नई दिल्ली : सीबीआई ने मंगलवार को दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया और आम आदमी पार्टी (आप) के नेतृत्व वाले प्रशासन के बाकी सीनियर अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि उन्होंने भ्रष्टाचार की जांच के लिए एक ‘फीडबैक यूनिट’ बनाई, लेकिन इसका इस्तेमाल ‘राजनीतिक खुफिया जानकारी’ जुटाने के लिए किया.
गृह मंत्रालय (एमएचए) ने फरवरी में दिल्ली के उप राज्यपाल (एलजी) विनय कुमार सक्सेना द्वारा आप नेता, जो कि दिल्ली सतर्कता विभाग के प्रभारी थे, के खिलाफ सीबीआई के अनुरोध को मंजूरी के बाद, भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत मुकदमा चलाने की इजाजत दी थी.
सीबीआई के सूत्रों के मुताबिक, उक्त यूनिट में नियुक्तियां ‘बिना जरूरी अप्रूवल के’ की गई थीं, भर्ती के लिए कोई नियम नहीं बनाया गया था, ‘सेक्रेट सर्विस फंड’ के नाम पर फर्जी संस्थाओं को पैसा जारी किया गया था, और टीमों ने भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के नाम पर जासूसी कीं.’
सीबीआई ने अपने एफआईआर में, जिसे दिप्रिंट ने देखा है, यह भी कहा है कि, ‘फीडबैक यूनिट के बनाने और काम करने के गैरकानूनी तरीके से सरकारी खजाने को लगभग 36 लाख रुपये नुकसान हुआ है.’
एफआईआर के मुताबिक, सिसोदिया और सुकेश जैन जो कि तत्कालीन सचिव सतर्कता, आर.के. सिन्हा (सेवानिवृत्त डीआईजी, सीआईएसएफ), मुख्यमंत्री के विशेष सलाहकार और एफबीयू के संयुक्त निदेशक के रूप में कार्यरत हैं, और पी.के. पुंज (सेवानिवृत्त संयुक्त उप निदेशक, इंटेलिजेंस ब्यूरो), FBU में उप निदेशक के रूप में कार्यरत हैं, ने सरकारी खजाने के अनियमित तरीके से इस्तेमाल के लिए जानबूझकर FBU को बनाया, कर्मचारी रखे, फंड दिया और बढ़ावा दिया.
इसमें कहा गया है, वे नियम और कायदों का उल्लंघन किए, और बिना अनिवार्य अप्रूवल के, अपने आधिकारिक पद का दुरुपयोग करते हुए और गलत इरादे से FBU का इस्तेमाल दूसरे मकसद के लिया किया, बजाय कि इसे जिस उद्देश्य के लिए बनाया गया था.
पूर्व डिप्टी सीएम, दिल्ली आबकारी नीति 2021-22 के तहत शराब कारोबारियों को कथित तौर पर फायदा पहुंचाने के मामले में एक और सीबीआई जांच का सामना कर रहे हैं.
दिल्ली सरकार के साथ-साथ आप ने सिसोदिया के खिलाफ आरोपों को ‘पूरी तरह फर्जी’ बताया है.
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ये है मामला
इस मामले में सीबीआई की एंटी-करप्शन ब्रांच को विजिलेंस विभाग में डिप्टी सेक्रेटरी एस. के. मीणा से शिकायत मिली थी.
एफआईआर के मुताबिक, उन्होंने आरोप लगाया है कि दिल्ली कैबिनेट ने सितंबर 2015 में बिना जरूरी अप्रूवल के एफबीयू को बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी.
सीबीआई ने कहा, ‘एफबीयू को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) के तहत आने वाले विभिन्न विभागों और स्वायत्त निकायों, संस्थानों के कामकाज के बारे में ‘जरूरी जानकारी और कार्रवाई योग्य फीडबैक’ जुटाने और मामलों को ट्रैप करने का काम सौंपा गया था.’
सीबीआई के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि यूनिट बनाने के लिए- या इसमें नियुक्तियों के लिए- दिल्ली के एलजी से कोई मंजूरी नहीं ली गई थी, जो कि जीएनसीटीडी में नियुक्तियों के लिए सक्षम प्राधिकारी हैं.
इसके अलावा, एजेंसी के एक सूत्र ने कहा कि, सृजित पदों के लिए कोई ‘भर्ती नियम’ नहीं बनाए गए थे.
सूत्र ने कहा, ‘प्रस्ताव को एलजी ने मंजूरी नहीं दी थी. इस मामले में बिना किसी वास्तविक अर्जेंसी के, प्रस्ताव जल्दबाजी में आगे बढ़ाया गया था. जीएनसीटीडी के तहत पद सृजित करने की शक्ति गृह मंत्रालय के संचार विभाग में विस्तार से बताई गई है, जो जीएनसीटीडी के तहत सभी प्रकार के पदों को सृजित करने की शक्तियां प्रदान करता है, लेकिन इसकी अनदेखी की गई.’
