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Wednesday, 27 March, 2024
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चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई ने खुद से दिया अपनी संपत्ति का ब्यौरा

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जिन 14 सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने अपनी संपत्ति घोषित नहीं की है उनमे से दो भारत के मुख्य न्यायाधीश बनेंगे.

नई दिल्ली: भारत के नये मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के पास कार, फ्लैट, बिल्डिंग नहीं है, न ही उनके नाम पर कोई ऋण है.

मुख्य न्यायधीश के रूप में पदभार संभालने से पहले, इस साल की शुरुआत में, गोगोई ने गुवाहाटी में अपनी संपत्ति का ब्यौरा अपडेट करवाया जो उन्होंने 2012 में खरीदी थी. इसकी कीमत 65 लाख रुपये थी और जिसपर एक प्रतिशत कर की कटौती की गई थी.

सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर जून 2012 तक घोषित संपत्ति के मुताबिक, गोगोई के पास शादी से अब तक 150 तोला आभूषण और 1.6 लाख रुपये के आभूषण, बच्चों की शादी के लिए ख़रीदे कुछ फिक्स्ड डिपोज़िट और म्यूचुअल फंड थे.


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गोगोई 24 में से सुप्रीम कोर्ट के 10 वर्तमान न्यायाधीशों में से हैं, जिन्होंने स्वेच्छा से अपनी संपत्ति जनता के समक्ष घोषित कर दी है. सर्वोच्च न्यायालय में 31 न्यायाधीशों की अनुमोदित संख्या है.

अन्य 14 न्यायाधीशों में – भावी मुख्य न्यायाधीशों यूयू ललित और डीवाई चंद्रचूड़ ने अभी तक अपनी संपत्ति घोषित नहीं की है.

12 अन्य न्यायधीश जिन्होंने अपनी सम्पत्ति घोषित नहीं की है उनमें जस्टिस रोहिंटन नरीमन, एएम सपरे, एल नागेश्वर राव, संजय किशन कौल, एमएम शांतिनगौदर, एस अब्दुल नाज़ीर, नवीन सिन्हा, दीपक गुप्ता, इंदु मल्होत्रा, इंदिरा बनर्जी, केएम जोसफ और विनीत सरन शामिल हैं.

गोगोई के पूर्ववर्ती, दीपक मिश्रा 46 पूर्व न्यायाधीशों में से एक थे जिन्होंने अपनी सम्पत्ति की घोषणा सार्वजनिक की थी.

सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, सभी 10 शीर्ष अदालत के न्यायाधीशों ने अपनी संपत्ति घोषित की है और उनके पास ज़मीन भी है. तीन न्यायाधीश – जस्टिस मदन लोकुर, कुरियन जोसेफ और एके सीकरी – के पास अपनी कारें है, और सभी न्यायाधीशों ने बीमा पॉलिसियों, शेयरों और अन्य म्यूचुअल फंडों के रूप में निवेश किया है.

न्यायाधीशों द्वारा दिए गए ब्योरों में संपत्ति और ऋण या तो उनके नाम, या उनके पत्नियों या आश्रितों के नाम है.

संपत्ति घोषित करने के नियम

संपत्ति घोषित करने का नियम ने 1997 में पहली बार पूर्ण न्यायालय प्रस्ताव से अपना अधिकार प्राप्त किया, और इसकी तस्दीक 2009 में फिर से की गयी.

7 मई 1997 को पूर्ण न्यायालय की बैठक के दौरान, मुख्य न्यायाधीश ने सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधिशों की सम्पत्ति का खुलासा करने का आदेश दिया.

बैठक में, अदालत ने संकल्प किया कि प्रत्येक न्यायाधीश को कार्यालय संभालने के उचित समय के भीतर अपनी संपत्ति, अचल संपत्ति या निवेश की घोषणा करनी चाहिए. वर्तमान न्यायाधीशों को भी स्वीकृत प्रस्ताव के लागू होने के उचित समय के भीतर ही अपनी संपत्ति का ब्योरा दे देना चाहिए और जब भी वे कोई बड़ी खरीद करते हैं तो उसकी सूचनी भी देनी चाहिए.

मुख्य न्यायाधीश ने साथ ही ये भी आदेश दिया कि ये ब्यौरा रिकॉड में भी दर्ज किया जाए.

न्यायाधीशों या मुख्य न्यायाधीश द्वारा की गई घोषणा गोपनीय थी.

