नई दिल्ली: दिल्ली में अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए आम आदमी पार्टी ने अपनी तैयारियां शुरू कर दी है. पार्टी ने राज्य में चुनावी रणनीति तैयार करने के लिए प्रशांत किशोर को अपने साथ जोड़ा है. दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने शनिवार को इसकी जानकारी खुद ट्वीट कर दी. वहीं दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने सीएम केजरीवाल के ट्वीट को रीट्वीट करते हुए लिखा है, अबकी बार 67 पार.
राजनीतिक रणनीतिकार और जेडीयू के उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर की इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (आई-पैक) के चार लोगों की एक टीम चंद दिनों पहले दिल्ली आई. टीम को ज़मीन पर आम आदमी पार्टी (आप) से जुड़े हालात का जायज़ा लेने के लिए भेजा गया था. अब 40 लोगों की एक टीम दिल्ली कूच करने वाली है जो आप के कैंपेन में जान फूंकने का काम करेगी.
प्रशांत किशोर के आप के साथ जुड़ने के बाद दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने शनिवार को एक ट्वीट करके लिखा, ‘मुझे ये बताते हुए ख़ुशी हो रही है कि आई-पैक ने हमारा दामन थाम लिया है. स्वागत है.’
Happy to share that @indianpac is coming on-board with us. Welcome aboard!
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) December 14, 2019
स्वागत वाले इस ट्वीट का जवाब देते हुए आई-पैक के हैंडल से ट्वीट किया गया, ‘पंजाब के नतीज़ों के बाद हमने ये स्वीकार किया कि हमने जितने विरोधियों का सामना किया है उनमें आप सबसे ज़ोरदार थे.’ आगे लिखा है कि अरविंद केजरीवाल और आप से जुड़े आई-पैक के लिए ख़ुशी की बात है.
After Punjab results, we acknowledged you as the toughest opponent that we have ever faced. Happy to join forces now with @ArvindKejriwal and @AamAadmiParty. https://t.co/5Rcz4ie6Xs
— I-PAC (@IndianPAC) December 14, 2019
आपको बता दें कि 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव में केजरीवाल की पार्टी जीत की प्रबल दावेदार मानी जा रही थी, लेकिन सबको चौंकाते हुए कांग्रेस बाज़ी मार गई. इस चुनाव में कांग्रेस को किशोर के आई-पैक का साथ हासिल था. ऊपर वाले ट्वीट में आई-पैक ने इसी मुकाबले का ज़िक्र किया है जिसमें उसने आप को पटखनी दी थी.
दिल्ली में अपनी पार्टी के ख़िलाफ़ होंगे प्रशांत!
प्रशांत किशोर बिहार से आते हैं और राज्य के सीएम नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) के नेता भी हैं. नागरिकता संसोधन काननू के मामले में उन्होंने ट्वीटर जैसै माध्यम पर खुलकर पार्टी विरोध स्टैंड लिया. इसकी वजह से मीडिया में अटकलें हैं कि प्रशांत को नीतीश उनकी ‘जगह’ बता सकते हैं.
नागरिकता संसोधन काननू के मामले में ट्वीटर पर प्रशांस द्वारा लिया गया स्टैंड इकलौती बात नहीं है जो जेडीयू के विरोध में है. दरअसल, सूत्रों के हवाले से दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक 2013 में दिल्ली विधानसभा में एक सीट जीतने वाले नीतीश की पार्टी अगले विधानसभा चुनाव में पांच सीटों पर मुकाबला करने वाली है.
ऐसे में अगर प्रशांत जेडीयू के साथ बने रहते हैं तो दिल्ली में वो अपनी पार्टी के ख़िलाफ़ लड़ रही आप के लिए कैंपेन कर रहे होंगे. इसके पहले आई-पैक को 2021 में तमिलनाडु की पार्टी द्रविड मुन्नेत्र कळघम (डीएमके) को जिताने का ज़िम्मा मिला है.
2019 आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव में जगनमोहन रेड्डी को प्रचंड जीत दिलाने वाले प्रशांत किशोर पहली बार 2014 में तब चर्चा में आई थी जब वो नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को पूर्ण बहुमत दिलाने वाले कैंपेन का हिस्सा बने थे.
2015 में बिहार में नीतीश-लालू यादव-राहुल गांधी की पार्टियों वाले महागठबंधन की नैया पार कराने के मामले में भी राजनीतिक जानकार किशोर को श्रेय देते हैं. हालांकि, 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में इन्हें तब मुंह की खानी पड़ी जब कांग्रेस और समजवादी पार्टी को हाशिए पर धकेलते हुए भाजपा ने प्रचंड बहुमत हासिल किया.
दिल्ली में आप और तमिलनाडु में डीएमके के अलावा आई-पैक ने बंगाल में ममता बनर्जी के लिए उनका गढ़ संभाल रखा है. आम चुनाव में भाजपा द्वारा दिए गए झटके से ऊबरते हुए ममता के तृणमूल कांग्रेस ने हाल ही में राज्य में हुए उप-चुनावों में भाजपा का ऐसा सूपड़ा साफ़ किया कि उनके प्रदेश अध्यक्ष तक की सीट पर पार्टी बुरी तरह से हार गई.
आगे की चुनौती
आई-पैक से जुड़े सुत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक कैंपने से जुड़ने के पहले ही संस्था ने आप के लिए दिल्ली में सर्वे करना शुरू कर दिया है. जारी सर्वे के बीच आप के नेताओं ने नाम नहीं बताने की शर्त पर ये स्वीकार किया कि अगला चुनाव 2015 के चुनाव जैसा ‘केक-वॉक’ नहीं होगा.
आपको बता दें कि पिछले चुनाव में कांग्रेस समेत अन्य क्षेत्रिए पार्टियों का सूपड़ा साफ़ करते हुए आप ने 70 में से 67 विधानसभा सीटें हासिल की थीं और भाजपा को तीन सीटों पर समेट दिया था. एक अहम बात ये है कि मेट्रो से लेकर बस और पानी से लेकर बिजली तक माफ़ कर रहे केजरीवाल के विकल्प में अन्य पार्टियों के पास कोई चेहरा भी नहीं है.
हालांकि, पिछले चुनाव में किए गए 70 में कई वादे अधूरे रह गए हैं. ऐसे में अगले चुनाव में पार्टी के पिछले प्रदर्शन को दोहरना टेढ़ी खीर होगी.