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Wednesday, 20 November, 2024
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रोटी चावल के लिए अपना सिर नहीं झुका सकता: जस्टिस कुरियन जोसेफ

सेवानिवृत्त होने के एक दिन बाद जस्टिस कुरियन जोसेफ ने दिप्रिंट से अपने सरकारी पद लेने से इनकार करने के फैसले के बारे में बताया.

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नई दिल्ली: पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त हुए जस्टिस कुरियन जोसेफ ने 12 जनवरी की प्रेस कॉन्फ्रेंस में भाग लेने के अपने फैसले का बचाव किया, जिसमें भारतीय इतिहास के सबसे बड़े न्यायिक संकट को उजागर किया गया था.

सेवानिवृत्त होने के एक दिन बाद उन्होंने दिप्रिंट से साक्षात्कार में कहा तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) दीपक मिश्रा पर गंभीर मुद्दों को हल करने के दबाव के लिए न्यायालय की पूर्ण बैठक आयोजित करने के सभी प्रयास विफल रहे.

अभूतपूर्व प्रेस कॉन्फ्रेंस जिसमें जस्टिस जोसेफ, जस्टिस रंजन गोगोई (चीफ जस्टिस), जस्टिस (रि.) जे चेलमेश्वर और जस्टिस मदन बी लोकुर के साथ तत्कालीन चीफ जस्टिस मिश्रा के अधीन न्यायपालिका के कामकाज और आजादी के बारे में सवाल उठाए गए थे. इसकी कुछ लोगों के द्वारा प्रशंसा की गयी और कुछ के द्वारा आलोचना की गयी थी.

सबसे बड़ी चिंता यह थी कि संवेदनशील मामलों के अनियमित वितरण का हवाला दिया गया था. विशेष रूप से ट्रायल कोर्ट के जज बीएच लोया की मौत की जांच. जस्टिस लोया सोहराबुद्दीन शेख की कथित फर्जी मुठभेड़ के केस को देख रहे थे.

तत्कालीन परिणाम में जस्टिस जोसेफ ने दिप्रिंट से कहा कि कई जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में भाग लेने के लिए हमसे संपर्क किया था.

जस्टिस जोसेफ ने अपने आधिकारिक निवास में बातचीत करते हुए बताया कि ‘यह भी एक प्रतिक्रिया थी.’ हालांकि, इसका दूसरा पहलू भी है, जहां पर (शीर्ष अदालत के) न्यायाधीशों ने कहा कि आपने हमें यह नहीं बताया कि न्यायिक प्रणाली में चीजें अच्छी नहीं चल रही हैं. इस मामले में दोनों तरह की प्रतिक्रियाएं थीं.

जस्टिस जोसेफ ने कहा कि आलोचकों को शायद यह नहीं पता है कि जजों द्वारा पिछले दिनों उनकी समस्याएं बताने के लिए कितनी कोशिशें की गईं.

उन्होंने कहा, ‘हमने संस्थान के भीतर समाधान खोजने की कोशिश की थी लेकिन सभी प्रयास विफल हो गए थे.’ हम बार-बार चिल्लाते रहे लेकिन अंत में हमें सर्वोच्च न्यायालय के हितों की रक्षा के लिए बाहर आकर बोलना पड़ा.’

जब उनसे पूछा गया कि आपने और भी जजों को विश्वास में लिया था. उन्होंने नकारात्मक तरीके से जवाब देते हुए कहा कि ‘हमने किसी से संपर्क नहीं साधा था.’ क्योंकि पहले (समस्याओं का समाधान करने के लिए पूर्ण न्यायालय की बैठक करने) के सभी प्रयास हम चारों के द्वारा ही किये गए थे.

न्यायपालिका में सरकार का हस्तक्षेप

जस्टिस जोसेफ ने कहा, हालांकि वह और उनके तीन सहयोगी न्यायाधीशों ने जिस संकट को हाईलाइट करने की मांग की थी, वह अभी तक पूरी तरह से पारित नहीं हो पाया है. सिस्टम में महत्वपूर्ण बदलाव की जरूरत है.

