 21 मार्च को होगी।
केंद्र ने कहा, “13 मार्च 2022 तक अंतिम उपलब्ध डेटा के अनुसार देश में कोविड-19 टीकों की 1,80,13,23,547 खुराक दी जा चुकी हैं। इस दौरान प्रतिकूल घटनाओं (मामूली, गंभीर, बेहद गंभीर) के 77,314 (0.004 प्रतिशत) मामले सामने आए हैं।”
नाबालिगों के टीकाकरण के संबंध में केंद्र ने कहा कि बाल टीकाकरण का कदम ऐसे समय में उठाया गया था, जब वयस्कों में कोवैक्सीन की सुरक्षा और प्रतिरक्षात्मकता पर पर्याप्त से अधिक डेटा उपलब्ध हो चुका था।
सरकार ने कहा, “12 मार्च 2022 तक 15 से 18 साल के आयु वर्ग में कोवैक्सीन की 8,91,39,455 खुराक दी जा चुकी हैं। इस आयु वर्ग में दर्ज किए गए एईएफआई की संख्या 1,739 मामूली (0.014 फीसदी), 81 गंभीर (0.0009 फीसदी) और छह बेहद गंभीर (0.00001 फीसदी) है।”
केंद्र ने कहा, “डाटा से स्पष्ट है कि बच्चों को कोविड-19 टीकाकरण अभियान के दायरे में शामिल किए जाने से लाभर्थियों के सामने कोई सुरक्षा जोखिम पैदा नहीं होता।”
याचिकाकर्ता ने अन्य देशों में 15 से 18 साल के बच्चों के टीकाकरण के दौरान कई गंभीर प्रतिकूल घटनाएं सामने आने का जिक्र किया है।
सरकार ने कहा, “याचिका में टीकाकरण के बाद बच्चों में जिन तथाकथित गंभीर प्रतिकूल घटनाओं के सामने आने का जिक्र किया गया है, वे एम-आरएनए टीकों के संदर्भ में हैं। ये टीके भारत में लगने वाले टीकों से पूरी तरह अलग हैं। मौजूदा समय में भारत एम-आरएनए पर आधारित टीके नहीं लगा रहा है।”
केंद्र ने कहा, “परीक्षणों में कोई गंभीर प्रतिकूल घटना सामने नहीं आने पर बच्चों का टीकाकरण चरणबद्ध तरीके से सबसे पहले सबसे बड़े आयु वर्ग यानी 15 से 18 साल के बच्चों से शुरू किया गया था।”
उसने कहा, “यह तर्क कि बच्चे कोविड-19 के प्रति कम संवेदनशील हैं और इसलिए उन्हें टीका नहीं लगाया जाना चाहिए, आश्चर्यजनक रूप से विशेषज्ञ होने का दावा करने वाले एक व्यक्ति ने दिया है। सभी बाल टीके हमेशा निवारक प्रकृति के होते हैं और किसी भी संभावित संक्रमण से बचने और इसका खतरा घटाने के लिए लगाए जाते हैं।”
केंद्र ने कहा कि आज की तारीख में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ), यूनिसेफ और अमेरिकी रोग नियंत्रण एवं रोकथाम केंद्र (सीडीसी) सहित सभी वैश्विक एजेंसियां वैज्ञानिक सहमति के आधार पर बाल टीकाकरण की सलाह दे रही हैं।
सरकार ने कहा कि टीकाकरण नीति और एक विशेष टीके के प्रभाव, सुरक्षा, प्रतिरक्षात्मकता व चिकित्सकीय असर से जुड़े सवालों पर विभिन्न समितियों से लैस विभिन्न चिकित्सा क्षेत्रों के विशेषज्ञों द्वारा बार-बार और समय-समय पर गौर फरमाया जाता है।
उसने कहा, “लिहाजा यह अदालत याचिकाकर्ता की इस अपील को स्वीकार नहीं करेगी कि वह विभिन्न वैज्ञानिक और चिकित्सा पहलुओं से संबंधित मुद्दों की न्यायिक समीक्षा करे, जिन पर पहले से ही देशभर के विभिन्न चिकित्सा संकायों का प्रतिनिधित्व करने वाले विशेषज्ञों द्वारा विचार किया जा रहा है।”
