नई दिल्ली: चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि बिहार में चल रहे विशेष मतदाता सूची संशोधन अभियान (SIR) के तहत अगर किसी व्यक्ति को वोटर लिस्ट में नाम दर्ज कराने के लिए अयोग्य पाया जाता है, तो उसकी नागरिकता रद्द नहीं की जाएगी.
चुनाव आयोग ने कहा, “अनुच्छेद 326 के तहत किसी को अयोग्य ठहराना उसकी नागरिकता रद्द करने का आधार नहीं बन सकता.”
सुप्रीम कोर्ट में यह मामला कई याचिकाओं के ज़रिए उठाया गया है, जिन्हें तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की सांसद महुआ मोइत्रा, भारत जोड़ो अभियान के संयोजक योगेन्द्र यादव, राजद सांसद मनोज झा और गैर-सरकारी संगठन ADR व PUCL ने दाखिल किया है.
इन याचिकाओं में कहा गया है कि यह संशोधन अभियान मनमाना है और इसकी समय-सीमा और समय-चयन पर भी सवाल उठाए गए हैं, क्योंकि बिहार में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इससे लाखों असली मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से हट सकते हैं, जिससे वे मतदान के अधिकार से वंचित हो जाएंगे.
इससे पहले इसी महीने सुप्रीम कोर्ट ने SIR में सीधे हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था, लेकिन उसने इस प्रक्रिया के समय को लेकर चिंता जताई थी. कोर्ट ने चुनाव आयोग से यह भी कहा था कि आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड जैसे दस्तावेज़ों को सत्यापन के लिए स्वीकार किया जाए.
अब इस मामले की अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी.
चुनाव आयोग ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल करते हुए कहा कि वह आधार नंबर इकट्ठा तो कर रहा है, लेकिन इसका इस्तेमाल सिर्फ पहचान की पुष्टि जैसी सीमित चीजों के लिए किया जाएगा.
ECI ने साफ कहा कि आधार नागरिकता का सबूत नहीं है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि आधार को अन्य दस्तावेज़ों के साथ मिलाकर पात्रता साबित करने में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.
जहां तक राशन कार्ड की बात है, आयोग ने कहा कि नकली राशन कार्डों की बहुतायत के चलते SIR (Special Intensive Revision) प्रक्रिया में इसे स्वीकार्य दस्तावेज़ों की सूची में शामिल नहीं किया गया.
हालांकि, आयोग ने माना कि जो 11 दस्तावेज़ों की सूची दी गई है वो पूरी नहीं है. चुनाव रजिस्ट्रेशन अधिकारी (ERO) या सहायक अधिकारी (AERO) को हर वो दस्तावेज़, जिसमें व्यक्ति अपनी पात्रता साबित कर रहा हो, जैसे राशन कार्ड को ज़रूर परखना होगा और हर मामले को उसके आधार पर तय करना होगा.
वोटर आईडी (EPIC) के बारे में आयोग ने कहा कि भले ही EPIC नंबर फॉर्म में लिखा जा रहा है, लेकिन SIR प्रक्रिया में इसे पात्रता का प्रमाण नहीं माना जा सकता, क्योंकि इस बार मतदाता सूची नए सिरे से तैयार की जा रही है. चूंकि, EPIC कार्ड खुद मतदाता सूची के आधार पर बनते हैं, इसलिए उन्हें पेश करना इस पूरी प्रक्रिया को ही बेकार बना देगा.
आयोग ने कहा कि आधार, वोटर आईडी और राशन कार्ड — इन तीनों दस्तावेजों को पहचान के सीमित उपयोग के लिए देखा जा रहा है, लेकिन इन्हें अकेले इस्तेमाल कर मतदाता पात्रता साबित नहीं की जा सकती (अनुच्छेद 326 के तहत).
इस तरह, चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के उस सुझाव को लगभग ठुकरा दिया है जिसमें कहा गया था कि आधार, वोटर आईडी और राशन कार्ड को मतदाता सूची अपडेट करने के लिए मान्य दस्तावेज़ों के रूप में स्वीकार किया जाए.
हालांकि, कोर्ट ने पिछली सुनवाई में यह भी कहा था कि खुद आयोग की सूची में शामिल कई दस्तावेज भी नागरिकता का प्रमाण नहीं हैं. जस्टिस बागची ने कहा था, “नागरिकता की बात क्यों? सिर्फ पहचान चाहिए. आपने जो दस्तावेज़ गिनाए हैं, वो भी अपने आप में नागरिकता के सबूत नहीं हैं.”
फिर भी, ECI ने कोर्ट को बताया कि मतदाता सूची के फॉर्म में EPIC नंबर लिखा जा सकता है और आधार को वैकल्पिक रूप से दर्ज किया जा सकता है, लेकिन ये तीनों दस्तावेज़ बाकी 11 की तरह प्राथमिकता या मान्यता नहीं रखेंगे और अकेले इनसे किसी का नाम वोटर लिस्ट में नहीं जोड़ा जाएगा.
