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Sunday, 22 December, 2024
होमदेश‘ज्यादा पढ़-लिख नहीं सकते, इसलिए सेना की नौकरी की जरूरत’- आगरा में अग्निपथ के विरोध के पीछे क्या है असली वजह

‘ज्यादा पढ़-लिख नहीं सकते, इसलिए सेना की नौकरी की जरूरत’- आगरा में अग्निपथ के विरोध के पीछे क्या है असली वजह

जाट बहुल चहरबत्ती, जहां सेना में जाना एक परंपरा की तरह है, के तमाम लोग कहते हैं कि वे उन अनिश्चितताओं का सामना करने को तैयार नहीं हैं जो चार साल बाद सशस्त्र बलों से बाहर निकलने पर मुंह बाए उनका इंतजार कर रही होंगी.

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आगरा: उत्तर प्रदेश के सकटपुर गांव निवासी 23 वर्षीय गजेंद्र का कहना है, ‘जो नहीं पढ़ाता है, वो आर्मी के लिए ट्राई करता है. अगर पढ़ लें तो ऑफिसर न बन जाए?’

सकटपुर उन 422 गांवों में से एक है जो आगरा के चहरबत्ती क्षेत्र में आते हैं. जाट-बहुल इस बेल्ट में लगभग हर युवा सरकारी नौकरी, खासकर सशस्त्र बलों, के लिए जी-तोड़ कोशिश करता है क्योंकि उनके लिए एक जवान बनने का मतलब है सुरक्षित नौकरी, पेंशन, दहेज और सामाजिक रुतबा. यही वजह है कि यहां सेना की नई भर्ती योजना अग्निपथ को लेकर यहां खासा असंतोष है.

अधिकांश युवा मानते हैं कि 10वीं कक्षा पास प्रमाणपत्र वाला कोई भी व्यक्ति बतौर सामान्य जवान सेना में शामिल होने के लिए अपनी किस्मत आजमा सकता है. जाहिर तौर पर इसका मतलब है कि कक्षा 12 या जिसे इंटरमीडिएट भी कहते हैं, के साथ-साथ ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई इन युवाओं के लिए बेमानी है.

जैसा कि चहरबत्ती के ग्रामीणों का कहना है, हायर स्टडी तो ‘पढ़ने वालों’ के लिए है, जो या तो राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) और संयुक्त रक्षा सेवा (सीडीएस) परीक्षाओं में बैठने के लिए कोचिंग लेते हैं या फिर शिक्षण और सिविल सेवा जैसा अन्य पेशे अपनाने के इच्छुक होते हैं.

छात्रों को रक्षा बलों और एसएससी सीजीएल के लिए फिजिकल फिटनेस परीक्षा के लिए ट्रेंड करने वाले निरंजन चाहर कहते हैं, ‘ज्यादातर जाट परिवार अपने बच्चों को रक्षा बलों में भेजना पसंद करते हैं. सेना पहली प्राथमिकता है, फिर भारतीय वायु सेना, उत्तर प्रदेश पुलिस और नौसेना, सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ), सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी), आदि का नंबर आता है. पढ़ाकू लोग एनडीए, सीडीएस, एसएससी सीजीएल (केंद्रीय सरकारी नौकरियों के लिए स्टाफ सेलेक्शन कमीशन कंबाइंड ग्रेजुएट लेवल एग्जाम) आदि का विकल्प चुनते हैं. इस क्षेत्र ने तमाम आईएएस और आईपीएस अधिकारी भी तैयार किए हैं.’

उन्होंने बताया कि चहरबत्ती क्षेत्र रक्षा कर्मियों का गढ़ है.

भारत के इंटरनेशनल क्रिकेटर दीपक चाहर की जन्मभूमि होने के अलावा चहरबत्ती क्षेत्र बीएसएफ के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक शैतान सिंह चाहर जैसी जानी-मानी हस्तियों का भी घर है, जिन्होंने टेकनपुर में बीएसएफ अकादमी के प्रमुख के तौर पर कार्य किया. निरंजन के मुताबिक, ‘हाल में, चहरबत्ती ने बहुत सारे आईपीएस और आईएएस अधिकारी भी दिए हैं.’

