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गुरूवार, 19 जून, 2025
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नकदी विवाद: जांच समिति के समक्ष न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने आरोपों से इनकार किया

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नयी दिल्ली, 19 जून (भाषा) राष्ट्रीय राजधानी स्थित अपने तत्कालीन आधिकारिक आवास के भंडार कक्ष से बड़ी मात्रा में जले नोट बरामद किये जाने के मामले में आरोपी न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने अपनी संलिप्तता से इनकार किया है।

दिल्ली उच्च न्यायालय के तत्कालीन न्यायाधीश यशवंत वर्मा के 30 तुगलक क्रीसेंट स्थित आधिकारिक आवास पर 14 मार्च की रात को आग लग गई थी और उसके भंडार कक्ष से जले नोट बरामद हुए थे।

इस अजीबोगरीब घटना की जांच के लिए नियुक्त तीन-सदस्यीय समिति ने निष्कर्ष निकाला कि न्यायमूर्ति वर्मा और उनके परिवार के सदस्यों का भंडार कक्ष पर ‘नियंत्रण’ था, जिससे उनका कदाचार इतना गंभीर साबित हुआ है कि उन्हें हटाया जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति वर्मा ने समिति के समक्ष कहा कि विचाराधीन भंडार कक्ष उनके रिहायशी क्वार्टर का हिस्सा नहीं था, बल्कि एक अप्रयुक्त भंडारण स्थान था, जिसका इस्तेमाल नियमित रूप से कर्मचारियों और अन्य लोगों द्वारा किया जाता था।

समिति ने न्यायमूर्ति वर्मा के जवाब का हवाला देते हुए कहा, ‘‘न्यायमूर्ति वर्मा ने हमारे समक्ष अपने स्पष्टीकरण में इस तथ्य पर भरोसा जताया कि भंडार कक्ष के प्रवेश द्वार पर सीसीटीवी कैमरों द्वारा लगातार निगरानी की जाती थी और यह सुरक्षाकर्मियों के नियंत्रण में था, और यह असंभव है कि भंडार कक्ष में नकदी रखी गई थी।’’

न्यायमूर्ति वर्मा ने सफाई दी कि कमरे का उपयोग अप्रयुक्त फर्नीचर, बोतलें, कालीन और लोक निर्माण विभाग की सामग्री सहित विविध वस्तुओं को संग्रहीत करने के लिए किया जाता था और इस आवासीय परिसंपत्ति के सामने और पीछे के दोनों प्रवेश द्वारों से पहुंचा जा सकता था, जिससे बाहरी लोगों का वहां तक पहुंच पाना आसान था।

न्यायमूर्ति वर्मा ने कहा कि यह उनकी गलती नहीं थी कि कैमरे काम नहीं कर रहे थे और सीसीटीवी हार्डवेयर को पुनः प्राप्त करने के तरीके पर सवाल उठाया।

हालांकि समिति ने उनकी सफाई को खारिज कर दिया और कोई उचित बचाव नहीं पाया।

न्यायमूर्ति वर्मा ने आगे कहा कि आग लगने के समय वह दिल्ली में नहीं थे और सरकारी आवास में केवल उनकी बेटी और बुजुर्ग मां ही मौजूद थीं।

उन्होंने कहा कि आग लगने की सूचना उनकी बेटी और उनके निजी सचिव ने दी थी और बाद में अग्निशमनकर्मियों के चले जाने के बाद परिवार और कर्मचारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया।

उनके बयान के अनुसार, घटना के दौरान या बाद में उनके घर के किसी भी सदस्य ने नकदी की बोरी नहीं देखी या उन्हें दिखाई नहीं दी।

न्यायाधीश ने कहा कि किसी के लिए भी ऐसे कमरे में नकदी रखना असंभव है, जो खुले तौर पर सुलभ हो और मुख्य घर से अलग-थलग हो।

पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश शील नागू की अध्यक्षता वाली समिति में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जी एस संधावालिया और कर्नाटक उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति अनु शिवरामन शामिल थे। समिति ने न्यायमूर्ति वर्मा द्वारा अपने बचाव में दी गयी दलीलों को खारिज कर दिया और कहा कि न्यायमूर्ति वर्मा के पास सीसीटीवी डेटा को सील करने से पहले उसे सुरक्षित करने या उसकी जांच करने के लिए पर्याप्त समय था।

भाषा सुरेश अविनाश

अविनाश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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