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‘नागरिकता कानून के आधार पर’
चुनाव आयोग ने अपने हलफनामे में कहा है कि उसे यह जांचने का अधिकार है कि कोई व्यक्ति वोटर लिस्ट में नाम दर्ज कराने के लिए ज़रूरी शर्तें पूरी करता है या नहीं. इसमें नागरिकता की जांच भी शामिल है, जो संविधान के अनुच्छेद 326 के अनुसार ज़रूरी है.
हालांकि, याचिकाकर्ताओं का कहना है कि केवल केंद्र सरकार ही नागरिकता की जांच कर सकती है, लेकिन चुनाव आयोग ने कहा है कि नागरिकता से जुड़ी बातों की जांच अन्य संबंधित संस्थाएं भी कर सकती हैं, खासकर वो संस्थाएं जिन पर संविधान के तहत ऐसा करने की ज़िम्मेदारी है — जैसे कि खुद चुनाव आयोग.
ECI ने कहा, “अगर कोई व्यक्ति जन्म से भारतीय नागरिक होने का दावा करता है, तो चुनाव आयोग उसे ज़रूरी दस्तावेज़ दिखाने को कह सकता है. एक संवैधानिक संस्था होने के नाते, ECI को पूरा अधिकार है यह तय करने का कि कोई व्यक्ति वोटर लिस्ट में शामिल होने के लिए ज़रूरी नागरिकता की शर्त पूरी करता है या नहीं.”
ECI ने यह भी बताया कि नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 3 के आधार पर ही SIR प्रक्रिया में अलग-अलग आयु वर्गों को अलग-अलग श्रेणियों में रखा गया है.
जो लोग 26 जनवरी 1950 से 1 जुलाई 1987 के बीच भारत में जन्मे हैं, वे भारतीय नागरिक माने जाएंगे. जो लोग 1 जुलाई 1987 से नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2003 के लागू होने तक पैदा हुए हैं और जिनमें से कम से कम एक माता-पिता भारतीय नागरिक हैं, वे भी नागरिक माने जाएंगे.
2 दिसंबर 2004 के बाद जन्मे लोग तभी नागरिक माने जाएंगे जब दोनों माता-पिता भारतीय नागरिक हों, या एक भारतीय नागरिक हो और दूसरा अवैध प्रवासी न हो.
ECI ने कहा है कि जिन लोगों के नाम 2003 की मतदाता सूची में पहले से दर्ज हैं, उन्हें कोई अतिरिक्त दस्तावेज़ नहीं देना होगा. वे बस उस सूची की प्रति अपने फॉर्म के साथ लगा सकते हैं.
बाकी लोगों को, जिनका नाम 2003 की लिस्ट में नहीं है, उन्हें इस तरह दस्तावेज़ देने होंगे, 1 जुलाई 1987 से पहले जन्मे लोग — अपने लिए एक पहचान संबंधी दस्तावेज़ देना होगा. 1 जुलाई 1987 से 2 दिसंबर 2004 के बीच जन्मे — अपने लिए और किसी एक माता-पिता के लिए दस्तावेज़ देना होगा. 2 दिसंबर 2004 के बाद जन्मे — अपने लिए और दोनों माता-पिता के दस्तावेज़ देना ज़रूरी होगा.
‘दस्तावेज़ बिहार की आबादी को कवर करते हैं’
सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ताओं ने चुनाव आयोग द्वारा SIR (Special Intensive Revision) प्रक्रिया के लिए सुझाए गए 11 दस्तावेज़ों को लेकर कई चिंताएं उठाई हैं.
उदाहरण के तौर पर, प्रोफेसर मनोज कुमार झा की याचिका में कई सरकारी सर्वे और आंकड़ों का हवाला दिया गया है, जिससे यह बताया गया है कि बिहार की आबादी का बहुत ही छोटा हिस्सा ही इन दस्तावेज़ों को रखता है — जैसे कि जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट, स्थायी निवास प्रमाण पत्र और सरकारी कर्मचारियों को जारी पहचान/पेंशन भुगतान आदेश. याचिका में यह भी कहा गया है कि इस सूची के दो दस्तावेज़ — NRC और परिवार रजिस्टर — बिहार राज्य पर लागू ही नहीं होते.
लेकिन ECI ने इन आरोपों को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट से कहा कि उसने जो 11 दस्तावेज़ों की सूची दी है, वह बिहार की बड़ी आबादी को कवर करती है.
ECI ने कहा, “इन 11 श्रेणियों के तहत अब तक बिहार में जितने दस्तावेज़ जारी हुए हैं, उनका मोटे तौर पर अनुमान लगाया जाए तो यह संख्या राज्य में संभावित मतदाताओं की कुल संख्या (करीब 7.90 करोड़) से तीन गुना ज़्यादा है.”