उन्होंने दिप्रिंट से बातचीत करते हुए यह भी कहा कि ‘सबसे बड़ा परिवर्तन यह है कि अब और अधिक पारदर्शिता है’. एक व्यक्ति के द्वारा निर्णय लेने का विरोध करने के लिए एक प्रणाली शुरू करने का प्रयास किया गया है.’

हालांकि, उन्होंने यह अनुभव किया कि केंद्र न्यायिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता है, लेकिन नियुक्तियों और स्थानांतरण के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता.

उन्होंने कहा, ‘टकराव तब शुरू हुआ था जब केंद्र ने न्यायपालिका की आजादी में हस्तक्षेप करना शुरू किया. यह टकराव पहले नहीं था क्योंकि हस्तक्षेप नहीं था. जिस समय हस्तक्षेप शुरू हुआ, तभी से टकराव की शुरुआत हुई.

कार्यकारी हस्तक्षेप के उदाहरण के रूप में उन्होंने बताया कि सरकार ने कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित न्यायिक नियुक्तियों को क्लियर करने के लिए महीनों तक का समय लिया.

अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट में चार न्यायाधीशों की नियुक्ति का जिक्र करते हुए न्यायमूर्ति जोसेफ ने कहा कि ‘इस आदेश पर 48 घंटे के भीतर ही हस्ताक्षर किए गए थे. उन्होंने यह भी कहा ‘इसका मतलब है यह कि अगर सरकार चाहती है तो सरकार तेजी से इस पर आगे बढ़ सकती है. अगर वे देरी करना चाहते हैं, तो कर सकते हैं.


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सेवानिवृत्त की योजना

जस्टिस जोसेफ शीर्ष अदालत के तीसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश थे. जब वह 29 नवंबर को सेवानिवृत्त हुए तो वह कॉलेजियम के सदस्य थे.

प्रेस कॉन्फ्रेंस के अलावा, उन्होंने सरकार द्वारा दी जाने वाली सेवानिवृत्ति के बाद नियुक्ति लेने की संभावना को खारिज करने संबंधी अपने बयान से सुर्खियां बटोरी थीं. उनके इस बयान की खासी चर्चा इसलिए भी हुई क्योंकि यह चलन है कि रिटायर होने के बाद जजों को सरकार अर्ध न्यायिक पदों नियुक्ति देती है. इसे पद पर रहते हुए जजों की निष्पक्षता में बाधा के तौर पर देखा जाता है.

इस तरह के किसी भी प्रस्ताव से दूर रहने के अपने फैसले के बारे में बात करते हुए जस्टिस जोसेफ ने बताया कि ‘सरकार ने एक तरफ सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को ट्रिब्यूनल और अर्धन्यायिक निकायों का नेतृत्व करने के क़ानून की इजाजत दी. जबकि दूसरी तरफ ‘केंद्र न्यायाधीशों को अपमानित कर रहा है.’

उन्होंने यह भी कहा कि मेरे कहने का ये मतलब नहीं है कि जिन भी जजों की नियुक्ति (सरकार के द्वारा) ट्रिब्यूनल में हुई है वे सरकार के पास खाली कटोरा लेकर गए होंगे.

उन्होंने कहा ‘संवैधानिक पद पर रहते हुए मैंने अपना सिर नहीं झुकने दिया. किसी को भी रोटी-चावल के लिए सिर नहीं झुकाना चाहिए.’


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गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के लॉन में अपने विदाई समारोह में बोलते हुए न्यायाधीश जोसेफ ने खुलासा किया था कि वे दिल्ली में ही रहना जारी रखेंगे और अदालत द्वारा नियुक्त पैनलों के लिए ‘मध्यस्थता’ पर अपनी प्रतिभा का उपयोग करेंगे.

इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

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