scorecardresearch
Sunday, 22 December, 2024
होमदेशकाजू किसान, गर्मी, हवा - गोवा के जंगलों में इस साल जैसी आग 'पहले कभी नहीं' लगी, हर किसी पर शक की सुई

काजू किसान, गर्मी, हवा – गोवा के जंगलों में इस साल जैसी आग ‘पहले कभी नहीं’ लगी, हर किसी पर शक की सुई

इस मार्च में गोवा के जंगलों में 71 बार आग लगी. जबकि अधिकारी खेती के तौर-तरीकों और मौसम की ओर इशारा करते हैं, पर्यावरणविदों ने 'ढिलाई', हुए नुकसान के बारे में सवाल उठाए हैं.

Text Size:

सत्तारी, गोवा: 10 मार्च की शाम को, गोवा के सत्तारी तालुका में कोपर्डेम के निवासी गांव के मंदिर के पास इकट्ठे हुए, उनकी नज़रें उन पहाड़ियों पर टिकी थीं, जो दूर दिखाई दे रही थीं. आसमान की तरफ उठने वाली ऊंची-ऊंटी लपटें उनके दिलों को दहला रही थीं.

गांव के बहुत से लोग उन पुरुषों और युवाओं को लेकर चिंतित थे जो प्रचंड आग को बुझाने के लिए वन रेंजरों के साथ पहाड़ियों पर गए थे. कुछ इस बात से भी डरे हुए थे कि काजू के विशाल बागानों के राख में बदलने के साथ ही उनकी आजीविका खत्म हो जाएगी.

चैत्र सावंत और उनके पति के लिए यह डर सच साबित हुआ. इस रविवार, उन्हें खबर मिली कि आग बुझ गई है, लेकिन इसने उनके लगभग पूरे काजू के बागान को नष्ट कर दिया था. वे उम्मीद कर रहे थे कि काजू से उन्हें इस साल 70,000-80,000 रुपये की कमाई होगी.

सावंत ने दिप्रिंट को बताया, “पहाड़ियों पर हमारे पास लगभग 5 एकड़ का पौधा था और अब हमारे काजू के लगभग पांच या छह पेड़ ही बचे हैं.”

Kopardem village
गोवा के सत्तारी तालुका के कोपर्डेम गांव की चैत्रा सावंत उन पहाड़ियों की ओर इशारा करती हैं जहां उनके परिवार के काजू के बागान जल गए । साभार : मानसी फड़के | दिप्रिंट

गोवा की पहाड़ियां 5 मार्च से लगी जंगल की आग से झुलस गई हैं, जब म्हादेई वन्यजीव अभयारण्य में सतरेम गांव के पास आग लगने की पहली बार सूचना मिली थी. म्हादेई, नेत्रावली, मोल्लेम और अन्य जंगलों में अब तक 71 आग की पहचान की जा चुकी है और उन्हें बुझाया जा चुका है. राज्य में लगभग 755 वर्ग किलोमीटर का वन क्षेत्र है.

गोवा के वन मंत्री विश्वजीत राणे के एक ट्विटर अपडेट के अनुसार, 14 मार्च पहला दिन था जब एक भी आग नहीं थी.

पिछले 10 दिनों में, 400 से अधिक सरकारी अधिकारियों, वन अधिकारियों और स्थानीय वॉलंटियर्स ने आग बुझाने के लिए जंगलों में डेरा डाला था. भारतीय नौसेना और वायु सेना ने भी सहायता के लिए हेलीकॉप्टर तैनात किए थे.

राणे ने बुधवार को कहा कि गोवा सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए 350 से अधिक कर्मियों को तैनात किया है कि कहीं फिर से आग न लग जाए.

ग्रामीणों, वन अधिकारियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि जैसा इस महीने देखा गया ऐसी आग की लपटें पहले कभी नहीं देखी गईं. उनका कहना है कि स्थानीय छोटी-मोटी आग की लपटें दिखती रहती हैं, लेकिन पूरे जंगल इस तरह से जलता हुआ कभी नहीं देखा गया.