क्षेत्र के दौरे से एक बात साफ नजर आती है कि सेना में अधिकारी बनने के इच्छुक लोगों की बजाए ऐसी युवाओं की तादात काफी ज्यादा है जो एक सैनिक (जनरल ड्यूटी) जैसी निचली रैंक के पदों पर भर्ती के आकांक्षी हैं. नौवीं और दसवीं कक्षा में पहुंचने के तुरंत बाद सैकड़ों युवा रक्षा बलों में शामिल होने के लिए फिजिकल फिटनेस टेस्ट की तैयारी शुरू कर देते हैं और इनमें से अधिकांश यह सारी तैयारी सेना के लिए करते हैं.

युवाओं का मन टटोलें तो पता चलता है कि अग्निपथ योजना के विरोध का सबसे बड़ा कारण यह है कि अग्निवीरों को चार साल की सेवा अवधि के बाद एक बार फिर परीक्षा से गुजरना पड़ सकता क्योंकि अगर उन्हें नियमित कैडर के तौर पर नौकरी न मिल पाई तो फिर आगे पढ़ाई करने का रास्ता अपनाना होगा.

सशस्त्र बलों में भर्ती के लिए इस साल शुरू की जा रही अग्निपथ योजना के तहत सभी नए सैनिकों की भर्ती चार साल के लिए होगी और इस अवधि के बाद उनमें से केवल 25 प्रतिशत को कैरियर सर्विसमैन के तौर पर बहाल रखा जाएगा. चार साल बाद हटाए जाने वाले अग्निवीरों के अनिश्चित भविष्य को लेकर इस योजना की आलोचना के साथ-साथ इसके खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन भी हुआ.

हालांकि कुछ वर्गों में यह कहते हुए इस योजना की प्रशंसा भी की गई कि कैसे इससे सशस्त्र बलों में एज प्रोफाइल कम हो जाएगा. लेकिन तमाम पूर्व सैनिक ने अन्य कारणों के अलावा सेना को रोजगार सृजन का माध्यम बनाने के लिए भी इसकी आलोचना की है. हालांकि, विरोध करने वाले युवा इसे रोजगार सृजन के साधन के बजाए नौकरी के लिए एक खतरा मानते हैं.


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सेना में जाना एक गौरवशाली परंपरा

चहरबत्ती क्षेत्र के मनकेंडा गांव निवासी एक युवा अनिल का कहना है, ‘देशभक्ति तो जाटों के खून में दौड़ती है. परिवार के किसी एक सदस्य के सेना में होने को ‘शान’ की बात माना जाता है.’

परंपरागत तौर पर कृषि समुदाय से आने वाले जाटों को अंग्रेज भी अपनी सेना के लिए बहुत उपयुक्त मानते थे और ब्रिटिश भारतीय सेना में बड़ी संख्या में जाटों ने अपनी सेवाएं दी हैं. पश्चिमी और पूर्वी उत्तर प्रदेश के साथ-साथ उत्तर भारत के अन्य विभिन्न हिस्सों में बसे जाट समुदाय के लिए सशस्त्र बलों, खासकर सेना में शामिल होना आज भी एक गौरवशाली परंपरा का हिस्सा है.

निरंजन कहते हैं, ‘यह एक परंपरा है कि हर परिवार से एक बच्चा सेना में होना चाहिए. यह कुछ इस तरह है कि अगर किसी पड़ोसी का बच्चा चुन लिया जाता है तो माता-पिता अपने बेटों से कहने लगते हैं वह भी सेना में चुने जाने की पूरी कोशिश करें. जो बुद्धिमान होते हैं वे तो पढ़ाई का विकल्प चुनते हैं. लेकिन, हर घर से एक बच्चे को सेना में जाना होता है. गांवों में लोग सोचते हैं कि पहले नौकरी होनी चाहिए…दसवीं-बारहवी करने के बाद, सिर्फ आर्मी है और कोई नौकरी नहीं है.’

चहरबत्ती के अधिकांश युवा और बुजुर्ग दोनों ही इसी तरह की राय रखते हैं, जहां स्थानीय लोग पड़ोस के मालपुरा गांव के ड्रॉप जोन में सेना के पैराट्रूपर्स को नियमित तौर पर उतरते देखते आ रहे हैं.

पिछले दो साल से महामारी की वजह से सेना भर्ती पर रोक के कारण आयुसीमा पार कर गए 23 वर्षीय दीपेश का कहना है कि वह और उसके दोस्त जब बच्चे थे तभी पैराट्रूपर्स को ड्रॉप जोन में उतरते देख रहे हैं. जब हम उन्हें देखते हैं तो हमें लगता है कि हमें भी उनका हिस्सा बनना चाहिए. जब भर्ती शुरू होती है तो लगभग 500 युवा मैदान में पहुंच जाते हैं.’

