नयी दिल्ली, चार मार्च (भाषा) किसी जीवनसाथी द्वारा अपनी बीमारी की बात नहीं मानने और इलाज कराने से इनकार करने को क्या क्रूरता कहा जा सकता है और क्या यह तलाक का आधार हो सकता है? उच्चतम न्यायालय ने इस तरह के एक मामले में शुक्रवार को अध्ययन करने पर सहमति जताई।
न्यायमूर्ति विनीत सरण और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने मामले में नोटिस जारी किया और केरल उच्च न्यायालय के तीन सितंबर, 2021 के एक आदेश पर रोक लगा दी।
उच्च न्यायालय के आदेश में एक जोड़े को तलाक देते हुए यह कहा गया था कि ‘‘क्षति पहुंचाने वाले व्यवहार का विकार तलाक के लिए आधार के रूप में ‘क्रूरता’ बन जाता है, इस कारण से नहीं कि यह उस बीमारी के लिए जिम्मेदार है जो किसी को होती है बल्कि इस कारण से कि कोई बीमारी को स्वीकार करने से इनकार करता है और बीमारी का इलाज कराने को तैयार नहीं होता।’’
पीठ ने कहा, ‘‘नोटिस जारी किया जाए जिसका जवाब छह सप्ताह के अंदर दिया जाए।’’
केरल उच्च न्यायालय ने एक महिला की याचिका पर आदेश जारी किया था जिसने तलाक अधिनियम 1869 के तहत क्रूरता के आधार पर तलाक देने के एक कुटुंब अदालत के आदेश को चुनौती दी थी।
महिला के पति ने आरोप लगाया था कि उसकी पत्नी को ‘पैरानॉइड सित्जोफ्रेनिया’ है लेकिन वह इस बात को मानती नहीं है और उपचार कराने से मना कर देती है। इस दावे का महिला ने विरोध किया है और कहा कि वह पूरी तरह ठीक है और अपने दो बच्चों की देखभाल करती है तथा पड़ोसियों से भी उसके बहुत अच्छे रिश्ते हैं।
उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली महिला की ओर से वकील विपिन नायर ने कहा कि कानून में यह भलीभांति तय स्थिति है कि किसी जीवनसाथी की बीमारी तलाक का आधार नहीं हो सकती, भले ही इसके कारण ऐसा असामान्य व्यवहार हो जो सामान्य वैवाहिक जीवन में अपेक्षित नहीं है।
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वैभव नरेश
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