राख के नीचे बैठते ही अधिकारी आग के कारणों का पता लगाने में जुट जाएंगे, लेकिन उन्होंने कुछ अनुमान लगाए हैं, जिसके मुताबिक मानवीय कारकों से लेकर असामान्य रूप से गर्म मौसम और हवाओं के चलने के कारण यह आग लगी होगी.

Goa fire helicopter
गोवा में अग्निशमन कार्यों में सहायता करता नौसेना का एक हेलीकॉप्टर | एएनआई/डिफेंस पीआरओ वेस्टर्न नेवल कमांड

गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत और वन मंत्री राणे, जो सत्तारी के वालपोई से हैं, ने ऑन-रिकॉर्ड कहा कि आग आकस्मिक नहीं थी, बल्कि “मानव निर्मित” थी.

गोवा सरकार के अधिकारियों और पुलिस का दावा है कि स्थानीय काजू किसान अक्सर खरपतवार और मृत फसलों के अपने बागों को साफ करने के लिए आग लगाते हैं, लेकिन इस साल तापमान में वृद्धि, हवा और नमी की उपस्थिति के कारण आग लग गई.

हालांकि, पहाड़ियों के करीब रहने वाले काजू किसानों का कहना है कि वे इन स्थानीय आग के प्रति कभी भी गैर-जिम्मेदार नहीं रहे हैं, और यह विश्वास करना कठिन है कि इससे इतनी बड़ी आग लग सकती थी.

गोवा पुलिस के अनुसार, सभी 71 घटनाओं में, केवल दो पुलिस मामले और एक गिरफ्तारी हुई है. जिसकी गिरफ्तारी हुई है वह कुपोर्डेम गांव के एक स्थानीय व्यक्ति हैं और उनके पास खुद काजू का बाग है. उनके साथी ग्रामीणों ने दिप्रिंट को बताया कि वह एक शिक्षक हैं और उन्हें नहीं लगता कि उन्होंने जानबूझकर आगजनी की है.

उत्तरी गोवा के पुलिस अधीक्षक (एसपी) निधिन वलसन ने दिप्रिंट को बताया,“काजू के किसानों को स्थानीय स्तर पर आग जलाने के लिए जाना जाता है, लेकिन यह पहली बार है जब चीजें हाथ से निकल गई हैं. फिलहाल सारा फोकस आग को नियंत्रित करने और यह सुनिश्चित करने पर है कि ऐसा दोबारा न हो. लेकिन, एक बार जब चीजें सामान्य हो जाएंगी, तो हम आग के सही कारणों की जांच करने के लिए एक विशेष टीम को मौके पर भेजेंगे.”

इस बीच, कुछ पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने जैव विविधता की क्षति के साथ-साथ म्हादेई वन्यजीव अभयारण्य क्षेत्र में आग की सघनता के बारे में सवाल उठाए हैं, जहां एक प्रस्तावित बाघ अभयारण्य को लेकर विवाद हो गया है.


यह भी पढ़ेंः राज्य और लोकसभा चुनावों पर नजर, दिसंबर 2023 तक नागपुर-मुंबई एक्सप्रेसवे पूरा कराना चाहती है शिंदे सरकार


‘आग लगना असामान्य नहीं है’

भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) द्वारा जंगल की आग के एक उपग्रह-आधारित सर्वेक्षण के अनुसार, एक साल पहले इसी अवधि में, मुख्य रूप से तापमान में वृद्धि के कारण मार्च 2023 के पहले 12 दिनों में देश भर में जंगल की आग की संख्या में 115 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

आंकड़े बताते हैं कि इस साल 1-12 मार्च के बीच जंगल में आग लगने की संख्या 42,799 थी जो की इसी समयावधि में पिछले साल 19,929 था.

दिप्रिंट से बात करते हुए, गोवा के एक सेवानिवृत्त वन अधिकारी, मिलिंद करखानिस ने कहा कि जंगल में आग दो प्रकार की होती है. पहली तरह की आग क्राउन या मिडस्टोरी आग है जो पेड़ों के रगड़ के कारण पैदा होती है. दूसरी प्रकार की आग सतही आग है, जो जमीन पर जलती है.