चहरबत्ती के किरौली इलाके में रहने वाले सकटपुर गांव निवासी 24 वर्षीय राहुल कुमार का कहना है, ‘जहां कुछ युवा ‘शारीरिक क्षमता’ में आगे रहते हैं वहीं कुछ अन्य लिखित परीक्षा की तैयारी में उत्कृष्टता साबित करते हैं. शारीरिक तौर पर फिट युवा फिटनेस टेस्ट आसानी से पास कर सकते हैं और बाकी सेना के अन्य वर्गों जैसे सैनिक (ट्रेड्समैन), सैनिक (तकनीकी) आदि के लिए चुने जाते हैं.’

राहुल कहते हैं कि जो लोग पढ़ाई में ‘बहुत तेज नहीं’ हैं या शिक्षा पर बहुत खर्च नहीं कर सकते हैं, वे सेना में सामान्य ड्यूटी जवान के तौर पर भर्ती होने की तैयारी करते हैं.


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‘किसी भी कीमत पर सेना में प्रवेश की आकांक्षा’

भीखम चाहर जैसे कई लोग हैं जो स्थानीय युवाओं को सशस्त्र बलों में प्रवेश करने के लिए प्रशिक्षित करते हैं. कुछ यह काम मुफ्त में करते हैं, तो कुछ अन्य मामूली फीस लेते हैं.

अपने पिता के नक्शेकदम पर चलकर सेना में शामिल होने में सक्षम नहीं हो पाए भीखम थोड़े आग्रह के बाद दलाल सिस्टम के बारे में बताने को राजी हुए जो उनके मुताबिक सेना भर्ती के लिए अपनाई जाने वाली चयन प्रक्रिया के एक खंड के कारण ही पनपता है.

भीखम का दावा है, ‘यहां तक कि अगर युवाओं में सेना में भर्ती के सभी गुण हैं, तब भी वे मेडिकल टेस्ट पास करने में चूक सकते हैं. परीक्षक आमतौर पर युवाओं की शारीरिक क्षमता में कोई न कोई कमी निकाल ही देते हैं. यही वो चरण है जहां आकर डॉक्टरों के हेरफेर करने की सबसे ज्यादा गुंजाइश होती हैं. एजेंट यह सुनिश्चित करने में मदद करते हैं कि युवा यह चरण क्लियर कर जाएं. कुछ लोग तो यह गारंटी तक देते हैं कि वे सेना के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ अपने संबंधों के कारण यह प्रक्रिया पूरी करने में मदद करेंगे.’

इसी तरह, राहुल बताते हैं कि जो लोग फिजिकल टेस्ट पास कर लेते हैं, लेकिन लिखित परीक्षा पास करने को लेकर अनिश्चित हैं, तो वे ‘एजेंटों’ की मदद लेने विकल्प चुनते हैं. उन्होंने कहा, ‘फिजिकल टेस्ट में शॉर्टलिस्ट होने के तुरंत बाद एजेंट युवाओं से संपर्क करते हैं और यह सुनिश्चित करने के लिए 3 लाख से 4 लाख रुपये की मांग करते हैं कि वे लिखित परीक्षा पास करा देंगे. ज्यादातर युवा सिर्फ इसलिए उनकी मदद लेते हैं क्योंकि वे कोई मौका गंवाना नहीं चाहते हैं.’

तमाम तरह की शंकाओं के बीच चहरबत्ती के युवाओं की चिंता इसलिए और भी बढ़ गई है कि अग्निपथ योजना सैन्य रंगरूटों के बीच प्रतिस्पर्धा को और कड़ी कर सकती है क्योंकि जो 25 फीसदी अग्निवीर चार साल की सेवा के दौरान अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करेंगे, उन्हें आखिर में स्थायी रूप से सेना का हिस्सा बनाया जा सकता है.

सकटपुर गांव के अजय सिंह का कहना है, ‘केवल 25 प्रतिशत को शामिल किया जाएगा. जो तेज हैं वो तो अपनी जगह बना लेंगे और जो नहीं हैं उन्हें बाहर होना पड़ेगा.’

