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Sunday, 22 December, 2024
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पुलवामा: नागरिक वाहन होने की वजह से नहीं हुई थी, आतंकी हमले में उपयोग कार

जब से आतंकी हमला हुआ है, इस बात पर सवाल उठने लगे हैं कि विस्फोटक से भरे वाहन इतने सुरक्षित क्षेत्र में कैसे प्रवेश कर सकते हैं.

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श्रीनगर: 14 फरवरी को विस्फोटकों से लदा वाहन जो केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के 40 जवानों के काफिले में घुसा था, विस्फोटक से भड़ी कार सीआरपीएफ की टुकड़ी पर फिदायीन हमला करने वाली है बीएसएफ ने इस खतरे का आकलन नहीं किया था.

सीआरपीएफ में संचालन के आईजीपी जुल्फिकार हसन, ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमारे खतरे का आकलन मुख्य रूप से इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईडी), ग्रेनेड हमलों और स्टैंड-ऑफ फायर था. 14 फरवरी को सड़क मार्ग पर आवगमन रोके नहीं जाने से 22 से अधिक कंपनियों यानी 2200 लोग इस काफिले में शामिल थे.’

एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया है कि ‘उन्होंने आईईडी, ग्रेनेड और आगजनी जैसी स्थिति से निपटने के लिए सभी राजमार्गों की जांच की थी. लेकिन विस्फोटक से भरा एक नागरिक वाहन जांच का हिस्सा नहीं था.’

जब से टुकड़ी पर फिदायीन हमला हुआ है, इस बात पर सवाल उठने लगे हैं कि विस्फोटक से भरा वाहन इतने सुरक्षित क्षेत्र में कैसे प्रवेश कर सकता है.

एक काफिले की ड्रिल से पहले की सामान्य कवायद में एनएच -44 पर 2,200 लोगों की 22 कंपनियों को तैनात करना शामिल है, जो जवाहर सुरंग से श्रीनगर तक सड़क को सुरक्षित करती है.

सीआरपीएफ, जो देश का सबसे बड़ा अर्धसैनिक बल है, सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) और भारतीय सेना के साथ मिलकर भारतीय सड़कों को दुरुस्त रखता है.

प्रतिबंध हटा लिया गया था

हसन ने कहा कि काफ़िले की ड्रिल के दौरान, नागरिक यातायात को राजमार्ग पर चालू रखने की अनुमति नहीं थी. लेकिन काफ़िले की आवाजाही के दौरान नागरिकों द्वारा उनके वाहन रोकने पर शिकायतें की गईं, जिसके कारण उनको अनावश्यक देरी और कठिनाई झेलनी पड़ती था.

आईजीपी (ऑपरेशंस) ने कहा, ‘इसलिए पिछले कुछ वर्षों से प्रतिबंध हटा लिया गया था और नागरिकों के वाहनों की आवाजाही काफिले की ड्रिल के दौरान भी चालू था.’

‘काफिले की आवाजाही के दौरान राजमार्ग पर चलने वाले प्रत्येक नागरिक वाहन की जांच करना संभव नहीं है.’

पुलवामा हमले के बाद, नागरिक यातायात पर लगाया गया पुराना प्रतिबंध एकबार फिर से लागू कर दिया गया है.

हसन ने कहा, ‘अब भविष्य में भी ऐसा और हमला हो सकता है, इसलिए हमने नागरिक वाहनों को अपनी सुरक्षा और नागरिकों की सुविधा के अनुसार उन्हें कुछ समय के लिए रोकना शुरू कर दिया है.’

वर्तमान में, कश्मीर में 60,000 से अधिक सीआरपीएफ जवान तैनात हैं.

चुनाव के लिए तैनाती बढ़ाई

हसन ने कहा कि सरकार युद्ध जैसे बनते हालात के बीच अधिक बलों की तैनाती करने की धारणा के विपरीत, जिसमें सीआरपीएफ, बीएसएफ, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) और सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) शामिल थे, अर्धसैनिक बलों की तैनाती आगामी चुनावों में राज्य को सुरक्षित करने के लिए की जा रही है.

हसन ने कहा, ‘मौजूदा सुरक्षा बलों के साथ हम चुनाव नहीं करा सकते. जम्मू और कश्मीर जैसे संवेदनशील राज्यों में, और वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित राज्यों में, आपको योजनाबद्ध तरीके से और समय रहते काम करना होगा.’

सीआरपीएफ ने अनंतनाग और श्रीनगर संसदीय सीटों के लिए 2017 के उपचुनावों से सबक लिया, जहां चुनाव को सुरक्षित करने के लिए 100 अर्धसैनिक बलों को तैनात किया गया था.

हसन के अनुसार, ‘भूस्खलन के बाद राजमार्ग बंद होने के कारण केवल आधे लोग ही मतदान में हिस्सा ले सके. 2017 की इस घटना से सबक लेते हुए, हमने महसूस किया कि ठंड में जब सड़कें ब्लाक हो जाती है तो उस समय एयरलिफटिंग करना आसान होता है.’

सीआरपीएफ के एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि रोजाना पांच से 10 कंपनियां श्रीनगर में तैनात की जा रही हैं.

सरकार ने पिछले हफ्ते राज्य में सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी और एसएसबी सहित अर्धसैनिक बलों की 100 कंपनियां तैनात कीं.

हसन ने कहा कि कश्मीर में, दिक्कतें बहुत हैं.

सीआरपीएफ आईजीपी (संचालन) ने कहा, ‘उदाहरण के लिए, आज बर्फबारी के कारण एनएच44 पर आवागमन बंद हो गया. जब तक मार्ग साफ़ नहीं हो जाता, तब तक सड़क पर आवागमन नहीं हो सकता. हमें इन सब की तैयारी पहले से कर लेनी चाहिए.’

सीआरपीएफ टीम का मनोबल ऊंचा है

हालांकि 14 फरवरी के हमले के तुरंत बाद, लोग परेशान थे क्योंकि उनके कई साथी मारे गए थे, उसी दिन सीआरपीएफ के जवान वापस ड्यूटी पर थे.

हसन ने बताया, ‘वे उसी दिन वापस नौकरी पर थे. किसी ने एक दिन की छुट्टी नहीं ली. वो उस समय की स्थिति से भलीभांति परिचित थे.’

‘हमने अपने लोगों का उत्साहवर्धन करने के लिए भी उनसे बातचीत कर रहे हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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