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Monday, 23 December, 2024
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राजकोषीय पैकेज के लिए कोरोना के प्रभाव का अध्ययन कर रही है सरकार: कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यम

दिप्रिंट के ऑफ द कफ कार्यक्रम में अर्थशास्त्री ने कहा कि घाटे के मुद्रीकरण को एक बार के उपाय के रूप में माना जा सकता है कि मुद्रास्फीति का दबाव कम हैं.

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नई दिल्ली: मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यम ने बुधवार को दिप्रिंट के ऑफ द कफ के डिजिटल संस्करण में कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार राजकोषीय पैकेज पर काम कर रही है और विभिन्न उद्योगों पर कोविड-19 के प्रभाव का बारीकी से अध्ययन कर रही है.

सीईए ने कहा कि 2020-21 में कम मुद्रास्फीति के दबाव का मतलब है कि भारत राजकोषीय घाटे के एकमुश्त विमुद्रीकरण पर विचार कर सकता है.

दिप्रिंट के एडिटर-इन-चीफ शेखर गुप्ता के साथ एक बातचीत में कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यम ने कहा कि सरकार कोविड-19 के प्रभाव पर एक विस्तृत क्षेत्रीय विश्लेषण कर रही है और जल्द ही एक घोषणा की जाएगी.

उन्होंने कहा ‘हमने देखा है कि सेक्टर दर सेक्टर और व्यापक आर्थिक प्रभाव क्या रहा है. हमने उन क्षेत्रों का व्यापक विश्लेषण किया है जो प्रभावित हैं और इस आधार पर पैकेज पर काम किया जा रहा है.’

यह पूछे जाने पर कि राजकोषीय पैकेज की घोषणा कब की जाएगी. सुब्रमण्यम ने कहा, यह घोषणा कब की जाएगी इस पर अटकल लगाना मेरे सीनियर लेवल का काम है. इस पर काम हो रहा है. हमें सरकार से इसपर जल्द सुनाने को मिलेगा.’

उन्होंने कहा कि सरकार संकट के पैमाने को देखते हुए देर रात तक काम कर रही है और वित्तीय क्षेत्र और गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियों पर करीब से नज़र रख रही है जो कोविड-19 की स्थिति से पहले भी तनाव में थे.

वित्त मंत्रालय एक पैकेज डिजाइन करना चाह रहा है जो केंद्र सरकार द्वारा सामना की जाने वाली वित्तीय बाधाओं को ध्यान में रखते हुए सेवा क्षेत्रों और एमएसएमई सहित कई क्षेत्रों की समस्याओं का समाधान करता है.

घाटे का मुद्रीकरण

मोदी सरकार भी राजकोषीय घाटे में संभावित तेज वृद्धि का सामना कर रही है. इसने कई अर्थशास्त्रियों ने यह सुझाव दिया है कि भारतीय रिज़र्व बैंक को घाटे का मुद्रीकरण करने के लिए और अधिक धन प्रिंट करना चाहिए – इसको भारत ने कई वर्षों से फॉलो नहीं किया है.

घाटे के मुद्रीकरण की संभावना पर कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन ने कहा कि यह पहचानना होगा कि किसी को बिना कुछ किये कुछ मिलना संभव नहीं है.

यदि आप घाटे का मुद्रीकरण करते हैं, तो मुद्रास्फीति के संदर्भ में लागत उठानी पड़ सकती है. हालांकि, इस साल मुद्रास्फीति की चिंता कम है. तेल की कीमतें घट रही हैं. इस साल वैश्विक मांग कम होने वाली है, इसलिए तेल की कीमतें कम हो सकती हैं. खाद्य पदार्थों की कीमतों में भी कमी आई है. कोरोना की वजह से खपत पर असर पड़ेगा और कुल मिलाकर मुद्रास्फीति की चिंता कम है.’

हालांकि, उन्होंने कहा, ‘इस पर विचार किया जा सकता है लेकिन यह स्पष्ट है कि यह एक असाधारण परिस्थिति है.’

भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास

सीईए कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन ने 2020-21 के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कोई विकास अनुमान नहीं दिया और कहा कि पहली तिमाही में कर राजस्व पर प्रभाव कई धारणाओं के आधार पर जीडीपी का 1 प्रतिशत हो सकता है.

उन्होंने कहा, किसी भी ग्रोथ संख्या की भविष्यवाणी करने में बहुत ही अनिश्चितता है. अगर हम 20 अप्रैल को कुछ क्षेत्रों को लॉकडाउन खोलने में सक्षम हैं और अगर मामलों में नाटकीय रूप से वृद्धि नहीं होती है, तो अर्थव्यवस्था पर प्रभाव उतना बुरा नहीं हो सकता है.

कई अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों और ब्रोकरेज ने भारत को 2020-21 में 0-2 प्रतिशत के बीच बढ़ने का अनुमान लगाया है.

यूनिवर्सल आय पर

कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन ने यह भी कहा कि भारत में सब्सिडी को हटाए बिना एक यूनिवर्सल बेसिक आय (यूबीआई) प्रदान करना संभव नहीं हो सकता है और इसके लिए एक राजनीतिक बहस की आवश्यकता है.

उन्होंने बताया कि उनके पूर्ववर्ती अरविंद सुब्रमण्यन द्वारा लिखे गए एक आर्थिक सर्वेक्षण में यूबीआई के बारे में लिखा था. उन्होंने ने सब्सिडी के प्रतिस्थापन के रूप में नीति की परिकल्पना की थी. सीईए ने कहा, ‘यह मौजूदा सब्सिडी का विकल्प है, न कि ऐड-ऑन का.’

नज इकोनॉमिक्स के प्रस्तावक सुब्रमण्यन ने यह भी बताया कि कोविड-19 ने कैसे हाथ धोने सहित स्वच्छता को प्रकाश में लाया है. उन्होंने यह भी कहा कि कैसे कोविड-19 जैसे एपिसोड अकेले होने का डर और अवधारणात्मक पक्षपात का कारण बनते हैं.

सीईए ने कहा कि भारत संकट के समय में अच्छी तरह से सुधार करता है और कुछ सुधारों को लागू करने के लिए परिपक्व समय है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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