सरकार ने कहा कि याचिका में की गई अपील, अधिकारियों द्वारा उठाए गए कदम और अदालत की न्यायिक समीक्षा पर उस निर्विवाद तथ्य के आधार पर विचार किए जाने की जरूरत है कि न केवल भारत, बल्कि पूरी मानव जाति सचमुच में एक महामारी के कारण उस स्तर पर ‘अस्तित्व के संकट’ से जूझ रही है, जिसके बारे में उसे पहले कभी कोई अनुभव ही नहीं था।
केंद्र ने कहा, “ऐसी चरम और असाधारण परिस्थितियों में यह अदालत कार्यपालिका के कार्यों की जांच करते हुए न्यायिक समीक्षा की अपनी शक्ति में उपयुक्त रूप से फेरबदल कर सकती है।”
सरकार ने कहा कि दुनिया और विशेष रूप से भारत की प्रमुख चिंताओं में से एक देश में प्रत्येक व्यक्ति को टीकाकरण तक पहुंच उपलब्ध कराना है और अदालत द्वारा किसी भी तरह की लिप्तता ‘वैक्सीन के प्रति झिझक का कारण बन सकती है।’
केंद्र ने कानून के दायरे में टीका उत्पादन के विभिन्न चरणों के बारे में विस्तृत जानकारी भी दी।
सरकार ने कहा कि जहां तक कोवैक्सीन का सवाल है, निर्माता कंपनी भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड ने 23 अप्रैल 2020 को अपने कोविड टीके के निर्माण के वास्ते जांच, परीक्षण और विश्लेषण के लिए आवेदन किया था।
केंद्र ने बताया कि विभिन्न चरणों और मुद्दों की निगरानी के लिए सरकार की विषय विशेषज्ञ समिति की कई बैठकें हुईं और अंततः तीन जनवरी 2021 को नौ महीने के विस्तृत विचार-विमर्श के बाद इस टीके को केवल ‘आपातकालीन इस्तेमाल’ की मंजूरी दी गई।
केंद्र ने आगे बताया कि जहां तक कोविशील्ड का सवाल है तो यह टीका मूल रूप से ब्रिटेन में विकसित हुआ है, लेकिन इसका उत्पादन भारत में किया जा रहा है।
सरकार ने कहा कि भारत में कोविशील्ड के उत्पादक और ब्रिटेन में एस्ट्राजेनेका के बीच व्यावसायिक समझ के अनुसार एक प्रौद्योगिकी हस्तांतरण हुआ है और कोविशील्ड के मामले में मूल्यांकन की उसी प्रक्रिया का पालन किया गया था, जैसा कि कोवैक्सीन के लिए किया गया था।
केंद्र ने कहा, “उपरोक्त तथ्य यह दर्शाते हैं कि विषय विशेषज्ञ समिति से लेकर अनुमोदन प्रदान करने वाले अंतिम प्राधिकारी तक स्वतंत्र और तटस्थ विशेषज्ञों की निगरानी में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया बिल्कुल पारदर्शी है। पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए पूरा विवरण मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध कराया गया है।”
सरकार ने कहा कि क्लीनिकल परीक्षण की प्रक्रिया के कुछ हिस्सों से गोपनीयता जुड़ी हुई है, जिससे कानून के तहत समझौता नहीं किया जा सकता है।
केंद्र ने कहा, “जनहित याचिका की आड़ में या तो अपनी जिज्ञासा शांत करने या फिर वैक्सीन के प्रति हिचक पैदा करने के प्रयासों को आगे बढ़ाने के लिए इस तरह के डाटा की मांग किसी भी व्यक्ति द्वारा नहीं की जा सकती है।”
याचिकाकर्ता की तरफ से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने पहले तर्क दिया था कि टीकाकरण कराना या नहीं कराना एक व्यक्तिगत निर्णय है और सहमति के अभाव में अनिवार्य टीकाकरण असंवैधानिक था।
भाषा पारुल सुरेश
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