सूत्र ने कहा, इसके अलावा, जीएनसीटीडी द्वारा बिना किसी अधिसूचना के जिस तरह से एफबीयू में पदों के लिए विज्ञापन, चयन और नियुक्तियां की गईं- यह दिखाता है कि यह एक आपराधिक साजिश थी.
सीबीआई सूत्रों के मुताबिक, एफबीयू फरवरी 2016 से काम करना शुरू किया था और एक करोड़ रुपये ‘सेक्रेट सर्विस खर्च’ के लिए अलग रखे गए थे. सूत्रों ने कहा कि यह पैसा, फर्जी पहचान के बट्टे खाते में डाला गया था, और नकली बिल बनाए गए थे.
एक दूसरे सूत्र ने दिप्रिंट को बताया कि सेक्रेट सर्विस फंड से कुछ कंपनियों को भुगतान के दो उदाहरण दिखाए गए थे, और जांच के दौरान यह पाया गया कि उन्हें वह पैसा कभी नहीं दिया गया था.
सूत्रों ने कहा, ‘बिल से पता चला कि सेक्रेट सर्विस फंड से पैसा एक मेसर्स सिल्वर शील्ड डिटेक्टिव्स और मेसर्स डब्ल्यूडब्ल्यू सिक्योरिटी को दिया गया था. हालांकि, जांच के दौरान पता चला कि भुगतान के एवज में दिए गए वाउचर फर्जी थे.’
‘दोनों फर्मों के मालिकों ने GNCTD या FBU के लिए कोई काम करने से और कोई भुगतान पाने से इनकार किया है. उन्होंने कहा कि उनकी फर्म के नाम पर बनाए गए वाउचर फर्जी थे.’
सूत्र ने कहा, ‘अपराधी लोक सेवकों द्वारा नियमों और दिशा-निर्देशों का जानबूझकर उल्लंघन किया गया.’
सूत्र ने कहा, ‘उल्लंघनों की प्रकृति स्वाभाविक तौर पर गलत है और इस तरह की सामग्री संबंधित लोक सेवकों के गलत इरादे से आधिकारिक पद के दुरुपयोग का खुलासा करती है, जिसमें मनीष सिसोदिया और बाकी शामिल हैं.’
‘जासूसी’
सीबीआई के सूत्रों ने कहा कि एफबीयू द्वारा बनई गई रिपोर्टों की प्रकृति का एक मोटे तौर पर विश्लेषण से पता चलता है कि 60% सतर्कता मामलों से संबंधित थे, बाकी राजनीतिक खुफिया जानकारी और अन्य मुद्दों से जुड़े थे.
सूत्रों ने कहा कि, यह भी पाया गया कि किसी लोक सेवक या विभाग के खिलाफ कोई औपचारिक कार्रवाई नहीं की गई.
एफआईआर के मुताबिक, ‘FBU ने अनिवार्य जानकारी जुटाने के अलावा, राजनीतिक खुफिया जानकारी भी जुटाई, जो FBU की कुल रिपोर्टों का लगभग 40 प्रतिशत है, जो FBU के कामों के क्षेत्र और दायरे से बाहर था, जिसके लिए इसे साफ तौर से बनाया गया था.’
एक तीसरे सूत्र ने दिप्रिंट को बताया कि, ‘रिपोर्ट की एक बड़ी संख्या किसी भी विभाग, संस्थान, संस्था आदि में भ्रष्टाचार पर कार्रवाई योग्य फीडबैक या सूचना से जुड़ी नहीं थी…लेकिन राजनीतिक गतिविधियों से संबंधित थीं.’
सूत्र ने कहा, ‘फरवरी 2016 और सितंबर 2016 की शुरुआत के बीच एफबीयू अधिकारियों द्वारा दी गई रिपोर्टों की जांच से पता चलता है कि बड़ी संख्या में रिपोर्ट्स जीएनसीटीडी के तहत किसी भी विभाग, संस्थान, संस्था आदि में भ्रष्टाचार पर कार्रवाई योग्य फीडबैक या सूचना से जुड़ी नहीं थीं, लेकिन लोगों की राजनीतिक गतिविधियों, राजनीतिक संस्थाओं और आप, भाजपा या (अन्य दलों) के राजनीतिक हित से संबंधित मुद्दों जुड़ी थीं -जो कि एफबीयू के क्षेत्र और दायरे से बाहर की थीं.’
सूत्र ने कहा, यह दिखाता है कि एफबीयू का लोक सेवकों ने गलत इस्तेमाल किया, बजाय इसके कि जिसके लिए इसे बनाया गया था.
सूत्र ने कहा, ‘दिल्ली कैबिनेट द्वारा अनुमोदित एफबीयू उचित तरीके से और उस मकसद के लिए काम नहीं कर रहा था, जिसके लिए इसे बनाया गया था, बल्कि बाकी छिपे उद्देश्यों के लिए काम कर रहा था, जो जीएनसीटीडी के हित में नहीं थे, बल्कि आप और मनीष सिसोदिया के निजी हित में थे.’
(अनुवाद और संपादन- इन्द्रजीत)
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