अग्निपथ योजना पारंपरिक रास्ता बंद करती नजर आ रही है. चहरबत्ती के कई युवा स्वीकार करते हैं कि पारंपरिक के साथ-साथ आर्थिक कारणों से भी वे ज्यादा पढ़ाई-लिखाई करने से दूर रहे हैं. अग्निपथ योजना उन्हें अन्य विकल्पों पर विचार के लिए भी मजबूर करेगी—जिनके बारे में वे कहते हैं कि इसके लिए तैयार नहीं हैं.

यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें अग्निवीरों की क्रीम में शामिल होने का भरोसा नहीं है, अजय कहते हैं कि गांवों में हर कोई कोचिंग और ‘महंगी शिक्षा’ का खर्च नहीं उठा सकता. उनका कहना है कि अब तक सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए सेना में नौकरी पाना संभव था.

हालांकि पिछले कुछ सालों में इस क्षेत्र में निजी स्कूल खुल गए हैं लेकिन अधिकांश परिवार अपने बच्चों को गांवों के नजदीकी सरकारी स्कूलों में भेजते हैं.

युवाओं में बढ़ती चिंता

20 जून को सेना ने संभावित अग्निवीर आवेदकों के लिए नियम और शर्तें जारी कर दीं. इसमें कहा गया है कि अग्निवीर के लिए आवेदन करने वालों को नियमित कैडर का हिस्सा बनाने पर विचार किया जाना चार साल की नियुक्ति अवधि के दौरान उनके प्रदर्शन सहित ऑब्जेक्टिव क्राइटेरिया पर निर्भर करेगा. हालांकि, इस क्वालिफिकेशन में किसी तरह के टेस्ट की संभावना का जिक्र नहीं है लेकिन सेना के भावी उम्मीदवारों के बीच आमतौर पर यही राय है कि इसके लिए कोई परीक्षा आयोजित की जा सकती है.

मनकेंडा गांव के दीपेश पूछते हैं, ‘जो लोग बुद्धिमान होंगे, वे तो सेना का हिस्सा बने रहेंगे. अगर हम इसे पास नहीं कर पाए तो क्या करेंगे? और अगर ये पूरी तरह से किसी टेस्ट पर आधारित हुआ तो क्या हम हमारा रहना या न रहना यूनिट के कमांडिंग ऑफिसर की इच्छा पर निर्भर नहीं करेगा?’

गौरतलब है कि ऐसी खबरें आई हैं कि केंद्र की योजना तीन वर्षीय कौशल-आधारित ग्रेजुएशन डिग्री कार्यक्रम शुरू करने की है, ताकि अग्निवीरों को असैन्य क्षेत्रों में नौकरी पाने के लिए आवश्यक कौशल प्रशिक्षण हासिल करने में मदद मिल सके लेकिन चहरबत्ती के अधिकांश युवा इससे पूरी तरह अनजान हैं.

अनिल कहते हैं, ‘25 की उम्र में हमें उन लोगों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी होगी, जो हमसे बहुत आगे पहुंच चुके होंगे…हमें परीक्षा, कॉलेज में भर्ती और अध्ययन के उस चक्र से गुजरना होगा, जो उस समय तक हमारी उम्र के युवा पहले ही पार कर चुके होंगे. मुझे लगता है कि हमें सिर्फ किसी सुरक्षा गार्ड की नौकरी ही मिल पाएगी.’

अग्निपथ योजना की तुलना पिछले साल किसानों के साल भले चले आंदोलन के बाद रद्द कर दिए गए तीन विवादास्पद कृषि कानूनों से करते हुए 1962 के भारत-चीन युद्ध में हिस्सा ले चुके पूर्व सैनिक कर्नल एस. वोहरा (रिटायर्ड) कहते हैं कि सरकार ने इस योजना पर लाखों भावी उम्मीदवारों की शंकाओं और सवालों पर विचार किए बिना आगे बढ़कर एक गलती की है.

उन्होंने कहा, ‘यह एक आमूलचूल सुधार है, जो तमाम चीजों को बदलकर रख देगा. सरकार ने एक बार फिर यह सोचे बगैर कोई कदम उठाया है कि इस तरह की घोषणा से युवाओं के बीच क्या संदेश जाएगा. उसने युवाओं को इस पर अमल के पीछे तर्क और उनके लिए उपलब्ध विकल्पों के बारे में समझाने से पहले ही योजना कर दी है. यह कम्युनिकेशन में कमी को दर्शाता है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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