Mhadei Wildlife Sanctuary fire
म्हादेई वन्यजीव अभयारण्य में पत्तों के बीच आग की लपटें | स्पेशल अरेंजमेंट

गोवा वन विभाग के साथ लंबे समय से काम करने का अनुभव रखने वाले, करखानिस ने कई छोटे-छोटे कारणों से भी जमीन पर आग लगते हुए देखा है. जैसे- कई बार बीड़ी पीकर किसी के द्वारा जलती हुई बीड़ी को जमीन पर फेंक दिया जाना, काजू किसानों द्वारा सूखी फसलों और खरपतवार को आग लगाया जाना और कई बार बकरी चराने वालों द्वारा नई घास निकलने के लिए जमीन को जलाना.

करखानिस ने कहा, “गोवा में ऐसे पेड़ नहीं हैं जो वृक्षों के ऊपरी भाग में आग लगने का बनें, पर राज्य में सतह पर आग लगने के कई उदाहरण देखे गए हैं. इन्हें ब्रशवुड की शाखाओं से पीटकर बुझाना बहुत आसान है, बशर्ते कि आग के सतह को छोड़कर ऊपरी भाग तक पहुंचने से पहले ही इसका पता लग जाए.

उन्होंने कहा, “इस बार समस्या यह है कि ऐसा लगता है कि आग का जल्द पता लगाने की बुनियादी बातों का ध्यान नहीं रखा गया. मैंने पहले कभी ऐसी आग नहीं देखी.’

गोवा के पर्यावरणविद् राजेंद्र केरकर, जो पश्चिमी घाटों के संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं, ने भी कुछ “लापरवाही” भरे तरीकों को अपनाए जाने का आरोप लगाया.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि आग लगने के बाद वन अधिकारियों ने अपनी सतर्कता बढ़ा दी है, लेकिन उन्होंने पहले एंट्री प्वाइंट्स की सुरक्षा और गश्त में कमी देखी है.

केरकर ने कहा, “जमीन पर बिखरी हुई पत्तियों को साफ नहीं किया जाता है, और इसके कारण सतह पर आग तेजी से फैलती है. मैंने एक पखवाड़े पहले ही वन अधिकारियों को इसे लेकर आगाह किया था, लेकिन इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया.”

गोवा के पर्यावरणविद् राजेंद्र केरकर | साभार : मानसी फड़के | दिप्रिंट

11 मार्च को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान में भी कहा गया था कि ज्यादातर आग पतझड़ वनों के भाग में लगने वाली “सतह की आग” थी.

प्रेस नोट में कहा गया, “सतह की आग का विस्तार और प्रसार वहां मौजूद जलने वाली सामग्री और एरिया पर निर्भर करता है. कई जगहों पर सूखे पेड़, गिरे हुए लट्ठों ने आग की तीव्रता को और बढ़ा दिया है.”

बाघों का फैक्टर, जैव विविधता को होने वाले नुकसान का सवाल

संरक्षणवादी केरकर म्हादेई वन्यजीव अभयारण्य के तलहटी पर स्थित सत्तारी के केरी गांव की हरी-भरी वादियों के बीच रहते हैं. उन्होंने कहा, “यह गोवा का एक खूबसूरत हिस्सा है और मैं इसे संरक्षित करने की पूरी कोशिश कर रहा हूं.”

केरकर ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि उसी क्षेत्र में कई आग लगने की सूचना मिली है जहां पर्यावरण कार्यकर्ता सरकार द्वारा बाघ अभयारण्य घोषित करने की वकालत कर रहे हैं. वैसे तो इसका प्रस्ताव 20 साल पहले दिया गया था, लेकिन कथित तौर पर अवैध शिकार के कारण 2020 में यहां एक बाघिन और उसके तीन शावकों की मौत के बाद इस मुद्दे को काफी जोर-शोर से उठा.

यह क्षेत्र वाघेरी पहाड़ियों के इर्द-गिर्द है, जो वास्तव में बाघों के नाम पर हैं, जिसे कोंकणी और मराठी में ‘वाघ’ कहते हैं.