ECI ने यह भी समझाया कि अगर किसी व्यक्ति ने ज़रूरी दस्तावेज़ नहीं दिए हैं या मतदाता अधिकारी (ERO) को किसी की पात्रता पर संदेह है, तो ERO खुद से जांच शुरू कर सकता है. उसे उस व्यक्ति को नोटिस भेजना होगा कि क्यों उसका नाम वोटर लिस्ट से हटाया न जाए.
इसके बाद ERO दस्तावेज़ों, फील्ड जांच या अन्य माध्यमों के आधार पर तय करेगा कि उस व्यक्ति का नाम फाइनल लिस्ट में शामिल किया जाए या नहीं. ऐसे मामलों में ERO को लिखित आदेश देना होगा, जिसे बाद में चुनाव कानूनों और 1960 के मतदाता पंजीकरण नियमों के तहत चुनौती दी जा सकती है.
याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा है कि 2025 की वोटर लिस्ट में जिन लोगों के नाम पहले से हैं, उन्हें पहले से ही सत्यापित माना जाए और उनके खिलाफ दोबारा कोई जांच नहीं की जा सकती. ECI को यह अधिकार नहीं है कि वह मौजूदा मतदाताओं से नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेज़ मांगे.
इस पर ECI ने कहा कि यह दलील गलत, कानून के खिलाफ और पूरी तरह से अव्यवहारिक है.
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राजनीतिक दल दे रहे हैं ECI को सहयोग
चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि यह पहली बार है जब सभी राजनीतिक दल इतने बड़े स्तर पर मतदाता सूची के विशेष संशोधन अभियान (SIR) में सक्रिय रूप से शामिल हुए हैं.
ECI के अनुसार, सभी राजनीतिक दलों ने मिलकर 1.5 लाख से ज़्यादा बूथ स्तर एजेंट (BLA) नियुक्त किए हैं, जो बूथ स्तर अधिकारियों (BLO) के साथ मिलकर पात्र मतदाताओं तक पहुँचने का काम कर रहे हैं.
ECI द्वारा साझा की गई पार्टीवार सूची के अनुसार: BJP ने सबसे ज़्यादा 52,698 BLAs नियुक्त किए हैं, RJD ने 47,506, JDU ने 35,799 और कांग्रेस ने 16,676 BLAs तैनात किए हैं. वहीं आम आदमी पार्टी का सिर्फ 1 BLA मैदान में मौजूद है. ECI ने अदालत को बताया कि राजनीतिक दलों को उन मतदाताओं की सूची दी गई है, जिनके नामांकन फॉर्म नहीं मिले हैं, ताकि उनके BLAs ऐसे मतदाताओं को ढूंढ सकें और उनके फॉर्म भरवाकर सुनिश्चित कर सकें कि कोई भी छूटे नहीं.
ECI ने यह भी बताया कि याचिका दाखिल करने वालों में से कुछ लोग मान्यता प्राप्त दलों के सांसद और विधायक हैं, और उनके दल SIR प्रक्रिया में सक्रिय रूप से BLAs के ज़रिए मदद कर रहे हैं.
ECI ने आरोप लगाया कि “कुछ याचिकाकर्ता एक तरफ इस प्रक्रिया में भाग ले रहे हैं और दूसरी तरफ कोर्ट में इसकी पारदर्शिता पर सवाल उठा रहे हैं. ये तथ्य याचिकाकर्ताओं को पहले से पता थे, लेकिन इन्होंने जानबूझकर कोर्ट में इनका ज़िक्र नहीं किया.”
‘भ्रामक बातें फैलाई गईं’
चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में आपत्ति जताई कि याचिकाओं में जो बातें कही गई हैं, वो अखबारों में छपे लेखों और कॉलम्स पर आधारित हैं और ज़्यादातर लेख खुद याचिकाकर्ताओं द्वारा ही लिखे गए हैं. ईसीआई ने कहा कि ये लेख “भ्रामक जानकारियों से भरे हुए हैं और जानबूझकर SIR प्रक्रिया को गलत तरीके से पेश करने और आयोग की छवि को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की गई है.”
ECI का कहना है कि “इन अखबारों के लेखों के आधार पर यह धारणा बनाना कि लोगों को जानबूझकर वोटर लिस्ट से बाहर किया जा रहा है — ये पूरी तरह खारिज किया जाना चाहिए.”
आयोग ने अपनी प्रतिक्रिया में यह भी कहा कि ये याचिकाएं जल्दबाज़ी में दायर की गई हैं, क्योंकि “चुनाव आयोग को पूरी संवैधानिक और कानूनी अनुमति है कि वह वोटर लिस्ट का विशेष संशोधन (SIR) कर सके.”
ECI ने ज़ोर देकर कहा कि “यह प्रक्रिया बाहर करने वाली नहीं, बल्कि जोड़ने वाली (inclusionary) है और हर संभव कोशिश की जा रही है कि कोई भी पात्र मतदाता वोटर लिस्ट से बाहर न रहे.”
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