(अभिषेक शुक्ला)
नयी दिल्ली, 24 जनवरी (भाषा) सीबीआई को उस वक्त एक बड़ी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा जब यहां एक विशेष अदालत ने 1995 में जर्मनी में सीमेंस से एक एन्क्रिप्शन (कूटलेखन) प्रणाली को राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) के जाली प्रमाण पत्र के आधार पर आयात करने की साजिश के आरोपी कारोबारी हरीश गुप्ता को बरी कर दिया। अदालत ने इसे “गड़बड़ तरीके से हुई जांच” करार दिया।
अपनी टिप्पणियों में अदालत ने कहा कि इस मामले में “राष्ट्र की सुरक्षा और सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा” शामिल है, जिसकी “गहन जांच” की आवश्यकता है, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि जांच अधिकारी (आईओ) ने “सतही जांच भी नहीं की”।
विशेष न्यायाधीश हरीश कुमार ने गुप्ता को जालसाजी के आरोप से बरी करते हुए कहा, “ऐसा प्रतीत होता है कि आईओ ने जानबूझकर या किसी उच्च अधिकारी के इशारे पर जांच नहीं की है और इस प्रकार, इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है कि ये सभी असली अपराधी या शायद मौजूदा आरोपी, अगर वह मामले में शामिल था तो, को बचाने के लिए ऐसा कर रहे थे।”
अप्रैल 1996 में जब देश में संसदीय चुनाव चल रहे थे तभी एक दोपहर एनएसजी स्क्वाड्रन कमांडर विमल सत्यार्थी को बेल्जियम दूतावास से एक पत्र मिला जिसमें उन्हें सीमेंस एनवी, जर्मनी से एन्क्रिप्शन उपकरण के आयात के लिए अंतिम उपयोगकर्ता प्रमाणपत्र फिर से जारी करने के लिए कहा गया था।
उपकरण केवल किसी देश की कानून प्रवर्तन एजेंसियों को बेचा जाता था और सत्यार्थी ने इंटरसेप्शन उपकरण के लिए कोई अंतिम उपयोगकर्ता प्रमाणपत्र जारी नहीं किया था जिसे उन्हें फिर से जारी करने के लिए कहा जा रहा था।
इस पत्र से सुरक्षा प्रतिष्ठान में हड़कंप मच गया क्योंकि बेल्जियम दूतावास के पत्र का आशय था कि कोई व्यक्ति 18 दिसंबर, 1995 की तारीख वाले उस जाली अंतिम उपयोगकर्ता प्रमाण-पत्र की मदद से उपकरण आयात करने का प्रयास कर रहा था, जिसे कथित तौर पर सत्यार्थी द्वारा जारी किया गया था।
एनएसजी ने एक आंतरिक जांच की जिसके बाद उसके तत्कालीन महानिदेशक एके टंडन ने नौ मई, 1996 को गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर मामले को उसके समक्ष उठाया।
केंद्रीय गृह मंत्रालय में संयुक्त सचिव यूके सिन्हा ने अंतिम उपयोगकर्ता प्रमाण पत्र के साथ बेल्जियम के दूतावास के टंडन के पत्रों की प्रति संलग्न की, और 28 मई, 1996 को सीबीआई को इसकी “गंभीरता और हानिकारक प्रभाव” को देखते हुए पूरी जांच करने के लिए जांच सौंपी।
सीबीआई ने लगभग दो महीने बाद प्रारंभिक जांच शुरू की जिसके बाद 12 अक्टूबर 1996 को प्राथमिकी दर्ज की गई।
जांच के दौरान, सत्यार्थी ने सीबीआई को बताया कि एनएसजी को विदेश मंत्रालय में तत्कालीन संयुक्त सचिव ईएसएल नरसिम्हन, जो बाद में तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के राज्यपाल बने, का एक पत्र मिला था। उन्होंने इंटेलिजेंस ब्यूरो को संबोधित एक प्रति के साथ एमएचए और एनएसजी को चिह्नित किया कि सिक्योर टेलीकॉम प्राइवेट लिमिटेड के हरीश गुप्ता ने असल में जाली प्रमाण-पत्र के आधार पर उपकरण के आयात की कोशिश की और इस उपकरण का इस्तेमाल विभिन्न सरकारों की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियों द्वारा किया जा सकता है।
सीबीआई ने आरोप लगाया कि गुप्ता दो एनक्रिप्शन उपकरण आयात करने की फिराक में था।
सितंबर 1998 में दायर सीबीआई के आरोप पत्र के अनुसार, गुप्ता ने कथित तौर पर यह दिखाने के लिए फर्जी प्रमाण पत्र दिया था कि यह कथित तौर पर एनएसजी के सत्यार्थी द्वारा जारी किया गया था और इसे सीमेंस को सौंप दिया गया था।
मुकदमे के दौरान सीबीआई ने 11 गवाह पेश किए, जिनमें नरसिम्हन, गृह मंत्रालय में तत्कालीन संयुक्त सचिव यू के सिन्हा और एनएसजी के वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे।
आरोप-पत्र दाखिल होने के करीब 22 साल बाद एक निचली अदालत ने गुप्ता को धोखाधड़ी के आरोप से बरी कर दिया, लेकिन उन्हें 22 दिसंबर, 2021 को जालसाजी का दोषी ठहराया और 10,000 रुपये के जुर्माने के साथ तीन साल की सजा सुनाई।
गुप्ता ने विशेष सीबीआई न्यायाधीश के समक्ष अपील दायर की जिन्होंने उन्हें जालसाजी के शेष आरोप से बरी करते हुए उनकी सजा को रद्द कर दिया
भाषा
प्रशांत नरेश
नरेश
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