Vagheri hills in Goa
गोवा में वाघेरी पहाड़ियों का एक दृश्य | साभार : मानसी फड़के | दिप्रिंट

हालांकि, पिछले अप्रैल में, वन मंत्री राणे, जो सत्तारी के वालपोई से हैं, ने कहा कि उन्होंने बाघ अभयारण्य के विचार का समर्थन नहीं किया, विवादित रूप से यह भी दावा किया कि गोवा में कोई रेजिडेंट बाघ नहीं हैं.

ऐसा भी कहा जाता है कि खनन और अन्य विकास गतिविधियों पर पड़ने वाले प्रभाव के कारण यहां टाइगर रिजर्व को लेकर स्थानीय स्तर पर भी काफी प्रतिरोध का भी भाव है.

पर्यावरणविदों द्वारा उठाया गया एक और मुद्दा आग की वजह से क्षेत्र की जैव विविधता को होने वाले नुकसान का है.

वन संरक्षण के विशेषज्ञ करखानिस ने कहा कि गोवा में सेवारत और पूर्व वन अधिकारियों के अनौपचारिक अनुमानों के अनुसार, आग में लगभग 16-20 हेक्टेयर जंगल नष्ट हो गए हैं.

उन्होंने कहा, इससे पक्षियों, सरीसृपों, तितलियों, जानवरों, औषधीय पौधों और क्षेत्र की अन्य जैव विविधता पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा.

इन आग से होने वाले नुकसान की लागत की गणना वन अधिकारियों द्वारा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति द्वारा स्थापित दिशानिर्देशों के अनुसार की जाती है.

2021 की एक रिपोर्ट में इस समिति ने कहा कि पेड़ की कीमत 74,500 से उसकी आयु को गुणा करके निकाली जाती है.

करखानिस के अनुसार, प्रत्येक हेक्टेयर में कम से कम 200 पेड़ हैं और 25 वर्ष की औसत आयु मानकर 16 हेक्टेयर जंगलों को हुए नुकसान का मूल्यांकन किया जाए तो इसकी कीमत लगभग 596 करोड़ रुपये निकलती है.

हालांकि, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी पूर्व में उद्धृत बयान में दावा किया गया है कि वनस्पतियों और जीवों का “कोई बड़ा नुकसान नहीं” हुआ है.


यह भी पढ़ेंः ‘ब्राह्मणों को अलग करना, लोकल मुद्दों के बजाय हिंदुत्व पर फोकस’- BJP के गढ़ कस्बा पेठ से क्यों हारी पार्टी


काजू किसानों के साथ ब्लेम गेम

जबकि केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के बयान, जिसका उल्लेख पहले किया गया था, ने घास के मैदानों और काजू के खेतों में किसानों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली “काटने और जलाने” की तकनीक को आग के लिए जिम्मेदार ठहराया, सत्तारी के स्थानीय लोगों ने कहा कि उन्होंने इस विधि का उपयोग नहीं किया.

ज़ोनल कृषि कार्यालय के 2021-22 के आंकड़ों के अनुसार, इस तालुका में, जहां से सबसे पहले आग लगी थी, 10,852.1 हेक्टेयर में काजू के बागान हैं.

जोनल कृषि कार्यालय के एक अधिकारी ने दावा किया, “इस भूमि का अधिकांश भाग पहाड़ियों में है, और जबकि लगभग 60 प्रतिशत किसानों के स्वामित्व में है, शेष 40 प्रतिशत सरकारी भूमि है जिस पर किसानों द्वारा कब्जा कर लिया गया है और खेती की जाती है.”

कुल मिलाकर, साल 2021-22 के लिए तालुका का काजू उत्पादन 5,801.53 टन था.

दिप्रिंट से बात करते हुए सत्तारी के काजू किसानों ने कहा कि वे आमतौर पर मजदूरों को रखकर नियमित रूप से हर कुछ महीनों में खरपतवार और मृत पेड़ों के अपने बागों की सफाई कराते हैं.