2007 में वकील सुभाष चंद्र अग्रवाल ने सुप्रीम कोर्ट में आरटीआई दायर की थी. उन्होंने पूछा था कि कौन से न्यायाधीशों ने अपनी संपत्ति घोषित की है. शीर्ष अदालत ने अग्रवाल के अनुरोध को खारिज कर दिया.

मामला अंततः दिल्ली उच्च न्यायालय पहुंचा, जो अग्रवाल के पक्ष में आया.

उस समय आलोचना का जवाब देते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने पूर्ण अदालत की बैठक में सार्वजनिक रूप से अपनी संपत्ति घोषित करने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया.

केजी. बालकृष्णन उस समय भारत के मुख्य न्यायाधीश थे. वह अपनी संपत्ति घोषित करने वाले पहले मुख्य न्यायधीश थे.

2009 में न्यायालय के प्रस्ताव के बाद, केरल उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सार्वजनिक रूप से अपनी संपत्ति घोषित करने वाले पहले व्यक्ति थे. दिल्ली, बॉम्बे, पंजाब और हरियाणा के और मद्रास हाई कोर्ट्स के न्यायधीश जल्द ही बाद में साथ आये.

हालांकि, संपत्ति घोषित करने के नियम उच्च न्यायालयों और अधीनस्थ न्यायपालिकाओं के लिए अलग हैं.

वर्तमान में, ऐसा कोई नियम नहीं हैं जो सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को उनकी संपत्ति घोषित करने के लिए मजबूर करें. जब उन्हें बार के लिए पदोन्नत किया गया था तब न्यायाधीशों ने अपनी संपत्तियों को जनता के सामने घोषित कर दिया था.उसके बाद ब्योरें को अपडेट किया गया जब किसी की संपत्ति में कोई बदलाव आया हो.

केवल खानापूर्ति

दिप्रिंट से बात करते हुए, एक वरिष्ठ वकील ने कहा कि यह प्रैक्टिस पूरी तरह से दिखावटी है क्योंकि संपत्ति की घोषणा केवल स्वैच्छिक है,अनिवार्य नहीं है.

उन्होंने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “न्यायाधीशों की संपत्ति घोषित करने के पीछे का विचार यह था कि उनकी अखंडता अभियोज्य बनी रहे.

उन्होंने कहा कि संपत्तियों की घोषणा यह साबित करने के लिए थी कि उनकी संपत्तियां असमान रूप से नहीं बदली हैं, जो दर्शाता है कि न्यायाधीश ईमानदार होते हैं.

हालांकि, वकील ने कहा कि जो लोग न्यायाधीश बनने से पहले प्रैक्टिस किया करते थे उनके पास बेंच के उनके सहयोगियों की तुलना में काफी अधिक संपत्तियां थीं.

उन्होंने कहा, “वे अपनी संपत्ति को सार्वजनिक नहीं करना चाहते थे ”

वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि न्यायाधीशों को बेंच पर आने के बाद अपनी संपत्ति घोषित करनी चाहिए.

प्रशांत भूषण ने कहा, “सभी सरकारी कर्मचारियों को अपनी संपत्ति की घोषणा करनी चाहिए ताकि जनता इसकी जांच कर सके. यह जनता को यह देखने की इजाज़त देता है कि संपत्ति में वृद्धि आनुपातिक है या नहीं.

वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने भी कहा कि न्यायाधीश के लिए पारदर्शी और संदेह से परे रहना ज़रूरी है.


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दवे ने कहा कि न्यायाधीशों के लिए सबसे ज़रूरी चीज़ों में से एक है कि अपने करियर की शुरुआत में अपनी संपत्ति घोषित करें और समय-समय पर इसे अपडेट करना जारी रखें. यह सुनिश्चित कराता है कि कोई भी न्यायाधीश की अखंडता पर या उसकी इमानदारी पर सवाल न उठाए

दवे ने कहा, “उच्च न्यायिक कार्यालय में काम करने वाले के लिए ये कदम सरल है और सही भी. और ये सार्वजनिक हित में भी है.”

इस साल की शुरुआत में, जून में सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर की अगुआई वाली एक खंडपीठ ने एक फैसला दिया था कि निर्वाचित चुनाव उम्मीदवार अपने पत्नी/आश्रितों के साथ आय के स्रोत की घोषणा करके चुनाव लड़े. अभी तक, उम्मीदवार नामांकन पत्र दाखिल करते समय ही अपनी संपत्ति घोषित करते थे.

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