रीना सावंत, जिनके परिवार के पास सत्तारी तालुका के वालपोई में पहाड़ियों पर काजू का बाग है,ने कहा, “कुछ किसान ऐसे हैं जो मजदूरी पर पैसा खर्च नहीं करना चाहते हैं, इसलिए वे सभी मृत पेड़ों और खरपतवारों को एक साथ लाते हैं, एक अग्नि रेखा (आग पर काबू पाने के लिए एक अग्नि रेखा) बनाते हैं, और फिर उसमें आग लगा देते हैं.”

हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि जब लोग आग जलाते हैं तब भी लोग “लापरवाही” नहीं करते हैं.

“हम सभी के बगीचे एक-दूसरे के बगल में हैं और आग जलाने वाले अपनी और साथ ही अपने पड़ोसियों की फसल को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहेंगे. वे आमतौर पर तब तक वहीं रहते हैं जब तक आग पूरी तरह से बुझ नहीं जाती.’

वालपोई पुलिस स्टेशन के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि जंगल में आग लगाने के लिए अब तक गिरफ्तार किया गया एकमात्र व्यक्ति एकनाथ सावंत, कथित रूप से अपने बाग में आग लगाने की कोशिश कर रहा था.

अधिकारी ने कहा, “जब उन्होंने महसूस किया कि आग काबू से बाहर हो रही है, तो ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने वन अधिकारियों को इसके बारे में सूचित किया और उन्होंने 12 मार्च को उनके खिलाफ शिकायत दर्ज की.”

उन्होंने कहा, “पिछले कुछ दिनों में यहां हवा बहुत तेज़ थी. यह आग फैलने का एक कारण हो सकता है.”

सावंत पर भारतीय दंड संहिता की धारा 435 के तहत मामला दर्ज किया गया है, जो आग या किसी विस्फोटक पदार्थ से शरारत करने से संबंधित है या यह जानते हुए कि इससे संपत्ति को नुकसान होगा. उसके खिलाफ वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा 30 के तहत भी मामला दर्ज किया गया है, जो एक अभयारण्य में आग लगाने से संबंधित है.

सत्तारी में जोनल कृषि कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, जंगल की आग के कारण काजू किसानों की फसल को हुए नुकसान के आधिकारिक तौर पर 12 मामले हैं और जिन्होंने मुआवजे के लिए आवेदन किया है. हालांकि, अनौपचारिक पूछताछ से पता चलता है कि यह संख्या कम से कम 20 के करीब है.

सत्तारी के जोनल कृषि अधिकारी विश्वनाथ गावस, जो खुद तालुका में काजू के बगीचे के मालिक हैं, ने दिप्रिंट को बताया कि अब बहुत कम लोग स्लैश-एंड-बर्न तकनीक का उपयोग करते हैं, उन्हें एक-दूसरे की काजू की संपत्तियों को नुकसान होने का डर है.

गावस ने कहा,“यहां लगभग 70 गांव हैं और हम एक छोटे समुदाय की तरह रहते हैं. यदि संयोग से आग पड़ोस के बाग़ की फ़सल को जला दे तो सब जान जाएंगे कि आग किसने लगाई है. स्थानीय पंचायत उसे जवाबदेह बनाएगी. कोई भी उस सब से नहीं गुजरना चाहता.” गावस ने कहा, “अगर कोई कूड़े को जलाता है तो वह 15 मई के बाद ही करता है जब मौसम थोड़ा ठंडा होता है और बारिश की संभावना अधिक होती है.”

इसके अलावा, उन्होंने कहा, काजू की फसल सत्तारी के किसानों के लिए गर्व की बात है और उनके जीवन का उतार-चढ़ाव काजू से मिलने वाली सालाना आय पर निर्भर करता है.

गावस ने कहा, “अगर फसल अच्छी होती है, तो लोग खुश होते हैं. वे शादियों या परिवार में किसी भी अच्छे अवसर पर खुशी मनाते हैं.” लोग इससे भावनात्मक रूप से जुड़ हैं, और कोई भी जानबूझकर इस भावना को आहत नहीं करेगा.”

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ेंः अजीत पवार और सुप्रिया सुले के बाद NCP को राज्य प्रमुख जयंत पाटिल के रूप में एक और पावर सेंटर मिला


 

share & View comments